भारत अब ‘बुज़ुर्गों का देश’ बनने की ओर अग्रसर है. … 500 की पेंशन से कैसे होगा गुजारा
बूढ़ी हो रही भारत की आबादी के सामने एक नहीं कई चुनौतियां, 500 की पेंशन से कैसे होगा गुजारा
भारत अब ‘बुज़ुर्गों का देश’ बनने की ओर अग्रसर है. इस बदलाव के साथ ही बुज़ुर्गों के लिए पेंशन, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक सुरक्षा जैसी जरूरी सुविधाओं में बड़ी कमी देखने को मिल रही हैं.
भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है. करीब 40 फीसदी आबादी की उम्र 13 से 35 साल के बीच है. ऐसे में अक्सर भारत की ताकत युवा आबादी और उससे मिलने वाले फायदों की बात होती है लेकिन तेजी से बढ़ती बुज़ुर्ग आबादी के बारे में इतनी चर्चा नहीं होती है.
अब इस ओर भी ध्यान देना जरूरी है कि भारत में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 10.4 करोड़ बुजुर्ग (60 साल से ज्यादा उम्र) रहते हैं, जो कुल जनसंख्या का 8.6% है. गौर करने वाली बात यह है कि बुजुर्गों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है.
अनुमान है कि साल 2030 तक देश में 19.3 करोड़ बुजुर्ग होंगे जो कुल जनसंख्या का लगभग 13% होगा. यूएनएफपीए की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक देश में बुजुर्गों की संख्या दोगुनी होकर कुल जनसंख्या का 20% से ज्यादा होने का अनुमान है.
बढ़ती बुजुर्ग आबादी चिंता का विषय जरूर है लेकिन यह भी एक सकारात्मक संकेत है कि लोग अब पहले से ज्यादा लंबा जीवन जी रहे हैं. ऐसे में बढ़ती हुई आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाना भी आवश्यक है. ऐसा करने के लिए पहले हमें पहले कुछ चुनौतियों और कमजोरियों को समझना होगा.
बुजुर्ग कौन है?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, 60 से 74 साल की उम्र के लोगों को बुजुर्ग माना जाता है. साल 1980 में संयुक्त राष्ट्र ने 60 साल की उम्र को बुजुर्ग होने की शुरुआत माना और उन्हें तीन ग्रुप में बांटा.
- युवा बुजुर्ग: 60 से 75 साल की उम्र के लोग
- बुजुर्ग: 75 से 85 साल की उम्र के लोग
- बहुत बुजुर्ग: 85 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोग
भारत में जनगणना के लिए 60 साल की उम्र को बुजुर्ग माना जाता है. यह उम्र सरकार की नौकरी से रिटायर होने की उम्र से भी मेल खाती है.
भारत में बुजुर्गों के सामने सबसे बड़ी चुनौती
भारत में बुजुर्गों के सामने सबसे बड़ी समस्या पैसे की है. बहुत कम ही लोग ऐसी नौकरी करते हैं जिसमें रिटायर होने पर पेंशन मिलती है. ज्यादातर बुजुर्गों के पास बुढ़ापे के लिए पैसे नहीं होते हैं. सरकार की एक योजना है जिसमें गरीब बुजुर्गों को थोड़े से पैसे मिलते हैं, लेकिन ये पैसे उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं होते हैं. असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले बहुत सारे बुजुर्गों को पेंशन या दूसरी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिलती है.
भारत सरकार गरीब बुजुर्गों की मदद के लिए एक योजना चलाती है जिसका नाम है “इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना” (IGNOAPS). इस योजना के तहत 60 साल से ज्यादा और गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले लोगों को हर महीने 200 रुपये पेंशन मिलती है. अगर उनकी उम्र 79 साल से ज्यदा है तो उन्हें 500 रुपये मिलते हैं. ये रकम गुजारा चलाने के लिए बहुत कम है.
भारत सरकार ने 15 अगस्त 1995 को गरीब लोगों की मदद के लिए ‘राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम’ (NSAP) नाम से योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत उन लोगों को मदद दी जाती है जिनके पास कमाने का कोई साधन नहीं होता या जो अपने परिवार या किसी और से बहुत कम पैसे पाते हैं. इस योजना को चलाने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय की है. यह योजना गांवों और शहरों दोनों जगह के लिए है.
सेहत से जुड़ी समस्या
बुजुर्गों को सेहत से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. भारत में बुज़ुर्गों के बारे में किए गए एक सर्वे (LASI) के मुताबिक, 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को ज्यादातर डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियां जैसी पुरानी बीमारियां होती हैं. इस सर्वे से पता चलता है कि अलग-अलग जगहों पर रहने वाले अलग-अलग वर्ग, जाति और लिंग के लोगों की सेहत और जीवन अलग-अलग होता है.
