भारत में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत कम है ?
लैंगिक असमानता: महिलाएं अब भी पीछे, क्या सरकार को फर्क पड़ता है?
क्या भारत सरकार ने यह जानने की कोशिश की है कि ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत की रैंकिंग क्यों गिर रही है? क्या महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार हो रहा है और किन क्षेत्रों में अभी भी समस्याएं हैं?
अगर हम पिछले कुछ सालों को देखें तो भारत की स्थिति लगभग ऐसी ही रही है. यह चिंता की बात है क्योंकि इससे पता चलता है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच बराबरी लाने के लिए हम जितनी कोशिश करनी चाहिए, उतनी नहीं कर पा रहे हैं.
हालांकि, यह रिपोर्ट यह नहीं बताती कि महिलाओं की स्थिति कितनी अच्छी या बुरी है, बल्कि यह बताती है कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कितने अधिकार मिले हुए हैं. इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि अलग-अलग देशों में और समय के साथ महिलाओं और पुरुषों के बीच कितना अंतर है.
आखिर, क्या भारत सरकार ने यह जानने की कोशिश की है कि ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत की रैंकिंग क्यों गिर रही है? क्या सरकार महिलाओं और पुरुषों से जुड़े आंकड़े इकट्ठा करती है और उनका अध्ययन करती है ताकि यह देखा जा सके कि महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार हो रहा है और किन क्षेत्रों में अभी भी समस्याएं हैं? ऐसे लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से कई तरह के सवाल पूछे गए कि सरकार ने सिर्फ अपनी तमाम योजनाओं के बारे में बता दिया. असल सवालों का जवाब नहीं दिया.
पहले जानिए महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कितने मौके मिल रहे
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं और पुरुषों की सेहत में अंतर काफी कम हो गया है. 95.1% अंतर खत्म हो चुका है. पढ़ाई-लिखाई के मामले में भी भारत में काफी सुधार हुआ है. 96.4% अंतर खत्म हो चुका है. लेकिन दुनिया के दूसरे देशों ने इससे भी ज्यादा तरक्की की है. इसलिए, 146 देशों में शिक्षा के मामले में भारत 112वें स्थान पर है और सेहत के मामले में 142वें स्थान पर.
नौकरी और पैसा कमाने के मामले में भारत में महिलाओं को अभी भी बहुत कम मौके मिलते हैं. भारत का स्कोर सिर्फ 39.8% है, जो यह दर्शाता है कि यहां महिलाओं और पुरुषों में आर्थिक बराबरी बहुत कम है. बांग्लादेश (31.1%), सूडान (33.7%), ईरान (34.3%), पाकिस्तान (36%) में आर्थिक बराबरी की स्थिति भारत से भी बुरी है.
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत कम है. सिर्फ 25.1% अंतर ही खत्म हो पाया है. भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी कम है, लेकिन दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत की रैंकिंग (65वां स्थान) ज्यादा अच्छी है. यह इसलिए है क्योंकि दुनिया के अधिकतर देशों में भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है.
2021 में भारत 51वें स्थान पर था, लेकिन अब वह 65वें स्थान पर आ गया है. यह दर्शाता है कि पिछले दो सालों में भारत में स्थिति बिगड़ गई है. यह 2014 से भी बुरी है जब भारत का स्कोर 43.3% था. दुनियाभर में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में प्रगति बहुत धीमी है. अधिकतर देशों में अभी भी महिलाओं को राजनीति में बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है.
महिलाओं को पीछे रखने की चुकानी पड़ती है भारी कीमत
बहुत सारे शोध यह बताते हैं कि अगर हम महिलाओं को मौका नहीं देंगे, तो हमें बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान होगा. OECD के अनुमान के मुताबिक, अगर समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव होता रहेगा तो पूरी दुनिया को 12 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है. लेकिन अगर महिलाओं को बराबर का मौका दिया जाए, तो देश की आर्थिक तरक्की की रफ्तार बढ़ जाएगी.
लैंगिक असमानता से क्या वर्तमान सरकार को फर्क पड़ता है?
ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2024 की रिपोर्ट पर लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने कहा कि भारत सरकार इस बारे में जागरूक है. सरकार महिलाओं-पुरुषों में बराबरी लाने के लिए कई प्रयास कर रही है. सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि महिलाओं को नौकरी और पैसा कमाने के बराबर मौके मिलें. इसके लिए सरकार ने कई कानून बनाए हैं जिनमें महिलाओं के लिए खास प्रावधान हैं.
