तिरुपति के लड्डुओं में मिलावट है हिंदू आस्था से खिलवाड़ ?
तिरुपति के लड्डुओं में मिलावट है हिंदू आस्था से खिलवाड़, दोषियों को मिले कड़ी से कड़ी सजा
तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम् भारत ही नहीं विदेशों में भी रह रहे करोड़ों सनातनियों की आस्था का प्रतीक है. भगवान वेंकटेश्वर के इस मंदिर में प्रसाद के तौर पर लड्डू दिया जाता है. करीबन 3 लाख लड्डू हरेक दिन बनते और बांटे जाते हैं. अब उन लड्डुओं में घटिया सामग्री और पशु चर्बी के कथित उपयोग को लेकर बड़ा विवाद हुआ है. जगन रेड्डी की पार्टी को सत्ता से बेदखल कर सत्ता में आयी टीडीपी ने गुरुवार यानी 19 सितंबर को एक प्रेस कांफ्रेंस में यह दावा किया कि गुजारत के जिस लैब में लड्डुओं को जांच के लिए भेजा गया था, वहां मिलावट की पुष्टु हुई है. घी के नमूने में गाय और सूअर की चर्बी पाए जाने का दावा टीडीपी प्रवक्ता ने किया. हालांकि, जगन रेड्डी की पार्टी ने इस पूरे मामले को राजनीति से प्रेरित बता दिया है और कहा है कि उनके शासनकाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ है, वहीं कांग्रेस ने सीबीआई जांच की मांग कर दी है.
हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़
जगनमोहन रेड्डी के शासनकाल को विरोधी दल आम तौर पर हिंदू-द्वेषी बताते रहे हैं. ये जगन ही थे, जिन्होंने तिरुपति में नंदिनी घी की आपूर्ति पर रोक लगा कर किसी और सप्लायर से घी की आपूर्ति के लिए कहा था. इसके पीछे सरकार का यह भी तर्क था कि नंदिनी वालों ने टेंडर के मुताबिक चूंकि कोटेशन नहीं दिया था, इसलिए उनको हटाया गया, हालांकि जब तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन हुआ, तभी अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण ने कहा था कि टीटीडी (तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम्) में कई तरह की गड़बड़ियां हैं और उनकी जांच होगी. जांच हुई और प्रसाद में यह घोटाला पाया गया. इसे घोटाला कहना भी ठीक नहीं है, यह तो भयंकर अपराध है. करोड़ों हिंदुओं की आस्था से इस तरह का खिलवाड़ अभूतपूर्व, जघन्य और चिंताजनक है. इसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है. प्रसाद में गाय और सूअर की चर्बी होना और उसे देव-विग्रह पर चढ़ाना गंभीरतम अपराध है और इसीलिए जब पवन कल्याण कहते हैं कि उन्होंने इस मामले का संज्ञान लिया है और आगे भी कार्रवाई जारी रहेगी, तो अधिसंख्य हिंदू जनता उनके साथ जाकर खड़ी हो जाती है. राज्य के उप-मुख्यमंत्री ने सनातन रक्षण बोर्ड बनाने की वकालत की है. उन्होंने कहा है कि इसे केंद्रीय स्तर पर बनाया जाए और वह हिंदुओं के मंदिरों से उपजी तमाम समस्याओं का समाधान करे.
वापस करें हिंदुओं को मंदिर
यह देश संवैधानिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष है. हालांकि, यह धर्मनिरपेक्षता अद्भुत है. हम बड़े गर्व से कहते हैं कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां संसार के तमाम धर्म और संस्कृतियों के लोग निवास करते हैं. मोटे तौर पर यह सही भी है. यह धर्मनिरपेक्षता अगर मौजूद है, तो सरकार को किसी भी धर्म के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देनी चाहिए, लेकिन शायद भारत विश्व का इकलौता ऐसा देश है, जहां की बहुसंख्यक आबादी के लिए सारे बंधन, सारे प्रतिबंध हैं, बाकी सबके लिए वैसा कुछ भी नहीं है. यह अगर सच नहीं होता, तो सरकार हिंदुओं के सारे मंदिरों पर अपना कब्जा नहीं रखती, बाकी किसी भी रिलिजन या मजहब के पूजास्थल किसी भी प्रतिबंध से मुक्त हैं. किसी भी चर्च, गुरुद्वारे, सिनॉगॉग या मस्जिद का नियंत्रण सरकार के हाथों में नहीं है और यही सारी जड़ है.
