2025 में योगी के नाम पर हो सकती है चर्चा ?
2013 के कुंभ में BJP के PM कैंडिडेट के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगी थी। नरेंद्र मोदी उम्मीदों पर खरे उतरे। वे अब तक चौकन्ने रहकर देश का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन उनके उत्तराधिकारी की चर्चा तो अब शुरू करनी पड़ेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS के प्रांत स्तर के एक पदाधिकारी दैनिक भास्कर को बताते हैं कि प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ में BJP के अगले PM कैंडिडेट के नाम का प्रस्ताव आ सकता है। वे बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ के नाम पर सभी की रजामंदी है। अभी लोकसभा चुनाव दूर हैं, इसलिए सीधे तौर पर उनके नाम का ऐलान नहीं होगा। हालांकि उन्हें प्रोजेक्ट करने की पूरी तैयारी है।
महाकुंभ 13 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाला है। 12 साल पहले प्रयागराज में ही RSS ने नरेंद्र मोदी का नाम संतों के सामने रखा था। उनके समर्थन के बाद नरेंद्र मोदी को BJP का PM कैंडिडेट बनाया गया। क्या इस बार ऐसा ही योगी आदित्यनाथ के लिए होगा, दैनिक भास्कर ने इस मसले पर RSS और विश्व हिंदू परिषद में अपने सोर्स से बात की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट-
RSS की तरफ से संकेत, योगी आदित्यनाथ ही भविष्य के लीडर
लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव, योगी आदित्यनाथ का नाम BJP के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल है। वे राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड से लेकर साउथ में तमिलनाडु और तेलंगाना तक चुनावी रैलियां कर चुके हैं।
नवंबर में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे का असर भी दिखा। यहां उन्होंने 11 रैलियां कर 17 कैंडिडेट के लिए वोट मांगे थे। इनमें 15 चुनाव जीत गए।
योगी आदित्यनाथ ने ये नारा यूपी में 9 सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान बार-बार दोहराया। इसके बाद यही नारा महाराष्ट्र में इस्तेमाल हुआ। PM मोदी ने 5 अक्टूबर को ठाणे और वाशिम में हुई रैलियों में अलग ढंग से यही बात कही।
RSS के पदाधिकारी बताते हैं, ‘बंटेंगे तो कटेंगे का नारा भले योगी आदित्यनाथ के मुंह से निकला हो, लेकिन इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। ये RSS की शाखाओं में गाया जाने वाला बहुत पुराना गीत है। इसे आजादी के समय से गाया जाता है। ये गीत था-
‘इतिहास कहता है कि हिंदू भाव को जब-जब भूले, आई विपदा महान, भाई छूटे, धरती खोई, मिटे धर्म संस्थान’
यही बात मथुरा की बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कही थी। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में एकता नहीं रहेगी, तो आजकल की भाषा में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ हो सकता है।
तो क्या PM कैंडिडेट के लिए योगी के नाम पर मुहर लगेगी
हमने RSS पदाधिकारी से कुछ और सवाल पूछे। कुंभ में इस बार हिंदू एकता की चर्चा होगी, क्या किसी बडे़ मुद्दे पर चर्चा होगी या फिर कोई बड़ा फैसला लिया जाएगा?
हंसते हुए उन्होंने कहा, ‘इसकी चर्चा तो हम कई साल से कर रहे हैं। ये हमारे करिकुलम में बहुत पहले से है। इसकी चर्चा कुंभ में क्यों करें। इस बार चर्चा RSS के उस गीत को दोबारा चर्चा में लाने वाले की होगी। चर्चा होगी कि देश का भविष्य किसके हाथों में सुरक्षित रहेगा। चर्चा होगी कि नया सूर्य कौन होगा।’
RSS के पदाधिकारी कहते हैं, ‘ये सब उस तरह नहीं होगा, जैसे मोदी के नाम पर मुहर लगी थी।’
हमने इस बात का मतलब पूछा। वे जवाब देते हैं, ‘तब कुंभ के अगले साल लोकसभा चुनाव थे। इसलिए PM पद के लिए चेहरे पर पक्की मुहर के लिए उस आयोजन से बेहतर कोई और वक्त नहीं हो सकता था।’
‘इतने बड़े स्तर पर हिंदू समाज के संगठन और साधु-संतों का जमावड़ा फिर कहां मिलता। इस बार कुंभ और चुनाव के बीच 4 साल का फासला है। नाम पर तो चर्चा होगी, लेकिन सभी संगठनों के बीच एक प्रस्ताव की तरह इसे लाया जाएगा।’
क्या योगी के अलावा कुछ और नाम भी कतार में हैं?
