क्या हम स्क्रीन फ्री स्कूल और स्क्रीन फ्री घर पेश कर सकते हैं?

क्या हम स्क्रीन फ्री स्कूल और स्क्रीन फ्री घर पेश कर सकते हैं?

इस बुधवार को कई अखबारों के पहले पन्ने पर मौजूद 43 वर्षीय एक राजनीतिक शख्सियत के बारे में दो लाइन पढ़कर मुझे स्क्रीन फ्री स्कूल का ख्याल आया। दिल्ली में ‘आप’ पार्टी की सरकार में वित्त और शिक्षा मंत्री आतिशी को विधायक दल का नेता चुन लिया गया और इस तरह दिल्ली की आठवीं मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

इस पद तक पहुंचने में कई लोग उनकी शैक्षणिक यात्रा को याद कर रहे हैं, लेकिन उनके बारे में दो बातों ने मेरा ध्यान खींचा। उनके कॉलेज के एक बैचमेट ने कहा, “मुझे बस यही याद है कि उसके हाथ में हमेशा किताब होती थी।’ और उनकी एक शिक्षक ने कहा, “वह एक आदर्श विद्यार्थी रही, जिसे पढ़ना पसंद था।’

आज सालभर के बच्चों के माता-पिता क्या 20 साल बाद ठीक यह टिप्पणी अपने बच्चे के लिए सुनना चाहेंगे? मुझे लगता है, यह मुमकिन है, बशर्ते वह जेसन व फियोना फ्लेचर से प्रेरणा ले सकें, जिन्होंने “स्क्रीन फ्री स्कूल’ की परिकल्पना की, जहां मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट कुछ भी न हो, बस ढेर सारी किताबें, पेन, कागज पर लिखाई-पढ़ाई, प्रकृति के साथ ढेर सारी गुफ्तगू और दिल से बस कविताएं सीखना हो।

साल 2007 में अपने दो बच्चों के लिए ये उनका इकलौता विजन था। आज 17 साल बाद, यूके के कैंब्रिज में उनका “हेरिटेज स्कूल’ नाम से एक स्कूल है और जहां दाखिले के लिए लंबी प्रतीक्षा सूची है और संभवतः यह पूरे ब्रिटेन का इकलौता “स्क्रीन फ्री’ स्कूल है।

परीक्षा परिणाम के मामले में वह अपने शहर में दूसरे नंबर पर बेस्ट है और इस स्कूल के वरिष्ठ छात्र भी 14 साल के होने तक स्क्रीन नहीं छूते, सिर्फ कंप्यूटर साइंस को छोड़कर। इन 17 सालों में उनके स्कूल से कई विद्यार्थी पास हुए और स्कूल प्रमोटर्स का शिद्दत से मानना है कि बच्चों को अकादमिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करने के लिए टेक्नोलॉजी की कोई जरूरत नहीं है।

फ्लेचर का कहना है कि किताबों और पाठ्यपुस्तकों पर आधारित हमारे पढ़ाने के तरीके से बेहतर परिणाम मिलते हैं और सक्रिय रूप से जुड़ाव की आदत को विकसित करने में छपी हुई सामग्री बेहतर काम करती है, प्रभावी रूप से सीखने के लिए आवश्यक पूर्व शर्त है।

सवाल है कि ऐसी दुनिया में जहां अधिकांश दफ्तर अपने कर्मियों से चौबीसों घंटे मोबाइल पर उपलब्ध रहने व उनका जवाब देने की उम्मीद करते हैं, वहां एेसे स्क्रीन फ्री स्कूल या स्क्रीन फ्री घर मुमकिन हैं? मैं कहूंगा, ये मुमकिन है।

44 साल के रिचर्ड वॉकर का उदाहरण लें, वह ‘आइसलैंड फूड्स’ सुपरमार्केट चेन के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। टेक्नोलॉजी के मामले में वह घर पर बहुत सख्त जीवन जीते हैं। इस उम्मीद में वो अपनी दोनों किशोर बेटियों के सामने मोबाइल या कंप्यूटर इस्तेमाल नहीं करते कि बेटियां भी उनका अनुसरण करेंगी।

900 स्टोर के मालिक वॉकर कहते हैं, ‘जैसे ही सनसेट होता है, हम रोज शाम को घर पर टेक्नोलॉजी सनसेट का अभ्यास करते हैं।’ वह कहते हैं, बेडरूम में या खाना खाते समय या जब परिवार साथ होता है, तो कोई फोन नहीं होता क्योंकि उनका मानना है कि सोशल मीडिया बच्चों की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाल सकता है।

पर दुख की बात है कि ये माता-पिता ही हैं, जो बच्चों पर निगरानी रखना चाहते हैं और वे चाहते हैं कि वे किसी भी क्षण उन्हें वीडियो कॉल कर सकें। आधुनिक दुनिया इतनी भी खतरनाक नहीं कि बच्चों की परवरिश में चौबीसों घंटे निगरानी रखें।

ईमानदारी से कहूं तो मोबाइल कल्पना से भी ज्यादा खतरनाक है। हम सबने माता-पिता से सीखा कि स्कूल-ट्यूशन जाना, खेलना, डांस या म्यूजिक क्लास जाना, दोनों के लिए सेपरेशन (अलगाव) सीखने की एक प्रक्रिया है- सेपरेशन बच्चे का माता-पिता से और माता-पिता का बच्चों से।

…….अगर हम दृढ़ निश्चय कर लें कि अगली पीढ़ी को कैसी-दुनिया सौंपना चाहते हैं, तो हम हमेशा स्क्रीन फ्री स्कूल या स्क्रीन फ्री घर बना सकते हैं। फिर हो सकता है कि भविष्य में दुनिया हमारे बच्चों के बारे में बात करे कि ‘उसे पढ़ना बहुत पसंद था’। क्या यह उद्यमिता और परवरिश के लिए नया विचार नहीं है? इस बारे में सोचें।

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