जब सरकारें किसी हिंदू देवस्थल के नियंत्रण वाले बोर्ड में किसी गैर-हिंदू को अध्यक्ष बना देती हैं, तो जाहिर है कि वह हिंदू परंपराओं और हितों की दृष्टि से नहीं सोच सकता. गाय हिंदुओं के लिए पवित्र है, लेकिन मुसलमान और ईसाइयों के लिए नहीं. इसलिए, जब कोई गैर-हिंदू टीटीडी का अध्यक्ष बनेगा तो वह इस पर ध्यान भी नहीं देगा कि घी के बदले वनस्पति तेल और वनस्पति तेल के नाम पर गाय और सूअर की चर्बी खिलाई जा रही है. तिरुपति से करोड़ों रुपए की आय वहां की सरकार को होती है, इसलिए वह उस पर कब्जा बनाए रखती है. अभी कर्नाटक में फैसला हुआ है कि मंदिरों में चढ़ाए गए सोने का कुछ हिस्सा सरकार इस्तेमाल कर जन-कल्याण के कामों पर खर्च करेगी. अब यह जनकल्याण बड़ा ही दुरूह शब्द है, क्योंकि जिस भी भक्त ने वह सोना चढ़ाया है, वह अपने प्रभु को अर्पित किया है, वह उस धर्म का हिस्सा है, इसलिए किया है. अब उसको यूरोपियन सेकुलरिज्म के आधार पर आप आंकेंगे, तो दिक्कत होगी ही. यही तिरुपति में हुआ है.
हिंदू खुद भी जिम्मेदार
आज का सनातनी या हिंदू खुद भी इस हालत के लिए जिम्मेदार है. उसकी आस्था के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ करने की हिम्मत ये सरकारें कहां से लाती हैं? सरकारों को पता है कि हिंदू कुछ नहीं कर सकता है. अधिक से अधिक एकाध दिन सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड करेगा, फिर बात खत्म हो जाएगी. यह हिंदू जब खुद बाजार जाकर पूजन-सामग्री खरीदता है, तो दुकानदार को कहता है कि ‘पूजा वाला घी’ देना, जो 200 रुपए किलो हो. अब इतने कम दाम में आपको घी मिलेगा या जानवरों की चर्बी, यह जानने के लिए रॉकेट साइंस का जानकार होने की जरूरत नहीं है. जिस तिरुपति के लड्डू की हम बात कर रहे हैं, उसकी ही नकल पटना के महावीर मंदिर में शुरू हुई. अब चूँकि महावीर मंदिर एक ट्रस्ट के सहारे है, हिंदुओं का है, तो आप वहां जाकर कभी भी लड्डू बनने की प्रक्रिया देख सकते हैं, उसकी शुद्धता और सात्विकता का पूरा पालन देखकर आपको चक्कर आ जाएगा, क्योंकि सुबह 4 बजे से वह काम शुरू होता है. कोई भी मौसम हो, लड्डू बनाने का काम करनेवाले नहा-धोकर ही काम करते हैं और जब तक लड्डू बनने की प्रक्रिया में रहते हैं, वह खाना भी नहीं खाते हैं.
इसको आप तिरुपति देवस्थानम् से मिलाकर देखिए, एक गैर-हिंदू के बोर्ड अध्यक्ष बनने से जोड़कर देखिए और देखिए कि एक भरी पूरी सरकार भी इस देश के बहुसंख्यकों के साथ कभी भी, कैसे भी खेल सकती है, क्योंकि उसको डर नहीं है. ना तो उसको प्रतिरोध का डर है, ना ही वोट बिगड़ने का. वह जानते हैं कि कुछ दिनों में यह बात भी आयी-गयी हो जाएगी. खुद हिंदुओं के वर्ग में कुछ ऐसे हैं जो अभी से ही इस तरह की बातें भी कर रहे हैं कि असल मजा तो जानवरों की चर्बी से ही आता है. दरअसल, वे ऐसा कहकर न तो बौद्धिक बन रहे हैं, न भोले हिंदुओं की आस्था को तोड़ पा रहे हैं. वे अपनी मूर्खता और अज्ञान प्रकट कर रहे हैं. हिंदू धर्म इतना विशाल और गत्यात्मक (डायनैमिक) है कि यहां नृसिंह भगवान और काली मां भी हैं, जिनको बलि के तौर पर भोग लगता है, लेकिन वेंकटेश को आप गौमांस मिला प्रसाद चढ़ा रहे हैं, उसको डिफेंड भी कर रहे हैं, तो आपकी बुद्धि भ्रष्ट है, आप बस अपराधी हैं.
पूर्व सीएम सहित जितने भी अधिकारी इसमें लिप्त पाए जाएं, उन पर कड़ी कार्रवाई हो, कठोर दंड मिले, तो कम से कम हिंदुओं को संतोष मिल सकता है. करोड़ों श्रद्धालुओं के साथ जो इन्होंने किया है, वह तो खैर किसी भी हाल में वापस नहीं किया जा सकता है, पर जो धर्म को जानेगा, वही तो इस बात को समझेगा.
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