नेशनल कॉन्फ्रेंस की कहानी !

नेशनल कॉन्फ्रेंस की कहानी: 92 साल पहले गठन, कांग्रेस में भी हो चुका विलय, पार्टी तोड़ फारुख के जीजा बने थे सीएम
Jammu Kashmir National Conference: 1932 में फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने ऑल जम्मू कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। बाद में इसका नाम जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस हुआ। 1965 में नेकां का कांग्रेस में विलय हो गया था। आइए जानते हैं नेशनल कॉन्फ्रेंस की पूरी कहानी
Journey of Jammu Kashmir National Conference and Politics of Abdullah Family In Hindi

अब्दुल्ला परिवार  

जम्मू कश्मीर में इन दिनों चुनावी प्रक्रिया चल रही है। 90 सीटों वाली विधानसभा के लिए करीब 10 साल बाद चुनाव होने जा रहे हैं। यहां तीन चरण में मतदान कराए जाएंगे। चुनाव से पहले तमाम बड़े दलों ने सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। यहां कांग्रेस ने फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन किया है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जहां भाजपा-पीडीपी ने तीन साल तक गठबंधन सरकार चलाई तो नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने विपक्ष की भूमिका निभाई थी। 

हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर में दो-दो सीटों के साथ भाजपा और नेकां ने जीत दर्ज की थी। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली। जम्मू कश्मीर के गठन के बाद ज्यादातर सरकारें तीन परिवारों ने ही चलाई है। इनमें अब्दुल्ला परिवार भी है जिसकी नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी  ने राज्य को कई मुख्यमंत्री दिए हैं। आइये जानते हैं नेशनल कॉन्फ्रेंस की पूरी कहानी…

स्वतंत्रता से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठन 
अक्तूबर 1932 में फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी। नेकां की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, शेख ने मीरवाइज यूसुफ शाह और चौधरी गुलाम अब्बास के साथ मिलकर इसका गठन किया था। 11 जून 1939 को ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का नाम बदल गया। अब इसका नाम बदलकर ऑल जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया गया। 

इस घटनाक्रम के साथ ही ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में कई बदलाव हो गए। जहां पार्टी नेतृत्व का एक धड़ा अलग हो गया, तो दूसरी ओर ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से संबंध रखते हुए मुस्लिम कॉन्फ्रेंस को फिर से स्थापित किया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑल इंडिया स्टेट्स पीपल्स कॉन्फ्रेंस से जुड़ी थी। 1947 में शेख अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष चुने गए। 1946 में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने राज्य सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के खिलाफ था। 

देश की आजादी के बाद की कहानी
सितंबर 1951 में हुए चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सभी 75 सीटें जीतीं। शेख अब्दुल्ला अगस्त 1953 में भारत के खिलाफ साजिश के आरोप में बर्खास्त होने तक प्रधानमंत्री बने रहे। शेख अब्दुल्ला को 9 अगस्त 1953 को गिरफ्तार कर लिया गया। दरअसल, 1965 तक जम्मू कश्मीर के संविधान के तहत राज्य में प्रधानमंत्री का पद होता था। 28 मार्च 1965 को राज्य संविधान में अपनाए गए छठे संशोधन द्वारा सदर-ए-रियासत को राज्यपाल और राज्य के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया गया।

जब पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ
1965 में नेशनल कॉन्फ्रेंस का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में विलय हो गया। इसके साथ ही यह कांग्रेस की जम्मू कश्मीर शाखा बन गई। शेख अब्दुल्ला को देश के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में 1965 में फिर से 1968 तक गिरफ्तार किया गया। अब्दुल्ला को केंद्र सरकार के साथ एक समझौते के बाद फरवरी 1975 में सत्ता में लौटने की अनुमति मिल गई। उसी दौरान शेख अब्दुल्ला के ‘प्लेबिसाइट फ्रंट’ गुट ने मूल पार्टी यानी नेशनल कॉन्फ्रेंस का नाम ले लिया। 
पिता की मृत्यु के बाद फारुख ने संभाली सीएम की कुर्सी 
इसके बाद आता है 1977 का साल जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव। इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की और शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। 8 सितंबर 1982 को शेख की मृत्यु के बाद उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। जून 1983 के चुनावों में, फारुख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने फिर से स्पष्ट बहुमत हासिल किया।
फारुख के जीजा ने तोड़ी पार्टी
जुलाई 1984 में फारुख अब्दुल्ला के जीजा गुलाम मोहम्मद शाह ने पार्टी को विभाजित कर दिया। राज्यपाल ने फारुख की जगह गुलाम मोहम्मद शाह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। मार्च 1986 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 

1987 के विधानसभा चुनावों में ने नेकां ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। बहुमत हासिल कर फारुख फिर से मुख्यमंत्री बने। 1990 में घाटी में बेकाबू होते हालात के चलते केंद्र सरकार ने अब्दुल्ला सरकार को बर्खास्त कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 1991 में राज्य के चुनाव रद्द कर दिए गए। ये वही दौर था जब कश्मीर ने आतंकवाद का चरम देखा।

फारुख के बेटे उमर ने सत्ता संभाली
हालात सुधऱने के बाद 1996 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में नेकां को फिर से सफलता मिली। पार्टी ने उस चुनाव में 87 में से 57 सीटें जीतीं। फारुख अब्दुल्ला ने 2000 में मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया, जिसके बाद उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने राज्य की सत्ता संभाली। 2002 के विधानसभा चुनावों में नेकां केवल 28 सीटें ही जीत सकी। इस चुनाव में जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) कश्मीर घाटी में सत्ता के दावेदार के रूप में उभरी। 

दिसंबर 2008 के विधानसभा चुनावों में, कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेकां 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। चुनावों के बाद 30 दिसंबर 2008 को नेकां ने 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। उमर अब्दुल्ला 5 जनवरी 2009 को इस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने।

पिछले विधानसभा चुनाव में नेकां का हाल 
2014 के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने नेकां के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया। पार्टी ने सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 15 सीटें जीतीं। दूसरी ओर पीडीपी ने 28 सीटें जीतीं और विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इसके अलावा भाजपा ने 25 सीटें जीतीं। उमर अब्दुल्ला ने 24 दिसंबर 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।  
ऐसा है अब्दुल्ला परिवार 
शेख अब्दुल्ला का निकाह बेगम अकबर जहां से हुआ था। शेख और बेगम अकबर के चार बच्चे हुए जिनमें फारुख अब्दुल्ला, सुरैया अब्दुल्ला अली, शेख मुस्तफा कमाल, खालिदा शाह शामिल हैं। फारुख अब्दुल्ला का निकाह मौली अब्दुल्ला से हुआ जबकि उनकी बहन सुरैया अब्दुल्ला अली का गुलाम मोहम्मद शाह से निकाह हुआ। गुलाम मोहम्मद शाह भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 

फारुख और मौली के चार बच्चे हुए जिनमें उमर, साफिया, हिना और सारा शामिल हैं। मुख्यमंत्री रहे उमर की शादी पायल नाथ से हुई थी जो बाद में अलग हो गईं। उमर की बहन सारा की शादी राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से हुई जो बाद में अलग हो गए। 

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