जम्मू-कश्मीर: कांग्रेस …अब 32 पर गठबंधन, घाटे का सौदा या फायदे का?
जम्मू-कश्मीर: 47 सीटों पर कांग्रेस की हो गई थी जमानत जब्त, अब 32 पर गठबंधन, घाटे का सौदा या फायदे का?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले लड़ने की जगह नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर मैदान में उतर रही है. 2014 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कमतर रहा था, लेकिन घाटी में मजबूत स्थिति में दिख रही नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ चुनाव समर में उतरने के लिए उसने अपनी आधे से अधिक सीटों का बलिदान कर दिया है.
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच लंबी बातचीत के बाद सीटों को लेकर समझौता हो गया है. समझौते के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस अब 50 सीटों पर तो कांग्रेस 32 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी. 2 सीटें सहयोगी दलों को दी गई हैं जबकि 6 सीटों पर रजामंदी नहीं हो सकी, ऐसे में इनके बीच इन सीटों पर दोस्ताना मुकाबला होगा. पिछले चुनाव में कांग्रेस 86 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जबकि तब कुल 87 सीटें हुआ करती थी. लेकिन इस बार जब विधानसभा में सीटें बढ़ गई हैं. 90 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस महज 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है तो क्या केंद्र शासित प्रदेश में यह समझौता उसके लिए घाटे का सौदा है?
श्रीनगर स्थित नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के आवास पर दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर सहमति बनी. समझौते के तहत 2 सीटों पर गठबंधन की साझेदार दल मार्क्सवादी कांग्रेस पार्टी (CPM) और जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी (JKNPP) एक-एक सीट पर चुनाव लड़ेंगी. इसके अलावा दोनों दलों के बीच केंद्र शासित प्रदेश की 6 सीटों पर ‘दोस्ताना मुकाबला’ होगा. हालांकि पार्टी के आधार पर अभी सीटों का बंटवारा किया जाना है.
वोट शेयरिंग में चौथे स्थान पर रही थी कांग्रेस
तो क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ कांग्रेस का समझौता उसके लिए घाटे का सौदा है? 10 साल पहले 2014 में जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम पर इस समझौते का आकलन करते हैं. तब के चुनाव में कांग्रेस ने 86 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव में उसे 18.36 फीसदी वोट मिले थे. वोट शेयर के हिसाब से कांग्रेस तीसरे चौथे पायदान पर रही थी.
कांग्रेस के 86 उम्मीदवारों में से महज 12 को ही जीत मिल सकी, जबकि 47 प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई थी. बतौर राष्ट्रीय दल चुनाव में 6 पार्टी चुनाव में उतरी थीं. मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी ने 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 49 की जमानत जब्त हो गई थी. इसी तरह कांग्रेस के 86 में से 47 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी. इसी तरह कांग्रेस की चुनावी साझेदार बनी जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 85 सीटों पर चुनावी चुनौती पेश की और उसकी 29 सीटों पर जमानत जब्त गई थी. इस तरह से दोनों दलों को पिछले चुनाव में खासा नुकसान उठाना पड़ा था.
PDP-BJP रही सबसे कामयाब पार्टी
चुनाव परिणाम को देखें तो 2014 में जम्मू-कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सबसे कामयाब पार्टी रही थी. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने 84 सीटों पर चुनौती पेश की थी जिसमें उसे 28 सीटों पर जीत मिली. दूसरे नंबर पर 75 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) रही जिसे 25 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी को हालांकि सभी जीतें जम्मू संभाग में मिली थी. उसकी 40 सीटों पर जमानत जब्त हुई थी और यह कश्मीर संभाग में हुआ था.
कांग्रेस को 86 सीटों में से 12 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि 19 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही तो 26 सीटों पर उसकी ओर से कड़ी चुनौती पेश की गई और तीसरे स्थान पर रही थी. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (22) के बाद कांग्रेस ही वो पार्टी रही जो सबसे अधिक 19 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी. इसी तरह कांग्रेस सबसे अधिक 19 सीटों पर तीसरे नंबर पर रही. इसके उलट बीजेपी के प्रदर्शन को देखें तो 75 सीटों में से उसे 15 सीटों पर जीत मिली. जबकि 7 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही तो 6 सीटों पर वह तीसरे नंबर पर रही थी.
तो गठबंधन कांग्रेस के लिए फायदेमंद!
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग तय हो चुकी है जबकि सीटों का बंटवारा करना अभी बाकी है. इस चुनाव में कांग्रेस 2014 के चुनाव की तुलना में आधे से भी कम सीट पर चुनाव लड़ने को राजी हो गई है. 2014 में कांग्रेस 86 सीटों पर लड़ी थी तो 2024 में गठबंधन के तहत 32 सीटों पर ही लड़ने जा रही है. 6 सीटों पर दोनों दलों के बीच दोस्ताना मुकाबला होगा, ऐसे में कांग्रेस कुल 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी.
10 साल पहले हुए चुनावी परिणाम के आधार पर देखें तो कांग्रेस भले ही कम सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर रही हो, लेकिन यहां की सियासत में अहम स्थान रखने वाले दो दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों पार्टियों के परिणाम को मिला लिया जाए तो उन्हें कुल 27 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि 52 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही तो 45 सीटों पर तीसरे स्थान पर रही थी.
अब मिलकर चुनाव लड़ने से दोनों के बीच वोटों का बंटवारा नहीं होगा. पिछली बार 27 सीटें जीतने वाले इन दोनों दलों को केंद्र शासित प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए कम से 45 सीटें चाहिए होंगी. इस तरह गठबंधन के लिहाज से कांग्रेस घाटे में जाती नहीं दिख रही है. घाटी में पार्टी का वोट शेयर बढ़ने की संभावना नजर आ रही है तो जम्मू संभाग में दोनों दल मिलकर बीजेपी को कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं. कुल मिलाकर चुनाव दिलचस्प होने वाला है.