सेहत पर ज्यादा खर्च होने की वजह से हर साल लाखों भारतीय गरीब हो जाते हैं, बुजुर्गों के लिए यह समस्या और भी ज्यादा गंभीर है. बुजुर्गों की देखभाल करने वाली सुविधाएं और डॉक्टर बहुत कम हैं जिससे उनको अपनी सेहत का ध्यान रखने में अक्सर मुश्किल का सामना करना पड़ता है. दुनिया के सारे बुजुर्गों में से एक चौथाई भारत में रहते हैं, लेकिन हर साल सिर्फ 20 डॉक्टर ही बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए तैयार होते हैं.
सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत योजना का लाभ ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को ही मिल पाता है. अन्य सरकारी बीमा योजनाओं जैसे केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना (CGHS) या कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESIS) का लाभ सिर्फ सरकारी कर्मचारियों और संगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को मिलता है. बुजुर्गों को बीमा का दावा करने में काफी परेशानी होती है क्योंकि दावा करने की प्रक्रिया लंबी होती है और दावों में कटौती या अस्वीकार भी हो जाती है.
WHO के अनुसार, दुनियाभर में हर तीन मौतों में से एक मौत दिल की बीमारी की वजह से होती है. हर साल करीब 1 करोड़ 79 लाख लोग दिल की बीमारी की वजह से मर जाते हैं. दुनिया के गरीब और थोड़े अमीर देशों में दो तिहाई लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, लेकिन उनमें से आधे लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें ब्लड प्रेशर है. अभी दुनिया में 30 से 79 साल के करीब 1.3 अरब लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या है.
अकेलापन एक बड़ी समस्या
भारत के कई बुजुर्ग सामाजिक तौर पर अलग-थलग पड़ गए हैं क्योंकि तेजी से शहर बसे हैं और परिवारों में दूरी बढ़ी है. पहले परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहते थे, जिससे बुजुर्गों को सहारा और साथ मिलता था. अब परिवार छोटे होने लगे हैं. इससे बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
अनुमान है कि 10 से 20 प्रतिशत बुजुर्गों को डिप्रेशन होता है. कोरोना महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है, जिससे पता चलता है कि बुजुर्गों के लिए समुदाय आधारित सहायता और सामाजिक कार्यक्रमों की जरूरत है. जिन घरों में बच्चे बड़े होकर काम की तलाश में दूसरे शहर चले गए हैं वहां बुजुर्ग अक्सर अकेले रह जाते हैं.
वहीं भारत तेजी से डिजिटल हो रहा है लेकिन बहुत से बुजुर्ग लोग इस बदलाव को अपना नहीं पा रहे हैं. बैंक के काम से लेकर डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लेने तक सब कुछ अब ऑनलाइन हो रहा है. करीब 86 फीसदी बुजुर्गों को कंप्यूटर या डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करना नहीं जानते है. इससे न सिर्फ उन्हें जरूरी सेवाओं का फायदा नहीं मिल पाता है बल्कि वे अपने परिवार और दोस्तों से भी दूर हो जाते हैं. इससे उनका अकेलापन और दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती है.
बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार!
बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार की समस्या भी बढ़ रही है. एल्डर्स हेल्पलाइन 1090 और एल्डरलाइन 14567 की ओर से दिए गए आंकड़ों से पता चला है कि लॉकडाउन के बाद बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार में 251% की वृद्धि हुई है. बुजुर्गों के पैसे लूटने, उनकी देखभाल न करने और मारपीट जैसी घटनाएं भी होती हैं.
सरकार ने बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए कानून बनाया है लेकिन फिर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं. बहुत से मामले सामने नहीं आते क्योंकि बुजुर्ग लोग दुर्व्यवहार करने वालों पर निर्भर होते हैं, बदला लेने के डर से या समाज की बुरी नजर के डर से बचने के लिए पुलिस में शिकायत नहीं करते.
क्या कहता है कानून
भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रख-रखाव और कल्याण के लिए एक कानून बनाया है, जिसे 2007 में पारित किया गया. इस कानून के मुताबिक बच्चों और वारिसों का यह कानूनी दायित्व है कि वे अपने माता-पिता और बुज़ुर्गों को हर महीने पैसे दें. इस कानून में बुज़ुर्गों की जिंदगी और संपत्ति की सुरक्षा के लिए आसान, तेज और सस्ते तरीके भी बताए गए हैं. भारत की संसद से पास किए जाने के बाद राष्ट्रपति ने 29 दिसंबर 2007 को इस कानून पर हस्ताक्षर किए थे.
इस कानून के तहत पहला मामला नवंबर 2011 में तूतीकोरिन के रहने वाले सिलुवाई (84 साल) और उनकी पत्नी अरुलाम्मल (80 साल) ने अपने बेटे और बहू के खिलाफ दर्ज कराया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके बेटे-बहू ने उनकी देखभाल नहीं की और उनके दो घर और सोने के जेवर भी ले लिए.