खुदरा विक्रेताओं को खा रही ई-कॉमर्स कंपनियां …जरूरी है रेगुलेशन

खुदरा विक्रेताओं को खा रही ई-कॉमर्स कंपनियां, सरकार रोके इनकी मनमानी, जरूरी है रेगुलेशन

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि ई-कामर्स कंपनिया रिटेल स्टोर को खत्म करते जा रही है. इससे समाज के नीचले स्तर के लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है. ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ की गई अपनी टिप्पणियों पर रुख साफ करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सरकार ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ नहीं है, बल्कि भारत चाहता है कि ई-कॉमर्स  कंपनियां  निष्पक्ष और ईमानदार रहें. 

ई कामर्स से बाजारों में नुकसान 

अगर वाकई इस मामले को देखा जाए तो इस पर विचार करने की जरूरत है, क्योंकि ई-कामर्स कि जो कंपनियां हैं, वो कहीं ना कहीं लोकल मार्केट को परेशान कर रही है. ई कामर्स काफी तेजी से बढ़ता ही जा रहा है. इनमें छोटे- छोटे पेयर्स नहीं खरीद पाते हैं, और बड़े पेयर्स सब इक्ट्ठा करते चले जाते हैं. पहले फ्लिपकार्ट एक अलग कंपनी थी, बाद में उसे अमेजन ने टेक ओवर कर लिया. ये जो इनकी पालिसी है, वो भारत के बाजार को आत्मसात करते जा रहे हैं. इस पर रोक लगने की जरूरत भी है. चाहें वो किसी तरह की मोनोपाॅली हो, क्योंकि बाद में वो नुकसान दायक होती है. ई कामर्स को लेकर जो पहले टैक्स हुआ करती थी, उसको सरकार ने पहले ही खत्म कर चुकी है, जिसके जरिये इसका प्रतिबंध में लाया जा सकता था.  

कंपनी कमिशन तो बनाया गया और वो इसके लिए है, लेकिन वो काफी लचर अवस्था में पड़ा हुआ है. ये उस तरह से नहीं कर पाते, जिस तरह से की बड़ी बड़ी कंपनियां काम कर लेती हैं. और हर महीने कोई नया रास्ता अपना लेती है. जिसके जरिये की समान बेच भी लेते हैं, और कोई दिक्कत होती है, तो वापसी भी ले लेते हैं. इस तरह से नुकसान होता है, भारत में बेरोजगारी की समस्या सबसे अधिक है. भारत में छोटे दुकानदार है, उनकी नौकरियों को ई कामर्स वाले खा जा रहे हैं, क्योंकि एक तो ये हम डिलिवरी तक की व्यवस्था देते हैं. इसके साथ वस्तुओं को सस्ता और बेहतर देने की वादा करते हैं. इससे गांव, शहरों और मुहल्लों में जो लोग दुकान खोलकर काम करते थे, या फिर दुकान पर मदद के लिए लोग रखे जाते थे, अब उनकी जरूरतें खत्म होती जा रही हैं. इससे उनकी समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रही है. 

रेगुलेशन जरूरी, लेकिन पहले बातचीत 

ये ई-कामर्स कोई एक क्षेत्र के लिए नहीं है, बल्कि पूरे देश की स्थिति यही है. जिस प्रकार से ई-कामर्स पूरे जगहों पर पकड़ बना ली है, इससे परेशानी हो सकती है. इस बात को ध्यान में रखकर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बयान जो दिया उसमें उनके बारे में कहा तो है, लेकिन ये नहीं बताया कि वो किस तरह का रेगुलेशन लाना चाहते हैं.

अगर कोई रेगुलेशन लाने की सोच रहे हैं, तो सभी शेयर होल्डरों से बाचचीत करने के बाद ही कोई कदम उठाया जाना चाहिए. अगर गांव और शहरों के छोटे-छोटे दुकानदार, और व्यापारी बचेंगे, तभी देश खुशहाली की ओर बढ़ सकता है, मुल्क में विकास के काम दिख सकते हैं, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां देश के हर क्षेत्रों में होता है.   

लोकल मैन्युफैक्चरिंग को नहीं दिया गया मौका 

भारत में कुछ छोटी कंपनियां है जो खाने पीने की चीजें बनाती है, और उसके प्लेटफार्म के थ्रू डिलिवरी करते हैं. लेकिन कई बार ये पाया गया है कि वो ग्राहकों के साथ सही व्यवहार नहीं करते हैं. अगर कोई ग्राहक ने ऑर्डर किया तो डिलिवरी वाले ये नहीं बताते कि उनका समान कहां से उठा रहे हैं. इसके लिए काफी ज्यादा चार्जेज भी लेते हैं.

