जर-जाति-जमीन की लड़ाई, बात अब बिहार के अस्तित्व पर बन आयी !

 जर-जाति-जमीन की लड़ाई, बात अब बिहार के अस्तित्व पर बन आयी

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा है, साल 2021 का. बिहार में हुई हर 5वीं ह्त्या जमीन के लिए हुई थी. आम आदमी की छोडिये, हाल ही में वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी के पिता की ह्त्या की जड़ में भी जर (पैसा) और जमीन (जमीन का कागज़) ही था. तो, आप अंदाजा लगाइए, कि इस वक्त बिहार के नवादा के जिस महादलित टोले में दर्जनों घर जला दिए गए हैं, उसके पीछे क्या कारण होंगे. जमीन. जमीन ही कारण है. और हाँ, अगर आप बिहार से नहीं हैं, तो महादलित शब्द सुन कर चौंकिए मत.

यह नीतीश कुमार जी की सोशल इंजीनीयरिंग का कमाल है. पिछड़ों को कई धडों में बांटा, दलितों को बांटा, पसमांदा मुसलमान शब्द निकल पड़ा और सत्ता की गाड़ी मस्त 18 साल से बेधड़क चलती जा रही है. और सत्ता की इस भट्टी में आग का इन्तजाम इन गरीबों की झोपड़ियां जला कर की जाती रही है. एक दौर था, जब पिछड़ा दलित बनाम सामान्य जाति के बीच खूनी खेल चलता था. लेकिन, यह बिहार है, यहां इतना अधिक “सोशल जस्टिस” और “सोशल इंजीनियरिंग” किया जा चुका है कि अब लड़ाई दलितों और महादलितों के बीच है. 

नवादा की आग नहीं बुझेगी

नवादा की घटना भी ऐसी ही है. पासवान जाति के लोगों ने मांझी जाति के लोगों की झोपड़ियां जला दी. वजह थी सरकारी जमीन पर कब्जा. जबकि इस पर टाइटल सूट चल ही रहा था. यानी, जो जहां ताकतवर है, गरीबों की झोपड़ियां जलाएगा या उन्हें चैन से जीने नहीं देगा. यह तल्ख़ सच्चाई है, बिहार की. राहुल गांधी ट्वीट कर रहे हैं, लेकिन वे कहेंगे क्या? भाजपा के दो-दो उप-मुख्यमंत्री किसे कोसेंगे? चिराग पासवान किस पर आरोप लगाएंगे? मांझी अकेले नेता है, जो यादवों को कोस रहे है. उनका कहना है कि बिहार में मुसहर और चमार जाति के लोग वर्षों से एक जगह पर साथ-साथ रह रहे हैं. उनका कहना है कि विरोधी पक्ष के लोग यादव समाज के लोग हैं. उन्होंने जमीन के लिए कुछ मुसहर जाति के लोगों को अपने पक्ष में रखकर घटना को अंजाम दिया है. जबकि जिस गांव के दलितों की झोपड़ियां जलाई गयी है, वहां के लोगों ने प्राणपुर गांव के मुनि पासवान और उसके सहयोगियों पर घर जलाने का आरोप लगाया हैं. 

अब कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ, इसका फैसला पुलिस और अदालत करेगी. लेकिन, एक फैसला अभी कर लीजिये कि जमीन इस वक्त बिहार में हत्या का हथियार बन चुका है. बिहार सरकार ने कई महीने पहले ही पूरे बिहार में सर्वे की घोषणा कराई थी. इसमें जमीनी स्तर पर इतनी दिक्कतें आ रही है, कि लोग इसके स्थगन तक की बात करने लगे हैं. लेकिन, इसी सब का फायदा भू-माफिया भी उठाते है. आज बिहार के हर जिले में आपको 10 से 20 ऐसे करोड़पति युवा मिल जाएंगे, जिनका एकमात्र काम जमीन की दलाली का है. जमीन को हड़पने का इनका तरीका आप सुन लेंगे, तो हॉलीवुड का डायरेक्टर माथा पकड़ लेगा कि आखिर यह कहानी उसे क्यों नहीं सूझी. 

