देश में 95 फीसदी यात्री ट्रेनों में लगे बॉयो टॉयलेट !
देश में 95 फीसदी यात्री ट्रेनों में लगे बॉयो टॉयलेट
इनमें से 1125 कोचों में लगे 4500 निशातपुरा रेलवे कोच फैक्ट्री में लगाए गए

निशातपुरा स्थित रेलवे कोच फैक्ट्री में हर साल औसतन 400 के आसपास कोचों में बॉयो टॉयलेट लगाए गए। तीन साल का आंकड़ा देखें तो 1125 कोच में 4500 बॉयो टॉयलेट यहां लगाए गए। इनमें प्रति कोच 120 लीटर लिक्विड बैक्टीरिया का उपयोग किया गया। इस तरह कुल 54 हजार लीटर लिक्विड बैक्टीरिया की खपत 1125 कोचों में लगे बॉयो टॉयलेट में की गई।
पश्चिम-मध्य रेल जोन के सीपीआरओ हर्षित श्रीवास्तव का कहना है कि बॉयो टॉयलेट लगने से स्टेशन एरिया, रेलवे ट्रैक काफी साफ रहने लगा है। इस वजह से ट्रैकमैन को काम करने में काफी आसानी हो गई है।
सबसे खास बात यह रही कि रेल मंडल ही नहीं देशभर में चलाई जा रही सभी यात्री ट्रेनों के कोच में अब बॉयो टॉयलेट लगाए जा चुके हैं। इनसे रेलवे ट्रैक पर केवल ट्रीटेड वॉटर ही गिर रहा है। इस वजह से ट्रैकमैन को पूर्व में होने वाली ई-कोलाई समेत वायरस इंफेक्शन से होने वाली बीमारियों से काफी हद तक निजात मिल गई है। रेलवे और रक्षा अनुसंधान विकास संगठन डीआरडीओ ने वर्ष-2010 में बॉयो टॉयलेट का अविष्कार किया।
ढाई लाख से ज्यादा: रेलवे ने अब तक 95 फीसदी से ज्यादा ट्रेनों में ढाई लाख से ज्यादा बॉयो टॉयलेट लगा लिए हैं। इससे रेलवे ट्रैक पर 2 लाख 74 हजार लीटर से ज्यादा मानव अपशिष्ट का ट्रैक पर गिरना बंद हो चुका है।
पर्यावरण के अनुकूल…बॉयो टॉयलेट एक पूरा अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी समाधान है। जो बैक्टीरियल इनोकुलम की मदद से ठोस मानव अपशिष्ट को बॉयो गैस और शुद्ध पानी में बदल देता है। यह सिस्टम पर्यावरण के काफी अनुकूल, कम खर्च वाला और साफ-सफाई की दृष्टि से सुदृढ़ व मानव अपशिष्ट के निपटान की उच्चतम तकनीक है।
करना पड़ता है रीफिल…
हर बॉयो टॉयलेट में लगे टैंक को तीन महीने के अंतरारल से 10 लीटर बैक्टीरिया डालकर रीफिल किया जाता है। जब यह एनारोबिक लिक्विड बैक्टीरियल मैटेरियल मानव उत्सर्जन में पहुंचता है, वह इसे गैस और तरल पदार्थ में बदल देता है। इस दौरान मीथेन और कार्बनडाय आक्साइड गैसें बाहर निकल जाता है। तरल पदार्थ को क्लोरीन से ट्रीट कर कीटाणु रहित बनाकर जमीन पर छोड़ दिया जाता है।
-सौरभ कटारिया, सीनियर डीसीएम, भोपाल