मेक इन इंडिया से क्या बदला?
भारत की मेक इन इंडिया पहल के 10 साल पूरे हो गए हैं। इस दौरान भारत ने मोबाइल फोन से लेकर मिसाइल तक के निर्माण में उल्लेखनीय प्रगति की है। देश अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता है जबकि रक्षा निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। मेक इन इंडिया पहल की क्या उपलब्धियां रहीं और भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की राह में चुनौतियां क्या हैं?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कभी सुई से लेकर मशीनरी तक आयात करने वाला भारत आज मोबाइल फोन से लेकर मिसाइल तक निर्यात कर रहा है। इस उपलब्धि में मेक इन इंडिया पहल का अहम योगदान है। 25 सितंबर, 2014 को शुरू की गई इस पहल को 10 वर्ष पूरे हो गए हैं। आइए देखते हैं मेक इन इंडिया पहल की उपलब्धियां क्या रहीं हैं और भारत को विश्व में मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर विकसित करने की राह में चुनौतियां क्या हैं…
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता
मेक इन इंडिया पहल का ही नतीजा है कि आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन चुका है। साल 2014 में देश में केवल दो फैक्ट्रियां मोबाइल बनाती थीं। अब 200 से ज्यादा फैक्ट्रियां मोबाइल बना रही हैं। इनमें एपल जैसी कंपनी भी शामिल हैं। भारत से मोबाइल निर्यात 7500 प्रतिशत बढ़ा है।
वर्ष 2014 में भारत 1,556 करोड़ रुपये कीमत के मोबाइल निर्यात करता था, जो अब बढ़कर 1.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। भारत में इस्तेमाल होने वाले 99 प्रतिशत मोबाइल अब देश में ही बने होते हैं।
सेमीकंडक्टर में ऊंची छलांग की तैयारी
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने सेमीकंडक्टर जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। भारत ने इस क्षेत्र में 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हासिल किया है। पांच प्लांट लगाए जा रहे हैं, जिनमें रोज सात करोड़ से ज्यादा चिप बनाए जाएंगे। केंद्र सरकार देश में सेमीकंडक्टर का इकोसिस्टम तैयार करने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 76,000 करोड़ निवेश कर रही है।
नई ऊंचाइयों पर पहुंचा रक्षा क्षेत्र
मेक इन इंडिया का सबसे ज्यादा असर रक्षा क्षेत्र में दिख रहा है। वर्ष 2023-24 में भारत का रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। दस साल पहले यह 500-600 करोड़ रुपये था। रक्षा उत्पादन बढ़ कर 1,27,264 करोड़ रुपये हो गया है।
पीएलआई योजना
देश में मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव पीएलआई स्कीम लांच की गई है। अब तक पीएलआई स्कीम के तहत अब तक 1. 4 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। इससे देश भर में 8.5 लाख लोगों को रोजगार मिला है।
मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात के मोर्चे पर चुनौतियां
मैन्युफैक्चरिंग की जीडीपी में हिस्सेदारी
वर्तमान में देश की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है। 2014 में भी जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी करीब 17 प्रतिशत ही थी। इस तरह से देखें तो मेक इन इंडिया से मैन्युफैक्चरिंग का देश की जीडीपी में योगदान नहीं बढ़ पाया है। मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना मेक इन इंडिया के लिए एक बड़ी चुनौती है।
कुल रोजगार में घटा मैन्युफैक्चरिंग का योगदान
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार कुल रोजगार में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट आई है। 2013-14 में कुल रोजगार में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 11.6 प्रतिशत था जो 2022-23 में घट कर 10.6 प्रतिशत रह गया है।
दूसरे शब्दों में कहें तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार बढ़ा है लेकिन मेक इन इंडिया पहल के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर रोजगार पैदा करने में दूसरे सेक्टर्स को पीछे नहीं छोड़ पा रहा है।
वैश्विक निर्यात
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ने की रफ्तार सुस्त हुई है।