सुलझाने के बजाय उलझा रही तकनीक, गायब हो रही मानवीय संवेदनाएं और भाव ?
मुद्दा: सुलझाने के बजाय उलझा रही तकनीक, गायब हो रही मानवीय संवेदनाएं और भाव
सोशल नेटवर्किंग साइट्स हों या ऑनलाइन कंपनियां, ये हमारे जीवन का आज अहम हिस्सा बन गई हैं। चाहे अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से सामान मंगाना हो या ऊबर, ओला जैसी कैब सर्विस से कहीं जाना। इन एप आधारित कंपनियों ने हमारे रोजाना के कामों को सरल और सुविधाजनक बना दिया है। मगर इसका एक और पहलू भी है, इन तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के साथ कुछ चुनौतियां और समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। इन प्लेटफॉर्म पर हमारे पास सीधे और व्यक्तिगत संपर्क की कमी होती है, जिससे हमारी समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है।
फेसबुक ने भारत में 32 करोड़ उपयोगकर्ताओं का आंकड़ा पार कर लिया है, लेकिन उपयोगकर्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्प, सपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है, जो कि एक पूर्वनिर्धारित एकतरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे तकनीकी सुविधाएं हमारे समस्या समाधान की प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं और मानवीय संबंधों को एक तंत्र में बदल सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अमेजन या फ्लिपकार्ट से कोई उत्पाद खरीदते हैं और वह खराब निकलता है, तो आपको अक्सर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। वास्तविक उपभाेक्ता सेवा प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। अगर फूड डिलीवरी एप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता है, तो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना करना पड़ता है। सीसीडब्ल्यू डिजिटल और कस्टमर मैनेजमेंट सर्विस के अध्ययन में बताया गया है कि 55 फीसदी उपभोक्ताओं का अनुभव चैट-बेस्ड सपोर्ट में बदतर रहा है यानी स्वचालित सहायता तंत्र अक्सर मानवीय समाधान की कमी को पूरा नहीं करता।
तकनीक ने ग्राहक सेवा के क्षेत्र में एक बुनियादी परिवर्तन ला दिया है। ग्लोबल स्ट्रैटजिक बिज रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 तक विश्व भर का कॉल सेंटर बाजार 332 अरब डॉलर का था, जिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब दस प्रतिशत है। नैसकॉम के मुताबिक, भारत में पांच करोड़ लोग इन बीपीओ और कॉल सेंटरों से रोजगार प्राप्त करते हैं। बड़ी कंपनियों ने ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम करने के लिए लाइव चैट का विकल्प दिया, जिसमें ग्राहकों को अपनी समस्याएं लिख कर देने के लिए प्रेरित किया जाने लगा। और धीरे-धीरे मौखिक संचार को कम कर कंपनियों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता चैटबॉट्स को तरजीह देनी शुरू कर दी, इससे कंपनियों का ग्राहक सेवा पर खर्च कम हुआ है। इस वजह से कंपनियों ने कॉल सेंटर प्रतिनिधियों की संख्या घटाना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते प्रभाव से कॉल सेंटरों का अस्तित्व खतरे में है। कैंपेन एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2023 में इंडियन एयरलाइंस के चैटबॉट ‘महाराजा’ ने 93 प्रतिशत ग्राहकों के सवालों का समाधान बिना कॉल सेंटर प्रतिनिधि के पास भेजे किया है।
कंपनियों की लागत कम करने के लिए यह आसान तरीका है, ताकि लोगों की कॉल सेंटरों पर निर्भरता कम की जा सके। मगर कई एप कॉल हेल्पलाइन की लिंक तक पहुंचने की प्रक्रिया को इतना जटिल बना देते हैं कि ग्राहकों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। न्यू वॉइस मीडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, खराब ग्राहक सेवा के कारण हर साल करीब 75 अरब डॉलर के व्यापार की हानि होती है। जिनमें कॉल सेंटरों और खराब सहायता तंत्र भी एक अहम कारण होते हैं।
तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग से मानवीय संवाद का स्थान एक निर्जीव तंत्र ने ले लिया है, जहां अब समस्याओं का समाधान मशीनों और बिना मौखिक संवाद के द्वारा किया जाता है। वहीं यह सिर्फ व्यापार और ग्राहक सेवा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। तकनीक जब हमारे संचार के हर पहलू को नियंत्रित करती है, तो हम अपनी मानवीय संवेदनाओं से दूर होते जाते हैं। अंत में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि तकनीक हमारे जीवन को जितना आसान बना रही है, उतना ही हमें मानवीय मूल्यों से दूर कर रही है। यह एक महत्वपूर्ण समय है, जब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक हमें उलझाने के बजाय हमारे जीवन को सुगम बनाए।
फेसबुक ने भारत में 32 करोड़ उपयोगकर्ताओं का आंकड़ा पार कर लिया है, लेकिन उपयोगकर्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्प, सपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है, जो कि एक पूर्वनिर्धारित एकतरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे तकनीकी सुविधाएं हमारे समस्या समाधान की प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं और मानवीय संबंधों को एक तंत्र में बदल सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अमेजन या फ्लिपकार्ट से कोई उत्पाद खरीदते हैं और वह खराब निकलता है, तो आपको अक्सर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। वास्तविक उपभाेक्ता सेवा प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। अगर फूड डिलीवरी एप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता है, तो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना करना पड़ता है। सीसीडब्ल्यू डिजिटल और कस्टमर मैनेजमेंट सर्विस के अध्ययन में बताया गया है कि 55 फीसदी उपभोक्ताओं का अनुभव चैट-बेस्ड सपोर्ट में बदतर रहा है यानी स्वचालित सहायता तंत्र अक्सर मानवीय समाधान की कमी को पूरा नहीं करता।
तकनीक ने ग्राहक सेवा के क्षेत्र में एक बुनियादी परिवर्तन ला दिया है। ग्लोबल स्ट्रैटजिक बिज रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 तक विश्व भर का कॉल सेंटर बाजार 332 अरब डॉलर का था, जिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब दस प्रतिशत है। नैसकॉम के मुताबिक, भारत में पांच करोड़ लोग इन बीपीओ और कॉल सेंटरों से रोजगार प्राप्त करते हैं। बड़ी कंपनियों ने ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम करने के लिए लाइव चैट का विकल्प दिया, जिसमें ग्राहकों को अपनी समस्याएं लिख कर देने के लिए प्रेरित किया जाने लगा। और धीरे-धीरे मौखिक संचार को कम कर कंपनियों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता चैटबॉट्स को तरजीह देनी शुरू कर दी, इससे कंपनियों का ग्राहक सेवा पर खर्च कम हुआ है। इस वजह से कंपनियों ने कॉल सेंटर प्रतिनिधियों की संख्या घटाना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते प्रभाव से कॉल सेंटरों का अस्तित्व खतरे में है। कैंपेन एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2023 में इंडियन एयरलाइंस के चैटबॉट ‘महाराजा’ ने 93 प्रतिशत ग्राहकों के सवालों का समाधान बिना कॉल सेंटर प्रतिनिधि के पास भेजे किया है।
कंपनियों की लागत कम करने के लिए यह आसान तरीका है, ताकि लोगों की कॉल सेंटरों पर निर्भरता कम की जा सके। मगर कई एप कॉल हेल्पलाइन की लिंक तक पहुंचने की प्रक्रिया को इतना जटिल बना देते हैं कि ग्राहकों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। न्यू वॉइस मीडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, खराब ग्राहक सेवा के कारण हर साल करीब 75 अरब डॉलर के व्यापार की हानि होती है। जिनमें कॉल सेंटरों और खराब सहायता तंत्र भी एक अहम कारण होते हैं।
तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग से मानवीय संवाद का स्थान एक निर्जीव तंत्र ने ले लिया है, जहां अब समस्याओं का समाधान मशीनों और बिना मौखिक संवाद के द्वारा किया जाता है। वहीं यह सिर्फ व्यापार और ग्राहक सेवा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। तकनीक जब हमारे संचार के हर पहलू को नियंत्रित करती है, तो हम अपनी मानवीय संवेदनाओं से दूर होते जाते हैं। अंत में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि तकनीक हमारे जीवन को जितना आसान बना रही है, उतना ही हमें मानवीय मूल्यों से दूर कर रही है। यह एक महत्वपूर्ण समय है, जब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक हमें उलझाने के बजाय हमारे जीवन को सुगम बनाए।