पदाधिकारी बताते हैं, ‘लिस्ट में मोटे तौर पर अब तक तो योगी ही हैं।’
धीरे-धीरे जमीन तैयार करना RSS की स्टाइल
प्रयागराज में मिले विश्व हिंदू परिषद के प्रांत स्तर के एक पदाधिकारी योगी आदित्यनाथ का नाम और भी मजबूती से लेते हैं। उनका ताल्लुक उत्तराखंड से है। वे कहते हैं, ‘RSS किसी को ऐसे ही आगे नहीं लाता। उसके लिए जमीन तैयार होती है। जमीन पर खाद-पानी दिया जाता है। पहले छोटा सा अंकुर फूटता है और फिर पौधा। यही RSS के काम करने का तरीका है।’
वे आगे कहते हैं, ‘जिस सवाल के जवाब की पुष्टि आप मुझसे करा रही हैं, उसे घटनाओं के क्रम में जोड़कर देखेंगी, तो आपको सटीक जवाब मिल जाएगा। RSS की शाखाओं में गाया जाने वाला गीत यूपी के CM योगी के मुख से समय-काल-परिस्थिति के रूप में ढलकर नए अंदाज में बिना किसी उद्देश्य के नहीं निकला।’
बातचीत खत्म करते हुए उन्होंने कहा- ‘कुंभ में मिलेंगे तो और चर्चा होगी।’
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बोले- हर बार कोई बड़ा फैसला होता ही है
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और कुंभ मेले के आयोजकों में शामिल रविंद्र पुरी से हमने पूछा- क्या इस बार योगी आदित्यनाथ का नाम PM पद के लिए आएगा?
वे कहते हैं, ‘योगी जी हिंदू धर्म और सनातन के सबसे मजबूत स्तंभ हैं। वे कतार में हैं। उनकी दावेदारी मजबूत है। कतार में तो अमित शाह का नाम भी है, लेकिन अभी मोदी जी बहुत एक्टिव हैं। किसी PM के पद पर रहते दूसरे कैंडिडेट की चर्चा ठीक नहीं।’
हमने कहा- पर भविष्य के बारे में तो सोचना पड़ेगा न?
जवाब मिला, ‘हां, वो तो सोच रहे हैं। चर्चा होगी, पर अभी 2013 की तरह नारे नहीं लगेंगे।’
2013 के कुंभ में कैसे आया था नरेंद्र मोदी के नाम का प्रस्ताव
सवाल के जवाब में RSS से जुड़े एक शख्स पूरी कहानी सुनाते हैं। उनका परिवार कई दशकों से RSS में है। वे कहते हैं, ‘संघ प्रमुख मोहन भागवत को मनाने से लेकर नरेंद्र मोदी के नाम का प्रस्ताव लाने और मुहर लगने तक की प्रक्रिया का मैं चश्मदीद गवाह हूं। उस वक्त कॉलेज में था। मेरे दादाजी विश्व हिंदू परिषद के प्रांत अध्यक्ष थे। विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख रहे अशोक सिंघल से हमारे परिवार का बहुत जुड़ाव था।’
‘2012 से ही नरेंद्र मोदी के नाम पर अशोक सिंघल संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुहर लगवाना चाहते थे। मोहन भागवत उनके नाम पर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे।’
‘बहुत कोशिशों के बाद अशोक सिंघल ने मोहन भागवत को नरेंद्र मोदी के नाम पर राजी कर लिया। उसके बाद कुंभ में धर्म संसद हुई। उसमें मोहन भागवत ने हिंदू और संत समाज के बीच पहली बार PM पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम लिया था।’
वे कहते हैं, ‘धर्म संसद का आखिरी दिन था। तारीख 5 फरवरी, 2013 थी। करीब 10 हजार दंडी स्वामी मौजूद थे। सभी ने चिमटा बजाकर मोदी का नाम लिया। उनके नाम के नारे लगाए। कहा कि हमारे PM नरेंद्र मोदी होंगे। फिर यही नारे जनता के बीच भी लगे। ये जनता संतों की भक्त थी। ये मीडिया और पब्लिक के बीच नरेंद्र मोदी का नाम PM कैंडिडेट के तौर पर लाने की प्लानिंग थी।’
क्या नरेंद्र मोदी को लाने का श्रेय अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया को जाता है?
