आर्टिकल 370 जैसे मसले भावनात्मक और बेमानी, कश्मीर के भविष्य पर काम करें राजनीतिक दल
आर्टिकल 370 जैसे मसले भावनात्मक और बेमानी, कश्मीर के भविष्य पर काम करें राजनीतिक दल
जम्मू- कश्मीर में पूरे 10 साल के बाद विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद ये पहला विधानसभा का चुनाव है, इससे पहले वहां पर लोकसभा चुनाव के लिए वोट डाले गए थे. अब विधानसभा के चुनाव में हर एक दल का अपना दावा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनुच्छेद 370 की पुनर्वापसी को अपने एजेंडे में शामिल किया है, तो कांग्रेस इस पर मौन है. कांग्रेस ने अपने एजेंडे में राज्य का स्टेटस फिर बहाल करने की बात कही है. भाजपा अपने घोषणा पत्र में राज्य के मुद्दे पर मौन है, ये आरोप कांग्रेस की ओर से लगाया गया है.
रोजगार है बड़ा मुद्दा
देखा जाए तो कश्मीर में सबसे बड़ा मुद्दा जो है वो आजकल पूरे भारत का भी वहीं मुद्दा है, और वो रोजगार का है. सभी जगहों पर रोजगार ही एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन उस पर चर्चा नहीं की जाती है. रोजगार के मुद्दे पर सरकार कहती है कि वो टूरिस्ट प्लेस को ठीक करके टूरिज्म को बढ़ावा देगी. जिससे वहां के लोगों को रोजगार खुद ब खुद मिलने लगेगा. अब इसमें भी अगर काम होता है, तो एक खास तरह की प्लानिंग होनी चाहिए, ताकि अचानक से ज्यादा लोग ना आ जाए और दिक्कत ना हो जाए.
सरकार की नई टूरिस्ट गाइडलाइन को देखें तो 2020 के बाद से काफी संख्या में टूरिज्म को बढ़ावा मिला है, काफी संख्या में लोग कश्मीर में आए हैं. कई जगहों पर विकास के काम हुए हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. लेकिन अब देखा जाए तो श्रीनगर जैसे ठंडे इलाकों में भी अब एयरकंडिशन चलने लगे हैं, जबकि 1996 के समय में वहां पर बड़ी मुश्किल से लोग पंखा चला पाते थे. क्योंकि वहां पर ठंड काफी अधिक होती है. कई घरों में तो पंखा तक नहीं होता था. आज वहां पर एयर कंडीशन चलने लगे हैं. इसलिए अब लोगों को पर्यावरण के प्रति बहुत ही जागरूक होने की जरूरत है. इस क्षेत्र में भी काम करने की जरूरत है. ये हाल जम्मू-कश्मीर में ही नहीं बल्कि हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में भी देखने के मिल रहा है. वहां पर भी टूरिज्म को लेकर, पर्यावरण के प्रति जागरूक होने के साथ काम करने की जरूरत है. पश्चिम बंगाल में भी पर्यावरण और घूमने के कुछ इलाके हैं, जिसमें सिलीगुड़ी और अन्य जगह आते हैं, जहां पर पहले कभी पंखा नहीं होते थे, अब वहां पर एसी लगने लगा है. ये हाल बीते 10-12 सालों के अंदर हुआ है.
वादी की हवाएं बदल रहीं
पहले लोग कश्मीर में घूमने जाते थे, लेकिन अब वहां पर भी एसी की जरुरत पड़ने लगे तो कोई क्यों वहां जाएगा? कश्मीर की हवाओं में एक अलग प्रकार की खुशबू है, जो कहीं और भारत में नहीं है, लेकिन अब वो बदलती जा रही है. कश्मीर में ट्रैफिक ज्यादा हो रहा है. अभी वैष्णो देवी के दर्शन पूजन के लिए लोग जाते हैं. कश्मीर तक रेल यात्रा जब सुगम हो जाएगी तो और भी पर्यटक आएंगे. इसके लिए एक पर्यटन पाॅलिसी लानी होगी, जिससे कि एक हद तक पर्यावरण और आर्थिकी दोनों को संतुलित किया जा सके.
कश्मीर की आबोहवा काफी ठीक है, तो फिर सरकार वहां पर एजुकेशनल हब क्यों नहीं बनाती? इसको सिर्फ शहरों तक ही क्यों केंद्रित किया जाए, बल्कि इससे दूर दराज के इलाकों तक ले जाने की जरूरत है. दूर दराज के इलाकों में अगर यूनिवर्सिटी खोले जाएं तो इससे उस क्षेत्र में एजुकेशन भी बढ़ेगा और उसके साथ वहां पर रोजगार के भी साधन उत्पन्न हो जाएंगे.
कश्मीर में कई जगहों से वस्तुओं और सामान का एक्सपोर्ट किया जाता हैं. ठंड के समय में तो ये और भी ज्यादा हो जाता है. कश्मीर के गुलमर्ग जैसे इलाकों में तो खासकर ध्यान देना होता है. हाल के दिनों में आंधी और तेज बारिश से सेब की फसल को काफी नुकसान हुआ है. सेब की फसल के साथ वहां के पेड़ों को भी काफी संख्या में क्षति हुई है. वहां की कृषि को लेकर भी सोचने की जरूरत है. कश्मीर में सड़कों की हालत काफी खराब है, उसको ठीक करने की जरूरत है इसके साथ ही वहां पर बिजली की समस्याएं है, उसको भी सुचारू रूप से उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है. अब वहां को लोगों को आगे की ओर देखने के लिए प्रेरित करना है, ना कि उनको पीछे की, इतिहास की बात के बारे में गुमराह करना है.
