भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर अगले 25 साल में टूटेगा कहर!

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर अगले 25 साल में टूटेगा कहर! इस एक वजह से लाखों मौत की आशंका: स्टडी
Lancet Study: लैंसेट की एक स्टडी में सामने आया है कि अगले 25 सालों में 204 देशों के लगभग 4 करोड़ लोगों की मौत हो जाएगी और इन देशों में सबसे ज्यादा कहर पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत पर टूटने वाला है. जहां सबसे ज्यादा मौतें होने का अनुमान लगाया गया है. इस स्टडी में सामने आया कि 1992 से लेकर 2021 तक हर साल 10 लाख लोगों की मौत हुई.

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर अगले 25 साल में टूटेगा कहर! इस एक वजह से लाखों मौत की आशंका: स्टडी

सांकेतिक तस्वीर
एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि साल 1990 से 2021 के बीच एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की वजह से दुनिया भर में हर साल दस लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई. सिर्फ इतना ही नहीं, आने वाले वक्त में भी इसका खतरा बना है. स्टडी के मुताबिक, अगले 25 सालों में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस इंफेक्शन की वजह से 3 करोड़ 90 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है.

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से भविष्य में होने वाली मौतों में दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा होने का अनुमान लगाया जा रहा है, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश शामिल हैं.

2025 और 2050 के बीच इसकी वजह से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सीधे तौर पर कुल 1 करोड़ 18 लाख लोगों की मौत होने का अंदेशा है. यह बात ग्लोबल रिसर्च एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस प्रोजेक्ट के रिसर्चर ने कही है. एंटीबायोटिक, या एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस तब होता है जब संक्रामक बैक्टीरिया और कवक को मारने के लिए डिज़ाइन की गई दवाइयां बेअसर हो जाती हैं.

80 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी

रिसर्चर ने कहा कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की वजह से सबसे ज्यादा मौतें दक्षिणी और पूर्वी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के हिस्सों में होगी. इसके अलावा, 1990 और 2021 के बीच के आंकड़ों से पता चला है कि 70 सालों और उससे ज्यादा उम्र के लोगों में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की वजह होने वाली मौतों में 80 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है और आने वाले सालों में यह बुजुर्ग लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा.

पांच साल से कम उम्र के बच्चे

वहीं इस बीच पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की वजह से होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है. पिछले तीन दशकों में छोटे बच्चों में सेप्सिस और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से होने वाली मौतों में गिरावट एक उपलब्धि है. हालांकि यह भी पता चलता है कि छोटे बच्चों में इंफेक्शन कम होना आम तो हो गया है लेकिन उनका इलाज करना मुश्किल हो गया है.

92 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है

अमेरिका, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स के एक प्रोफेसर और GRAM प्रोजेक्ट के रिसर्चर केविन इकुटा ने कहा कि बूढ़े लोगों के लिए एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस से खतरा आबादी की उम्र बढ़ने के साथ ही बढ़ेगा. अब समय आ गया है कि दुनिया भर के लोगों को एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस से पैदा होने वाले खतरे से बचाने के लिए कार्रवाई की जाए. उनका अनुमान है कि हेल्थकेयर और एंटीबायोटिक दवाइयों तक बेहतर पहुंच से 2025 और 2050 के बीच कुल 92 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि यह स्टडी समय के साथ एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस का पहला ग्लोबल विश्लेषण है.

कैसे किया जाए बदलाव

IHME के लेखक मोहसिन नागावी के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाओं के लिए बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल की आधारशिलाओं में से एक चिंता की एक वजह है और निष्कर्षों ने वैश्विक स्वास्थ्य खतरे के महत्व पर प्रकाश डाला है. नागवी ने कहा, यह समझना है कि समय के साथ एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस से होने वाली मौतों के रुझान कैसे बदल गए हैं, और आने वाले वक्त में उनमें कैसे बदलाव की संभावना है. जिंदगी बचाने में मदद करने के लिए फैसला करना जरूरी है.