जवाब मिला, ‘अशोक सिंघल को ही जाता है। तोगड़िया जी इस विचार से पूरी तरह सहमत नहीं थे। हालांकि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कभी असहमति नही जताई। धीरे-धीरे वे संगठन के कामों से दूर हो गए और अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद नाम का नया संगठन बनाया। सिंघल जी और तोगड़िया जी के बीच वैसे भी कुछ बातों और विचारों पर भिन्नता थी। सिंघल जी ने भी इसे कभी सामने नहीं आने दिया।’
‘आडवाणी रेस में आगे थे, लेकिन संतों ने मोदी को चुना’
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी 2013 के कुंभ में नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगने की कहानी बताते हैं। मोदी उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे। रविंद्र पुरी कहते हैं, ‘संत समाज ने 2010 से ही अलग-अलग मंचों पर PM पद के उम्मीदवार के लिए नरेंद्र मोदी का नाम लेना शुरू कर दिया था। कुंभ की धर्म संसद में तो उनके नाम पर मुहर लगी थी। ये सारी प्लानिंग पहले से थी।’
क्या PM पद की रेस में कुछ और नाम थे? रविंद्र पुरी जवाब देते हैं, ‘हां, रेस में लालकृष्ण आडवाणी बहुत आगे थे, लेकिन संत समाज मानता था कि नरेंद्र मोदी पक्के सनातनी हैं। सनातन धर्म की रक्षा वही कर सकते हैं। इसलिए संतों ने एकमत से उन्हें चुना।’
‘इस प्रस्ताव पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सीधे कुछ नहीं कहा। इतना जरूर कहा कि संतों की वाणी ही देववाणी है। तब BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह ने कहा कि संतों की भावना हम तक आई है। इससे अलग कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। मैं ये प्रस्ताव ऊपर तक ले जाऊंगा।’
अशोक सिंघल ने 2012 में दिया था नरेंद्र मोदी के नाम का संकेत
RSS के सूत्र बताते हैं, ‘2012 में अशोक सिंघल ने कई मंचों से नरेंद्र मोदी के नाम का संकेत देना शुरू कर दिया था। प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय केसर भवन में धर्म अर्पण रक्षा निधि का कार्यक्रम था। इसमें सालभर के लिए फंड जुटाया जाता है।’
‘नरेंद्र मोदी के नाम पर अशोक सिंघल पूरी तरह कॉन्फिडेंट थे। अगले ही साल कुंभ होना था। अशोक सिंघल ने RSS और BJP से पहले संत समाज को राजी किया। कुंभ में भी नरेंद्र मोदी का नाम सबसे पहले संत समाज ही लाया था।’
संतों के बीच नारायणी संप्रदाय के संत लाए थे मोदी का नाम
नारायणी संप्रदाय के एक संत कुंभ में शामिल हुए थे। उन्होंने धर्म संसद के पहले दिन संतों को बताया, ‘मैं गंगा स्नान कर रहा था, अचानक एक चिंता मेरे मन से निकली। मैंने मां गंगा से कहा, भारत का उद्धार कैसे होगा। मैंने आंखें बंद कीं, तो नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने आया।’
‘नारायणी संप्रदाय के संत के बाद वासुदेवानंद शंकराचार्य ने नरेंद्र मोदी के नाम पर सबसे पहले मुहर लगाई और उनका नाम संतों के सामने रखा।’
कुंभ के लिए देश भर में हिंदू संप्रदाय के मठाधीशों को न्योता
25-26 अक्टूबर को मथुरा में हुई बैठक में कुंभ पर चर्चा हुई थी। सूत्र के मुताबिक, ‘इस बार कुंभ में हिंदू समाज के उन पंथ, संप्रदाय, जातियों और जनजातियों को जोड़ने पर सहमति बनी है, जिन्हें अब तक कुंभ में न्योता देकर नहीं बुलाया गया। इस लिस्ट में सबसे ऊपर लिंगायत मठ के मठाधीश हैं।’
‘इसके अलावा कई जनजातियां हैं। इनमें नॉर्थ-ईस्ट की जनजातियों के संगठनों को बुलाने की तैयारी हो रही है। नॉर्थ-ईस्ट से कार्बी, जैनतिया, देवरी, खासी, कुकी और मैतेई जनजातियों को बुलाया जाएगा।’
मणिपुर में कुकी और मैतेई के बीच हिंसा चल रही है, फिर भी उन्हें बुलाने का प्लान है?
