हम सभी को इतिहास से सबक सीखने होंगे
हम सभी को इतिहास से सबक सीखने होंगे …
9 अगस्त इतिहास में एक शर्मनाक दिन के रूप में दर्ज होगा। यह वह दिन था, जब कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल अस्पताल की एक प्रशिक्षु डॉक्टर-युवती के साथ दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या कर दी गई। इसके अलावा, इस अपराध ने भ्रष्टाचार और राजनीतिक मिलीभगत की परतों को भी उजागर किया, जो लगातार बढ़ रही थीं।
मेरा जन्म और परवरिश कोलकाता में हुई और इस शहर से मेरा गहरा संबंध है। भारत के कई स्थानों पर इसी तरह के अपराध हुए हैं, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ। लेकिन शायद कोलकाता से मेरे बचपन के संबंध के कारण, मैं इस घटना पर अधिक गुस्सा और शर्म महसूस करता हूं।
हालांकि, इस अंधकार के बीच एक उम्मीद की किरण यह है कि आम लोग धीरे-धीरे जागरूक हो गए हैं। बूढ़े और जवान, डॉक्टर और नर्स, और बड़ी संख्या में छात्र, जिनका इस मामले से कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है, और जो किसी भी राजनीतिक पार्टी के बंधक नहीं हैं, वे सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन के लिए उतर आए हैं।
जो युवती इस हादसे की शिकार हुईं, उनके और उनके परिजनों के लिए यह एक त्रासदी थी। लेकिन इस हादसे ने समाज में बढ़ती हुई गिरावट की ओर ध्यान खींचने का काम किया है। ऐसा लगता है कि अपराध और भ्रष्टाचार में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है, विशेष रूप से महिलाओं के प्रति हिंसा और शोषण में। ये सिर्फ व्यक्तिगत रूप से किए गए बुरे कर्म नहीं हैं, बल्कि कई बार राजनीतिक संरक्षण के तहत हो रहे हैं।
हमें इस घटना के बारे में ठहर कर यह विचार करना चाहिए कि हम क्या कर सकते हैं। इसमें हम सभी के लिए सबक हैं- विरोध-प्रदर्शन करने वाले छात्रों के लिए, पत्रकारों व पर्यवेक्षकों के लिए, और नेताओं के लिए भी।
विरोध करने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि भले ही उनके इरादे नेक हों, सुधार के मार्ग में जोखिम होते हैं। इतिहास ऐसे विरोधों और विद्रोहों से भरा है, जो अच्छे उद्देश्य से शुरू हुए, लेकिन रास्ते में हाइजैक हो गए और अराजकता और अव्यवस्था पैदा की।
हमने यह 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के मामले में देखा। हमने यह 1917 में रूस के मामले में देखा। साम्यवादी क्रांति अत्यधिक असमानता और श्रमिकों के भयानक शोषण की प्रतिक्रिया थी। हालांकि, जैसा कि हमने बाद में पाया, साम्यवादी यूटोपिया बनाने के बजाय, रूस ने सबसे खराब प्रकार के क्रोनी-पूंजीवाद को अपनाया।
हम इसे हालिया विद्रोहों में भी देख सकते हैं, जैसे कि मध्य-पूर्व में अरब स्प्रिंग, जहां कुछ प्रगतिशील आंदोलनों को तानाशाहों और धार्मिक कट्टरपंथी समूहों ने अपने कब्जे में ले लिया, जिससे उन देशों को और बड़ा झटका लगा।
यह विरोध करने वालों के लिए जरूरी है कि वे यह ध्यान रखें कि हमारा उद्देश्य एक बेहतर दुनिया के लिए सुधार लाना है, और हमें धार्मिक कट्टरता के जाल से बचना होगा, जो भारत के लिए एक गंभीर धक्का साबित हो सकता है।
नेताओं के लिए सबक यह है कि उन्हें अपने कुछ कार्यों पर पुनर्विचार करने के लिए विनम्रता दिखानी चाहिए। एक बार फिर, इतिहास में सबक मौजूद हैं। सत्ता कैसे एक भ्रष्ट करने वाली ताकत बन सकती है, इसके कई उदाहरण हैं। जब शेख हसीना पहली बार सत्ता में आईं, तो उन्होंने उम्मीदें जगाई थीं।
वे धर्मनिरपेक्ष थीं, और उन्होंने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत कुछ अच्छा किया। हालांकि, रास्ते में कहीं, उन्होंने सभी आलोचनाओं पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया, मीडिया को चुप कराने लगीं और तानाशाह बन गईं।
जब डैनियल ओर्टेगा ने सोमोज़ा-निकारागुआ के अत्याचारी शासक को उखाड़ फेंका, तो वे अपने देश और दुनिया में एक अत्यधिक प्रशंसित व्यक्ति थे। निकारागुआ के राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने बहुत आशा जगाई। लेकिन समय के साथ, वे भी धीरे-धीरे एक तानाशाह बन गए, जो अब किसी भी विपक्ष को निर्दयता से कुचल रहा था ।
इतिहास में कई उदाहरण हैं जब नेता अच्छे से बुरे बन गए। लेकिन सौभाग्य से कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जब नेता बुरे से अच्छे बने। जाम्बिया के केनेथ कोंडा का उदाहरण लें, जो दमनकारी शासक थे, लेकिन कालांतर में वे लोकतांत्रिक बन गए और विपक्षी दलों के निर्माण और उन्हें काम करने की अनुमति दी।
भारत में, हमारे पास इंदिरा गांधी का उदाहरण है, जिन्होंने 1975 में आपातकाल की घोषणा की और तानाशाही शक्तियों का सहारा लिया, लेकिन अंततः उन्हें इसका पछतावा हुआ। उन्होंने 1977 में बिना किसी हस्तक्षेप के चुनाव आयोजित होने दिए। वे चुनाव हार गईं, लेकिन उन्होंने भारत को बचा लिया।
आशा करते हैं कि भारत और अन्य जगहों के नेताओं में इतनी विनम्रता होगी कि वे अपनी विफलताओं से सीखें, अपने कार्यों पर पुनर्विचार करें और बेहतर के लिए बदलाव लाने का प्रयास करें। हमें समझने की जरूरत है कि बेहतर समाज और अर्थव्यवस्था बनाने के लिए केवल कड़ी मेहनत करना, अधिक पैसे कमाना, अधिक कारें खरीदना और अधिक घर बनाने का प्रयास करना पर्याप्त नहीं है।
हमें बुनियादी नैतिकताओं की भी जरूरत है। नैतिकता से मेरा मतलब धर्म और प्रार्थना नहीं है। मेरा मतलब है ईमानदारी, दया और अन्य मनुष्यों के प्रति प्रेम। आशा करते हैं कि 9 अगस्त 2024 इतिहास में केवल शर्म का दिन नहीं, बल्कि उम्मीद और ज्ञान का दिन भी बनेगा।
सुधार के मार्ग में जोखिम हैं… विरोध करने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि भले ही उनके इरादे नेक हों, लेकिन सुधार के मार्ग में जोखिम होते हैं। इतिहास ऐसे विरोधों और विद्रोहों से भरा है, जो अच्छे उद्देश्य से शुरू हुए, लेकिन रास्ते में हाइजैक हो गए और उन्होंने अराजकता और अव्यवस्था पैदा की।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)