विकास के नाम पर लड़ा जाए चुनाव
राजनीतिक पार्टी भावनात्मक तरीके से चुनाव को देख रही है. कश्मीर के लोगों में अगर संविधान की जानकारी की थोड़ी भी समझ होगी, तो उनको ये पता होना चाहिए कि विधानसभा से कभी भी धारा 370 जैसे मसलों का हल नहीं हो सकता है. नेशनल कांफ्रेंस ये कह रही है कि हम कश्मीर का हाल 1953 जैसा वापस ला देंगे, तो ये सब चीजें नहीं हो सकती है. इसके लिए विधानसभा से कुछ नहीं होगा, बल्कि इसके लिए लोकसभा के साथ केंद्र में भी सरकार आनी होगी. अगर कोई बिल लाते भी हैं, तो वो पहले केंद्र को भेजा जाएगा. हालांकि बात करें तो अब धारा 370 के बारे में तो कोई चर्चा होनी ही नहीं चाहिए. जहां तक राज्य बनाने की मांग है तो अभी कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है. हाल में ही भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि जब समय आएगा तो कश्मीर को राज्य का दर्जा दे किया जाएगा.
कांग्रेस ने ये कहा है कि कश्मीर को उसका राज्य का हक दिला कर रहेंगे. कांग्रेस ये काम चुनाव से पहले चाहती है, लेकिन सरकार का कहना है कि चुनाव की स्थिति देखा जाएगा उसके बाद हालात की समीक्षा के बाद राज्य का दर्जा दिया जाएगा. वहीं दूसरी पार्टियों को फिर से 370 की वापसी, और हालात पहले जैसा बनाने की बातों से बचना चाहिए, इस तरह के बयान चुनाव से पहले भी अक्सर देखे जाते हैं. इसको एक जुमला के अलावा और किसी तरह नहीं देखा जा सकता है. अच्छी बात है कि केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद सरकार ने वहां पर विधानसभा चुनाव कराने का निर्णय लिया है. अब वहां की जनता अपने नुमाइंदे यानी की जनप्रतिनिधि चुन सकेंगे.
जनता चुन सकेगी अपने नुमाइंदे
इससे पहले वहां पर एलजी का शासन था, लेकिन अब वहां पर चुनाव होंगे तो लोग अपने प्रतिनिधि चुन पाएंगे. जनप्रतिनिधि जनता के संपर्क में रहते हैं. इसलिए चुनाव कराने की स्थिति काफी बेहतर कदम है. वहां के नेताओं को वहां की समस्याओं पर बात करना चाहिए, कि वहां लोगों को जीवन को आसान बनाएंगे, और उनके लिए काम करेंगे. ऐसे में नेताओं को वही बात करनी चाहिए, जो उनके बस में हो.
कश्मीर में त्रिकोणीय मुकाबला लग रहा है, लेकिन अगर किसी एक पार्टी को बहुमत मिल सकता है, तो वो एक मात्र भाजपा ही हो सकती है. ये तब होगा, जब भाजपा जम्मू में अधिकांश सीटें जीत लें. उसके बाद ही वहां बहुमत की सरकार बन सकती है, नहीं तो फिर वहां पर भी गठबंधन की सरकार ही बन सकती है. वहां पर एनसी और कांग्रेस का गठबंधन तो है, लेकिन अगर सब कुछ ठीक रहा तो इनकी जीत होने के बाद सरकार बन सकती है. सबसे ज्यादा निगाहें जम्मू के क्षेत्र में है कि वहां कौन सी पार्टी दूसरे पार्टी को नुकसान सीटों के माध्यम से पहुंचाती है.
युवा दिख रहे सक्रिय
भाजपा को ये उम्मीद थी कि गुलाम नबी आजाद उनके साथ आ सकते हैं, लेकिन उनकी पार्टी इस चुनाव में नहीं आई है, उनके पार्टी के लोग निर्दलीय तौर पर लड़ रहे हैं. एलजी एक संवैधानिक पद है, लेकिन 2019 के बाद से जो भी गलत कदम उठाए गए होंगे वो भाजपा के विरुद्ध ही जाएगा. इस चुनाव में कश्मीर के क्षेत्रों में युवा खूब अपने भागीदारी निभा रहे हैं. महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती पीडीपी से, शोपियां से यावर पीडीपी के टिकट से, मेहर अली सहित कई युवा इस चुनाव में भाग ले रहे हैं.
युवाओं के आने से ये लग रहा है कि उनको लोकतंत्र पर विश्वास है. इस तरह से चुनाव संपन्न होने के बाद जो सरकार में आए जो जनता के हित को लेकर सोंचे. सभी की समस्याएं एक जैसी ही है. उस पर काम किया जाए तो जम्मू कश्मीर के लिए फायदेमंद हो सकता है. 1989 से ही वहां के लोगों ने काफी कष्ट देखा है. हिंसा के साथ भय भी रहा है, लेकिन अब उनको एक बेहतर जीवन मिलना चाहिए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि … न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]