मातृत्व लाभ अधिनियम: इस कानून में 2017 में बदलाव किए गए थे जिससे अब महिलाओंको दो बच्चों तक 12 हफ्ते की बजाय 26 हफ्ते की छुट्टी मिलती है जब वो मां बनती हैं. इस कानून में यह भी कहा गया है कि अगर हो सके, तो महिलाएं छुट्टी के बाद ‘घर से काम’ कर सकती हैं. इसके लिए मालिक और कर्मचारी को आपस में बात करके तय करना होगा कि यह कैसे होगा.
कामकाजी महिलाओं के लिए बेहतर माहौल है?
राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने बताया कि सरकार ने चार नए कानून बनाए हैं जो कामकाजी महिलाओं के लिए बेहतर माहौल बनाने में मदद करते हैं. ये कानून हैं: वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020, व्यावसायिक सुरक्षा स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 2020. इन कानूनों में ऐसे कई नियम हैं जो महिलाओं को इज्जत के साथ काम करने का अधिकार देते हैं.
कानून के अनुसार, महिलाओं के साथ उनकी सैलेरी, नौकरी और काम की स्थिति के मामले में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता. महिलाएं सुबह 6 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद भी काम कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए उनकी मंजूरी जरूरी है. उनकी सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए.
क्या राजनीति में सच में कम हो रही महिलाओं की भागीदारी?
इस पर राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर का कहना है कि इस समय हमारे देश की राष्ट्रपति एक महिला हैं. गांवों और छोटे शहरों में महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व की हैं. पंचायतों में चुनी गई महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है. आज पंचायती राज संस्थाओं में 31 लाख चुने हुए प्रतिनिधियों में से 14 लाख यानी 46% महिलाएं हैं. यह संविधान में दिए गए आरक्षण से भी ज्यादा है और दुनियाभर में स्थानीय सरकारों में महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या है.
2023 में भारतीय संसद ने एक ऐतिहासिक कानून पास किया जिसका नाम है नारी शक्ति वंदन अधिनियम. यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि देश की संसद (लोकसभा) और सभी राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हों.
क्या सरकार महिलाओं और पुरुषों से जुड़े आंकड़े इकट्ठा करती है?
भारत सरकार यह जानना चाहती है कि देश में महिलाओं की स्थिति कैसी है और सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का उन पर क्या असर हो रहा है. इसके लिए सरकार कई तरह के आंकड़े इकट्ठा करती है. सरकार के अलग-अलग मंत्रालय और विभाग अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों की निगरानी के लिए आंकड़े इकट्ठा करते हैं. इन आंकड़ों में यह भी देखा जाता है कि योजनाओं का फायदा महिलाओं और पुरुषों को कितना मिल रहा है.
सरकार ने बताया कि कई तरह के सर्वेक्षण और जनगणना करवाई जाती है जिनसे महिलाओं और पुरुषों की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है. सरकार ने यह भी तय किया है कि वह दुनिया भर में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट्स का भी अध्ययन करेगी ताकि यह पता चल सके कि भारत को किन क्षेत्रों में सुधार करने की जरूरत है.
किन सवालों का सरकार ने नहीं दिया जवाब?
कई बार ऐसा होता है कि सरकार सीधे सवालों का जवाब देने से बचती है और अपनी उपलब्धियों या योजनाओं का बखान करने लगती है. ऐसा लगता है कि लोकसभा में पूछे गए सवालों के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है. सवाल पूछा गया कि क्या सरकार को पता है कि दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत में महिलाओं और पुरुषों में बराबरी के मामले में हमारी स्थिति पिछले कुछ सालों में खराब हुई है? जवाब में सरकार ने अपनी विभिन्न योजनाओं (बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मिशन शक्ति, समग्र शिक्षा आदि) के बारे में बताया. जबकि सरकार को यह स्वीकार करना चाहिए था कि रैंकिंग गिर रही है और इसके कारणों पर प्रकाश डालना चाहिए था.
सरकार से पूछा गया कि क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि दुनिया में महिलाओं और पुरुषों में बराबरी के मामले में भारत की रैंकिंग क्यों गिर रही है? अगर हां, तो किन क्षेत्रों में तुरंत ध्यान देने और सुधार करने की जरूरत है? इसपर सरकार ने फिर से अपनी योजनाओं का जिक्र किया और यह बताया कि वह महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए क्या-क्या कर रही है. जबकि सरकार को रैंकिंग गिरने के कारणों (जैसे, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, शिक्षा और रोजगार में भेदभाव आदि) का विश्लेषण करना चाहिए था और उन्हें दूर करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताना चाहिए था.
यह चिंताजनक है कि सरकार लैंगिक असमानता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सीधे सवालों के जवाब देने से बच रही है.