204 देशों के लोगों पर विश्लेषण

यह विश्लेषण 204 देशों के सभी उम्र के लगभग 52 करोड़ लोगों पर किया गया. इसके बाद स्टडी में सामने आया कि अगले 25 सालों में लगभग 4 करोड़ लोगों की मौत होने का अनुमान है. राइटर्स ने कहा 2022 में प्रकाशित GRAM प्रोजेक्ट के पहले अध्ययन के अनुसार, 2019 में, एंटीबायोटिक रेजिडेंस से होने वाली मौतें HIV/Aids या मलेरिया से होने वाली मौतों के मुकाबले ज्यादा थीं, जिससे सीधे तौर पर 12 लाख मौतें हुईं.

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 एंटीबायोटिक से 50 लाख लोगों की मौत….
WHO की चेतावनी, महामारी से भी बड़ा खतरा, न करें शरीर के साथ खिलवाड़

जरा सा दर्द होने, कफ-कोल्ड, बुखार या एलर्जी होने पर हम तुरंत एंटीबायोटिक खा लेते हैं। बहुत से लोग तो कई-कई दिन तक एंटीबायोटिक पर ही डिपेंड रहते हैं। लेकिन जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल आपके शरीर को खतरे में डाल रहा है।

WHO की ताजा रिसर्च के मुताबिक एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल से ‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ का रिस्क बढ़ रहा है। जो वाकई में किसी महामारी से भी बड़ा खतरा है।

‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ (AMR) से दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यही हाल रहा तो साल 2050 तक मौत का आंकड़ा 1 करोड़ के पार चला जाएगा।

अगर आप भी एंटीबायोटिक खाते हैं, तो ये खबर आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे पहले की ये दवा आपके लिए श्राप बने, पहले ही असलियत जान लें और सर्तक हो जाइए।

जरूरत की खबर हम आपको बताएंगे कि एंटीबायोटिक से ‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ का रिस्क बढ़ रहा है ये क्या है, इससे शरीर को क्या नुकसान होते हैं।

एक्सपर्ट-….

सवाल: एंटीबायोटिक क्या होता है?

जवाब: सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, एंटीबायोटिक ऐसी दवाएं हैं, जो बैक्टीरिया के डेवलेपमेंट को रोकती हैं या उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देती हैं।

एंटीबायोटिक्स एक प्रकार के एंटीमाइक्रोबियल एजेंट हैं, जिसका प्रयोग बैक्टीरिया से होने वाले इन्फेक्शन के इलाज के लिए किया जाता है।

एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया के स्ट्रक्चर और फंक्शन को टारगेट करती हैं और उनके विस्तार को रोकती है।

ध्यान देने वाली बात ये है कि एंटीबायोटिक्स, वायरल इन्फेक्शन के खिलाफ प्रभावी नहीं होती है।

सवाल: कुछ लोग बात-बात पर एंटीबायोटिक खाते हैं, इससे शरीर पर क्या असर पड़ता है?

जवाब: जरा सी तबीयत खराब होने या दर्द होने पर जो लोग अपनी मर्जी से मेडिकल स्टोर्स से एंटीबायोटिक दवाएं लेकर खाते हैं। उनके शरीर पर एंटीबायोटिक का असर कम होने लगता है।

एक-एक हफ्ते तक दवा खाने पर भी बुखार, वायरल, खांसी, जुकाम और दस्त पूरी तरह सही नहीं होता है। बल्कि पेशेंट खुद को पहले की अपेक्षा कमजोर महसूस करता है। इसके पीछे की वजह है- एंटीबायोटिक से शरीर को होने वाले नुकसान।

सवाल: शरीर पर एंटीबायोटिक का असर कम हो रहा है, इसकी क्या वजह है?

जवाब: चीफ मेडिकल हेल्थ ऑफिसर डॉ. अलंकार गुप्ता के मुताबिक मरीजों में एंटीबायोटिक का असर न के बराबर हो रहा है। मरीज को आराम न मिलने पर बार-बार डॉक्टर्स को दवा बदलना पड़ रहा है।

असल में एंटीबायोटिक बैक्टीरियल इन्फेक्शन को खत्म करती है। इसके ज्यादा इस्तेमाल से शरीर से गुड बैक्टीरिया खत्म होने लगते हैं। शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है, जिससे रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर कम हो जाती है और बीमारी पर दवाओं असर कम होने लगता है।

सवाल: WHO की रिसर्च में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस का जिक्र किया, इसका क्या मतलब है?