कई बार देखा गया है कि डिलिवरी वाले छोटे-छोटे भाबे से भी खाना लेते हैं, उसके बाद पैकिंग करते हैं और उसी की डिलिवरी कर देते हैं. ये एक तरह से कंज्यूमर एक्ट के खिलाफ का काम है. ई कामर्स में ट्रेड का ही कंपटिशन कानून नहीं है, बल्कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन का भी कानून है. इसलिए कंज्यूमर को उसके एक्ट के प्रोटेक्शन के तहत सुविधाएं मिल रही है या नहीं, इसको भी देखने की जरूरत है. अगर नहीं मिल पा रहा है तो फिर एक तरह से ये  नैरेटिव ठीक नहीं है. 

बाजार में कंपटिशन स्टेबलिश करने की जरूरत 

दिल्ली में हाल ही में एक मामला सामने आया कि जितनी भी ऑनलाइन कंपनियों के थ्रू जो वाहन की सुविधाएं मिलती है, उस पर किसी ने केस कर दिया. उसके बाद सभी आनलाइन कैब और आटो वालों ने एक दिन के लिए संपूर्ण हड़ताल कर दिया, जिससे लोगों को काफी दिक्कत हुई. ऐसे में इस तरह की मोनोपाली पर ध्यान देने की जरूरत है. आनलाइन वाहन उपलब्ध कराने वाले मनमाना किराया लेते हैं, इसके साथ ही एक ड्राइव पर चालक को अच्छी खासी बचत होती है, बाकि एप के ओपरेटर को देना पड़ जाता है.

कोलकता में वहां के चालकों ने एक एप बनाया है, जिसके जरिये वो खुद से वाहन चलाकर एक ड्राइव के जो पैसे होते हैं, वो सीधे तौर पर उनको मिलते हैं, इसमें ओपरेटर के शोषण से वो बच जाते हैं. हमें मार्केठ में कंपटिशन स्टेबलिश  करना है.  इसके साथ ही जो भी रूल रेगुलेशन है उनको सही तरीके से अपलाई भी करना है. कंज्युमर एक्ट तथा कंपटिशन एक्ट को मानते हुए काम करे, इस पर भी ध्यान रखना है.  सरकार को ये भी ध्यान रखना चाहिए ताकि कहीं भी किसी तरह ही कोई मोनोपाली ना हो पाए. आज तो अगर मान जाए तो फिर ठीक है, लेकिन जिस दिन ये मोनोपोली खत्म हो जाएगी फिर ये आम लोगों से अधिक पैसे की मांग करेंगे. इसके साथ जो शहर की व्यवस्था है, वो पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगी. इसलिए जरूरी है कि ई कामर्स को हम सही तरीके से उपयोग में ला सकें. इसके लिए सरकार को ये देखना काफी जरूरी है. 

अभी तक 26 अरब डालर निवेश 

अमेजन ने हाल में ही कहा कि भारत में अमेजन 26 अरब डालर का निवेश करेगी. इससे साफ तौर पर रिटेलर जो भारत हैं, वो निश्चित रूप से ही खत्म हो जाएंगे. हमें अपने लोगों के देखना चाहिए, हर कुछ निवेश के जरिये नहीं किया जा सकता है. अगर कोई 1000 करोड़ डालर लगा दे और कई परिवार की जीवन तबाह हो जाए तो इसको विकास के नजरिये से नहीं देखा जा सकता है. 

अमेजन कंपनी पर नजर डाले तो उसके काफी शेयर होल्डर है. देखा जाए तो पूरे देश में कंपनियों का एक गिरोह काम कर रहा है. इसको रोकने के साथ इसके खत्म करने पर भी काम करना चाहिए, ताकि देश में जो व्यवस्था है, उसके साथ हिंदुस्तान की पहले की जो व्यवस्थाएं बनाई गई है, उसको बनाए रखने पर काम करना होगा, वरना विकास के सारे दावा को कोई मतलब नहीं बनता है. लोगों की नौकरी और बाजार बचना चाहिए. अमेजन और ई कामर्स जैसी कंपनियां लोगों के इनफोरमेशन को भी बेच कर कमाते हैं. सरकार इस बात पर भी रोक लगानी चाहिए. 

कंपनियों पर कानूनी दायरा जरूरी 

आनलाइन कंपनियों पर रोक नहीं लगाने की बात इस समय नहीं किया जा सकता, क्योंकि पूरी दुनिया आनलाइन की ओर बढ़ती जा रही है, लेकिन इनको कानूनी दायरे में लानी चाहिए, क्योंकि ऐसा ना हो कि ये सिर्फ अपने धंधा के बढ़ाने में लगे रहें.

 पीयूष गोयल के बयान से अभी तक को ये नहीं दिख रहा है कि वो कोई सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं, अगर अंदरखाने सरकार इस पर काम पर रही है तो फिर ये अच्छी बात है. कंपनिया जिस तरह के व्यवहार कर रही है, वो ठीक नहीं है. कई बार ये देखा गया है कि बाहरी कंपनियां दूसरे देश में जाकर सेवाएं तो देती है, बाद में वहां की इकोनामी पर टारगेट करने लगती है, इसलिए ऐसे कदम सरकार की ओर से लाया जाना चाहिए ताकि कंपनिया कानूनी दायरे में रहें. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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