हमले पर राजनीति

बहरहाल, नवादा की घटना पर राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर हमला कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें हमला करने से अधिक अपनी दादी से सीखते हुए तुरंत नवादा के उस गांव पहुंचना चाहिए. गौरतलब है कि बेलछी नरसंहार (दलितों की ह्त्या पिछड़ी जाति के लोगों ने की थी) के समय ही इंदिरा गांधी हाथी पर सवार हो कर पहुंची थी. जनता पार्टी से जो करारी हार उन्हें मिली थी, उससे वो एक तरह से आइसोलेशन में चली गयी थी. हालांकि, बेलछी की घटना ने इंदिरा गांधी की राजनीति को नया जीवन दे दिया था. 

नवादा का मामला इतना संवेदनशील है कि यह नेताओं के लिए आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति है. किसे दोषी कहें, किसे गुनहगार? सरकार तो गुनहगार जरूर है. पिछले दस सालों में बिहार में अपराध का चरित्र ही बदल गया है या बदलने दिया गया है. पहले के सभी कथित माफिया आज भू माफिया बने हुए है. मुजफ्फरपुर की नवारुणा जैसी बची हो या कल्याणी चौक की जमीन को ले कर हुए विवादों में ह्त्या की सीरिज. आप समझ सकते हैं कि जमीन के लिए ये माफिया किसी की भी जान ले सकते हैं. और तो और, जानने वाले यह भी कहते है कि यह सब नेताओं और पुलिस के आला अधिकारियों के रहस्यमयी समर्थन के बिना संभव नहीं है. क्योंकि मामला करोड़ों-अरबों का है, तो हर आवाज को खामोश कर दिया जाता है. आप थोड़े भी सचेत हैं, तो आप आसानी से हर शहर में ऐसे भू-माफियाओं की पहचान आसानी से कर लेंगे. कल तक साइकिल से चलने वाले ये माफिया आज 1-1 करोड़ की गाडी से चल रहे हैं. तो क्या यह सब वे नेता-प्रशासन के समर्थन के बिना कर सकते हैं?

नीतीश कुमार क्या देंगे इस्तीफा?
 
बहरहाल, नवादा की घटना में भी यही सारे एंगल हैं. निश्चित ही, आगे की जांच से यही सब निकल कर सामने आएगा. बहरहाल, नीतीश कुमार जैसे नैतिकता का तकाजा जताने वाले नेता से उम्मीद करनी चाहिए कि वे इस मामले पर इस्तीफा देंगे या फिर फाइनल वार अगेंस्ट लैंड माफिया की शुरुआत करेंगे. यह घटना समझिये कि लैंड माफिया की ताबूत की अंतिम कील होनी चाहिए. नहीं होगी, तो हर जमीनधारी एक बार फिर बिहार छोड़ कर दिल्ली-हरियाणा में कमाने के लिए मजबूर हो जाएगा.

नीतीश कुमार ने जब अपनी पारी की शुरुआत की थी, तो उन्होंने रिवर्स-माइग्रेशन की बात कही थी. इसके लिए उन्होंने अपराध-मुक्त बिहार बनाने की कोशिशें भी शुरू की थीं. फास्ट ट्रैक कोर्ट में अपराधियों की धर-पकड़ से लेकर उनकी संपत्तियों में स्कूल वगैरह खोलने तक के उनके अभिनव प्रयासों ने बिहार की जनता के मन में कुछ आस भी जगायी थी. हालांकि, बीच रास्ते में वह कहीं राह भटके से नजर आते हैं और अब उनकी पूरी यात्रा ही दिशाहीन नजर आती है. बिहार का मुस्तकबिल बदले, उसके लिए जरूरी है कि जनता तो सोच-समझकर अपने नेता का चुनाव करे ही, साथ ही जमीन और जाति के झगड़ों पर विचार कर उनसे भी मुक्ति की राह तलाशे. 

 

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