जवाब: एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति बार-बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहा है तो बैक्टीरिया उस दवा के खिलाफ अपनी इम्युनिटी डेवलप कर लेता है। इसके बाद इसे ठीक करना काफी ज्यादा मुश्किल होता है। इसे ही एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) कहते हैं।

इस सिचुएशन में इलाज तो ठीक से हो नहीं पाता बल्कि लिवर में टॉक्सिन इकट्ठा होने लगता है। साथ ही लिवर डैमेज होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसकी शुरुआत फैटी लिवर से होती है फिर धीरे-धीरे यह सिरोसिस-फाइब्रोसिस में बदल जाता है।

ऐसे में अगर आप एंटीबायोटिक लेते हैं, तो आज से ही अपनी इस आदत को बदल लें। वायरल फीवर होने पर शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाएं, न की एंटीबायोटिक खाकर दर्द भगाएं।

इम्यूम सिस्टम अच्छा रहेगा, तो वायरल फीवर 2-3 दिन में ठीक हो जाएगा। अगर नहीं ठीक होता है तो मेडिकल स्टोर पर नहीं जाएं, बल्कि डॉक्टर से संपर्क करें।

सवाल: क्या हर तरह के संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स यूज करना चाहिए?

जवाब: नहीं, यह वायरल इन्फेक्शन होने पर काम नहीं करती है। वायरल इन्फेक्शन यानी सर्दी, फ्लू, गले में खराश। कई हल्के बैक्टीरियल इन्फेक्शन में भी एंटीबायोटिक्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। डॉक्टर भी अपने मरीजों को कम से कम ही एंटीबायोटिक्स लिखते हैं।

डॉक्टर कुछ बीमारियों के पेशेंट को कभी भी एंटीबायोटिक्स नहीं देते हैं। क्योंकि उनमें इसके साइड इफेक्ट्स ज्यादा होते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि जब भी डॉक्टर के पास जाएं, उन्हें अपनी पुरानी बीमारी के बारे में जरूर बताएं।

सवाल: किन लोगों को डॉक्टर आमतौर एंटीबायोटिक्स नहीं देते हैं?

जवाब:

  • किडनी पेशेंट
  • छोटे बच्चों
  • जिन्हें एंटीबायोटिक्स से एलर्जी है
  • हार्ट पेशेंट्स
  • बुजुर्गों

सवाल: क्या प्रेग्नेंट महिला के लिए एंटीबायोटिक्स लेना सुरक्षित है?

जवाब: दरअसल एंटीबायोटिक्स से अलग-अलग साइड इफेक्ट होते हैं। इनमें से कुछ का असर बच्चे की ग्रोथ पर होता है। प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीने में बच्चे के शरीर के अंग और टिश्यूज डेवलप होते हैं।

इसलिए एक्सपर्ट इन दिनों बड़ी सावधानी से डोज देते हैं। एंटीबायोटिक तभी लिखते हैं जब जरूरत होती है। आमतौर पर मां और गर्भ में पल रहे बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसी एंटीबायोटिक लिखते हैं जो सेफ हैं।

प्रेग्नेंसी के समय महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। कई तरह के इन्फेक्शन होने का रिस्क रहता है। यूरिन ट्रैक्ट इंफेक्शन यानी UTI, व​​जाइनल इन्फेक्शन, कान, नाक और गले के इन्फेक्शन के दौरान डॉक्टर महिला को एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह देते हैं।

इसके अलावा गर्भावस्था में प्रीटर्म लेबर, नियोनेटल ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस फीवर को रोकने और सिजेरियन सेक्शन में भी एंटीबायोटिक्स दी जाती है।

सवाल: एंटीबायोटिक कब लेनी चाहिए?

जवाब: सबसे पहली और जरूरी बात- बिना डॉक्टर की सलाह के किसी को भी दवा खुद से या मेडिकल स्टोर से लेकर नही खानी चाहिए। डॉक्टर मरीज का पहले टेस्ट करते हैं फिर उस हिसाब से ही एंटीबायोटिक प्रिस्क्राइब करते हैं।

एंटीबायोटिक्स तभी लेना चाहिए, जब कोई बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो, जैसे- स्किन में, दांत में इन्फेक्शन आदि। लेकिन ये भी डॉक्टर की सलाह पर ही लें।

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