ममता सरकार के ‘अपराजिता कानून’ के सामने हैं कई चुनौतियां!
ममता सरकार के ‘अपराजिता कानून’ के सामने हैं कई चुनौतियां!
अपराजिता बिल कानून का रूप लेने से पहले ही सवालों के घेरे में आ चुका है. हाल ही में पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस ने कहा है कि अपराजिता बिल ममता सरकार के कारण पेंडिंग है.
9 अगस्त 2024 को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या के बाद राज्य सरकार पर महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे थे. जिसके जवाब में ममता सरकार ने 3 सितंबर 2023 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में एंटी-रेप बिल पेश किया. इस बिल को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया है. विधानसभा से पास होते ही अब इसे राज्यपाल के पास भेजा गया है, यहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति को भेजा जाएगा, जहां से मुहर लगते ही यह कानून में बदल जाएगा.
अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक क़ानून संशोधन) विधेयक, 2024 के तहत पुलिस को राज्य में होने वाले रेप जैसी घटनाओं की जांच को 21 दिन में जांच पूरा करना होगा.
इस बिल में राज्य की महिलाओं के ख़िलाफ होने वाले अपराधों को लेकर भारतीय न्याय संहिता, 2023, (बीएनएस) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) और बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बने पॉक्सो क़ानून, 2012 में संशोधन किए गए हैं. राज्य सरकार ने इस विधेयक को लाते हुए कहा कि इस कानून से पीड़िता को जल्द न्याय मिलेगा.
हालांकि कानून का रूप लेने से पहले ही कोलकाता में बनर्जी सरकार की तरफ से लाया गया यह बिल सवालों के घेरे में आ चुका है. हाल ही में पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस ने कहा है कि अपराजिता बिल ममता सरकार के कारण पेंडिंग है. उन्होंने कहा कि ममता सरकार ने बिल के साथ टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी है. इसके बिना बिल को मंजूरी नहीं दी जा सकती.
वहीं दूसरी तरफी कई विपक्षी नेताओं ने भी इस कानून को राज्य सरकार को खुद को बचाने की कोशिश बताई है. इतना ही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविंद माथुर का कहना है कि यह घटना दुखद और निंदनीय हैं लेकिन मौत की सजा के अलावा अन्य विकल्प भी खुले होने चाहिए.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये बिल क्या है, क्यों लाया गया और ‘अपराजिता बिल’ के कानून का रूप लेने से पहले चुनौतियों को सामना करना पड़ सकता है.
क्या है अपराजिता कानून
अपराजिता कानून ममता बनर्जी की सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए लाया गया एक विशेष कानून है. जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को हर तरह के शोषण से बचाना और उन्हें समाज में आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाना है.
कानून में क्या है नए प्रावधान
1. अपराजिता बिल के अनुसार अगर रेप पीड़िता की मौत हो जाती है या वो कोमा में चली जाती है तो ऐसी स्थिति में दोषी को 10 दिनों के अंदर फांसी होगी.
2. रेप और गैंगरेप करने वाले दोषियों को बिना किसी पेरोल के आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी.
3. राज्य में किसी भी महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटना पर एफआईआर दर्ज किया जाता है. तो पुलिस को 21 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होगी, इसे ज्यादा से ज्यादा 15 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है. जिसका मतलब है कि कुल 36 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी. बता दें कि वर्तमान में ये अवधि 60 दिनों की है.
4. रेप जैसी घटनाओं को रोकने के लिए जिला स्तर पर अपराजिता टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा, इस टास्क फोर्स का नेतृत्व डीएसपी करेंगे. पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों को 3 से 5 साल तक कैद की सजा होगी.
5. पीड़िता अगर नाबालिग है तो सबूत 7 दिनों के अंदर जुटाने होंगे.
आपराजिता विधेयक 2024 से संबंधित चुनौतियां क्या हैं?