‘हां, विवाद है, तभी तो और जरूरी है। उन्हें एक साथ लाना है। अभी फाइनल लिस्ट तैयार होनी है। कुंभ का भूमि पूजन हो जाए, उसके बाद और नाम तय हो जाएंगे।’
‘लिंगायत समुदाय का दक्षिण भारत की राजनीति पर अच्छा प्रभाव है। खास तौर से कर्नाटक और महाराष्ट्र में इनका बहुत असर है। कुंभ के निमंत्रण पर कर्नाटक में लिंगायत संप्रदाय के सबसे बड़े मठ के स्वामी सरन बासवलिंगा कहते हैं, ‘हमसे कॉन्टैक्ट किया गया है। प्रधानमंत्री के ऑफिस से फोन आया है। राम मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख नृत्यगोपाल दास ने भी फोन किया था कि आपको कुंभ में आना है।’
तो आप कुंभ में रहेंगे न?
स्वामी सरन बासवलिंगा कहते हैं, ‘अभी विचार करेंगे। कुंभ में बहुत लड़ाई-झगड़ा होता है। हिमालय से नागा साधु आते हैं। वे किसी को रहने नहीं देते। उन्हें कंट्रोल किया गया तो आने का विचार कर सकते हैं।’
क्या और मठों को भी न्योता भेजा गया है? जवाब मिला, ‘कांचीपीठ मठ, श्रृंगेरी मठ के साथ कुछ और मठों से भी कॉन्टैक्ट किया गया है। इन मठों के साथ मिलकर हम विचार करेंगे कि क्या करना है। जाना है या नहीं।
संतों के साथ स्नान करेंगे आदिवासी समुदाय के गुरु
कुंभ की तैयारियों में जुटी विश्व हिंदू परिषद की टीम के एक पदाधिकारी बताते हैं, ‘अब आदिवासी समुदाय कुंभ में हिस्सा लेने लगा है। खास तौर पर 2019 में इस समाज ने हिस्सा लिया था। इस बार खास तौर पर आदिवासी समुदाय को तवज्जो दी जाएगी।’
‘10.5 करोड़ आबादी वाले इस समुदाय को कुंभ में अलग से जगह मिलेगी। आदिवासी समुदायों के अपने गुरु और संत होते हैं। उन्हें दूसरे संतों की तरह तवज्जो मलेगी। उनका स्नान भी संतों के साथ ही तय होगा।’
सूत्र बताते हैं, ‘कुंभ में हर बार हजारों साध्वियां भी आती हैं। उनका अलग से सम्मेलन या बैठक नहीं होती। इस बार साध्वियों का सम्मेलन और संबोधन होगा। उनकी भावना और आवाज को तरजीह मिलेगी।’
इस बार धर्म संसद नहीं होगी
विश्व हिंदू परिषद के एक पदाधिकारी बताते हैं, ’धर्म संसद का कॉन्सेप्ट VHP का है। इसे कुंभ में लगाया जाता है। ये तब बैठती है, जब कोई बड़ा फैसला लेना हो। इस बार कुंभ में धर्म संसद नहीं होगी। इस बार कई विषयों पर चर्चा होगी, उनके प्रस्ताव बनेंगे, पर निर्णय नहीं लिया जाएगा। आर्टिकल 370 और PM पद के उम्मीदवार का फैसला लिया गया, तब संसद बैठी थी। इसके प्रस्ताव पहले बन गए थे।’
’24 जनवरी, 2025 को मार्गदर्शक मंडल की बैठक होगी। इसमें महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर चर्चा होगी। फिर उन्हें संत समाज के बीच लाया जाएगा। 25-26 जनवरी को संत सम्मेलन होगा।’
सनातन बोर्ड का प्रस्ताव लाने की भी तैयारी
इस बार कुंभ में सनातन बोर्ड का प्रस्ताव आ सकता है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी कहते हैं, ‘ये प्रस्ताव जरूर आएगा। वक्फ बोर्ड के बारे में मुस्लिम समुदाय ने बहुत पहले सोच लिया था। सनातन धर्म को एक मंच पर लाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया। बोर्ड एक तरह से वो मंच होगा, जिसमें सनातनियों का जुटान होगा। सनातन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी। धर्म और धार्मिक स्थानों के बारे में विचार होगा।’