जिंदगी की हर स्टेज पर हमें शिक्षक की जरूरत क्यों है?
जिंदगी की हर स्टेज पर हमें शिक्षक की जरूरत क्यों है?
मैं हाल ही में एक साधु से मिला, जिन्होंने खरगोश पाला हुआ था। उन्होंने कहा, “यह वही तुम्हारे बचपन में सुनी खरगोश-कछुए की कहानी वाला खरगोश है। बैठो और उसका इंटरव्यू करो।’ और तब खरगोश की ओर से साधु बोलने लगे, ‘हां, मैं वही खरगोश हूं, जो हार गया था।
चूंकि किसी पत्रकार ने आकर मुझसे नहीं पूछा, इसलिए मैं खुद ही अपनी कहानी बताता हूं।’ “मैं आलसी नहीं था। मैं तेजी से कूदकर भागा और जब मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो कछुआ मुझसे काफी पीछे था। रेस शुरू होने से पहले वो कछुआ बिना रुके सैकड़ों मील तक चलने की अपनी क्षमता की शेखी बघार रहा था, क्योंकि जीवन मैराथन है, कोई फर्राटा दौड़ नहीं।
मैं उसे दिखाना चाहता था कि मैं दोनों कैटेगरी में दौड़ सकता हूं। उस पर अच्छी बढ़त बनाने के बाद मैंने हल्की झपकी लेने का तय किया, क्योंकि जीत की चिंता से मैं सारी रात जागा रहा। केले के पेड़ के नीचे, घास से भरी वह गोलाकार चट्टान किसी तकिए जैसी थी। जैसे ही मैंने उस पर अपना सिर रखा, मधुमक्खियां गीत गाने लगीं और सरसराहट भरी आवाज के साथ पत्तियां ऑर्केस्ट्रा बजाने लगीं। उन सबने मिलकर मुझे सुलाने का षड्यंत्र रचा और उन्हें सफल होने में देर नहीं लगी।’
मैं सपने में एक खूबसूरत जलधारा में लकड़ी के सहारे बह रहा था, जो मुझे एक किनारे ले आई, जहां ये साधु ध्यानमग्न थे। उन्होंने आंखें खोली, चिर-परिचित मुस्कान दी और पूछा, ‘तुम कौन हो?’ ‘मैं खरगोश हूं और एक रेस में दौड़ रहा हूंं।’ ‘क्यों?’ ‘जंगल में सारे जीव-जंतुओं को यह साबित करने के लिए कि मैं सबसे तेज हूं।’ “तुम क्यों साबित करना चाहते हो कि तुम सबसे तेज हो?’ “ताकि मुझे मेडल मिले, जिससे मुझे सामाजिक दर्जा, पैसा और खाना मिलेगा…।’
जंगल की ओर इशारा करते हुए उन साधु ने कहा, “खाना तो आसपास पहले से ही बहुत है। उन सभी पेड़ों को देखो जो फलों से लदे हैं, उन सभी पत्तेदार शाखाओं को देखो।’ मैंने कहा, “मुझे भी सम्मान चाहिए। मैं भी अभी तक के सबसे तेज धावक के रूप में याद रखा जाना चाहता हूं।’
“क्या तुम्हें सबसे तेज भागने वाले हिरण या सबसे बड़े हाथी या सबसे शक्तिशाली बाघ का नाम मालूम है, जो तुमसे हजारों सालों पहले रहते थे?’ “नहीं।’ “आज तुम्हें एक कछुए ने चुनौती दी है। कल को कोई घोंघा होगा। क्या तुम जिंदगीभर यह साबित करने के लिए दौड़ते रहोगे कि तुम सबसे तेज हो।’ “हम्म्म.. मैंने इसे बारे में नहीं सोचा।
मैं अपनी पूरी जिंदगी दौड़ नहीं लगाना चाहता।’ “फिर क्या करना चाहते हो?’ “मैं घास से आच्छादित इस गोल चट्टान पर सोना चाहता हूं।’ “ये सब तुम अभी ही कर सकते हो। रेस के बारे में भूल जाओ। तुम आज यहां हो पर कल को तुम चले जाओगे।’ मैं अपनी नींद से जागा क्योंकि बत्तखों ने मुझे जगाया। उन्होंने एक सुर में पूछा, “आज तो तुम्हारी कछुए से रेस थी न?’
मैंने बत्तखों से कहा, “ये बेफिजूल है। व्यर्थ का अभ्यास। मैं बस यहीं होना चाहता हूं।’ इसलिए मैं रेस हार गया और वापस अपनी जिंदगी में लौट आया। मैं आज और बाकी बचे दिनों में भी जिंदगी को पूरी तरह जीना चाहता हूं। इसलिए मैंने रेस बंद कर दी।
याद करिए, हम सब खरगोश-कछुए की वही कहानी जानते हैं, जो स्कूल के टीचर ने हमें सुनाई थी। ठीक इसी तरह, प्रबंधन सिखाने वाले संस्थानों के शिक्षक बताते हैं कि कैसे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, बिजनेस के जंगल में दो स्मार्ट एग्जीक्यूटिव (पढ़ें खरगोश और कछुआ) एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और दूसरे खरगोश-कछुए (पढ़ें अन्य बिजनेस) के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और एक नया मैनेजमेंट शब्द गढ़ते हैं- ‘कोऑपरेशन इन कॉम्पिटीशन’ यानी प्रतिस्पर्धा में सहयोग, जहां उस बिजनेस रेस को जीतने के लिए जमीन पर भागते हुए खरगोश कछुए को अपनी पीठ पर ले जाता है और तैरते हुए कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर ले जाता है।
फंडा यह है कि इंसान को जीवन की अलग-अलग स्टेज और अपने खुद को मानकों के अनुसार जीवन जीना चाहिए, न कि दुनिया के लोगों के अनुसार।