संवैधानिक वैधता: इस कानून का केंद्रीय कानूनों में संशोधन करने का प्रयास संवैधानिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण है. संविधान के तहत आपराधिक कानून और न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े मामले केंद्र सरकार के अधीन होते हैं. अगर राज्य सरकार केंद्रीय कानून में बदलाव करती है, तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है, जैसा पहले भी हो चुका है.
कानूनी अधिकार क्षेत्र: कानून बनाते समय राज्य और केंद्र के अधिकार क्षेत्र का स्पष्ट विभाजन है. आपराधिक कानून और मामलों से जुड़े अधिकार केंद्र के पास होते हैं. इसी वजह से, ममता सरकार का कानून इन मुद्दों पर टकराव पैदा कर सकता है और इसे न्यायिक चुनौतियों का सामना कर सकता है.
आसान भाषा में समझें तो भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियां हैं, जो केंद्र और राज्यों की शक्तियों को बांटती है. इन सूचियों में ये बताया गया है कि किन विषयों पर कानून बनाने का केंद्र और किन विषयों पर कानून बनाने का राज्य के पास अधिकार है. इस सूची के नाम हैं-
- संघ सूची (Union List) (97 विषय)
- राज्य सूची (State List) (66 विषय)
- समवर्ती सूची (concurrent list ) (47 विषय)
ममता सरकार का ये बिल समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, यही कारण है कि इसे कानून का शक्ल लेने के लिए पहले राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी. हमारे देश में संविधान की सातवीं अनुसूची में दी गई समवर्ती सूची में वे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों का अधिकार होता है.
समवर्ती सूची में शामिल कुछ मामलों पर केंद्र- राज्य, दोना ही सरकार कानून बना सकते हैं, लेकिन अगर दोनों के कानून में टकराव होता है तो केंद्र सरकार का कानून सर्वोपरि माना जाएगा. समवर्ती सूची में कुल 52 विषय शामिल हैं.
अवास्तविक समय सीमा: अपराजिता कानून के तहत बलात्कार जैसे मामलों की जांच 21 दिनों के भीतर पूरी करने का प्रावधान है. हालांकि, ऐसे मामलों में जांच की जटिलता और अदालतों में पहले से चल रहे मामलों की संख्या को देखते हुए यह समय सीमा व्यावहारिक नहीं है. इससे न्याय प्रक्रिया पर दबाव बढ़ सकता है और जांच की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है.
संसाधनों की कमी: इस कानून को लागू करने के लिए पर्याप्त संसाधनों और कर्मचारियों की जरूरत होगी, जैसे पुलिस बल, कानूनी विशेषज्ञ और फॉरेंसिक जांचकर्ताओं की संख्या में वृद्धि. अगर ये सुविधाएं पर्याप्त नहीं होंगी, तो कानून का प्रभावी ढंग से लागू होना मुश्किल हो जाएगा.
कानूनी चुनौतियां: पहले भी ऐसे कई उदाहरण हैं, जब राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों को अदालत में चुनौती दी गई है, अगर ‘अपराजिता कानून’ केंद्रीय कानूनों के साथ टकराव करता है, तो इसे भी कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है.
अपराजिता बिल दोषपूर्ण
इस विधेयक के बारे में बात करते हुए विधायी मामलों के जानकार अयोध्या नाथ मिश्र ने एबीपी को बताया कि ममता सरकार का ये कानून दोषपूर्ण है. इस विधेयक में कई तरह की तकनीकी गड़बड़ी है. उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिये कि यह कानून कहता है कि दोषी का अपराध साबित होने के 10 दिनों के भीतर उसे फांसी दे दी जाएगी, लेकिन क्या ये वाकई संभव है? क्या उस दोषी को मौका नहीं दिया जाएगा कि वह खुद को निर्दोष साबित कर सके?
अयोध्या नाथ मिश्र आगे कहते हैं कि भले ही राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन वह दोषपूर्ण कानून नहीं बना सकता है. आपराजिता विधेयक को कानून का रूप देने में काफी परेशानी होगी. केंद्र के कानून का विरोधाभासी कानून राज्य नहीं बना सकता है.