डिजिटल कंपनियां भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिए जवाबदेह ?

डिजिटल कंपनियां भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिए जवाबदेह …

यूनिसेफ के अनुसार भारत में 43 करोड़ से ज्यादा बच्चे नाबालिग हैं। सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के अनुसार चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना, देखना, प्रसारित करना पॉक्सो कानून के तहत संगीन अपराध है। वीडियोज को इंटरनेट से लोग देखकर टेलीग्राम और वॉट्सएप के माध्यम से प्रसार करते हैं।

फैसले से इंटरमीडियरी यानी इंटरनेट, सोशल मीडिया और एप्स आदि की पॉक्सो और आईटी कानून के तहत जवाबदेही सुनिश्चित की गई है। मर्ज की जड़ पर प्रहार के लिए इन 6 पहलुओं पर एक्शन हो तो बच्चों की साइबर सुरक्षा के साथ डिजिटल गवर्नेंस बढ़ेगी।

1. दिल्ली हाईकोर्ट में साल 2013-14 में मैंने गोविंदाचार्य मामले में बहस की थी। उसमें सरकार के हलफनामे के अनुसार 18 से कम उम्र के नाबालिग डिजिटल अनुबंध नहीं कर सकते। इसलिए ऑनलाइन गेमिंग, डिजिटल शेयर ट्रेडिंग, क्रिप्टो कारोबार और पोर्नोग्राफी से जुड़े एप्स में नाबालिग बच्चों की डिजिटल गतिविधियों को रोकने के लिए सख्त कारवाई होनी चाहिए। एनडीपीएस की तरह इस कानून का दुरुपयोग नहीं हो, इसके लिए भी सतर्कता बरतनी होगी।

2. डिजी कवच के विज्ञापन में गूगल ने रोजाना 15 अरब स्पैम और फिशिंग मैसेज को ब्लॉक करने के साथ गूगल एंड्रायड एप्स में 200 अरब स्कैनिंग जैसे अनेक दावे किए हैं। पोर्नोग्राफी की हैवानियत गैर-कानूनी होने के साथ बच्चों और महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध है। वेबसाइट्स पर सरकारी प्रतिबंध लगाने के साथ पोर्नोग्राफी से जुड़े ऐप्स पर आई टी इंटर मीडियरी नियमों के अनुसार गूगल और एप्पल प्ले स्टोर को कारवाई करना चाहिए।

3. दुष्कर्म के बढ़ते मामलों में ड्रग्स और पोर्नोग्राफी की बड़ी भूमिका आई है। आईपीसी और नए बीएनएस कानून के अनुसार बच्चों-महिलाओं को ब्लैकमेल करना व पोर्नोग्राफी का कारोबार गम्भीर अपराध है। आईटी रूल्स 2011-2021 के नए नियमों के अनुसार इंटरनेट कम्पनियों को अपने प्लेटफॉर्म से पोर्न सामग्री हटाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर आईटी कानून की धारा-79 के तहत इंटरमीडियरी कम्पनियों को दी गई सेफ हार्बर की कानूनी सुरक्षा खत्म हो सकती है।

4. गृह मंत्रालय की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन के साथ एमओयू का अनुमोदन किया है। उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बच्चों की पोर्नोग्राफी से जुड़े कंटेंट को हटाने के लिए इंटरनेट कम्पनियों को पुलिस को सूचित करना जरूरी है। फैसले के बाद पोर्नोग्राफी का प्रसार करने वाले एप्स व डिजिटल कम्पनियों के खिलाफ पॉक्सो के तहत पुलिस को आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए।

5. फैसले में बाल-यौन उत्पीड़न और शोषणकारी शब्द के इस्तेमाल के लिए संसद से कानून में बदलाव की बात कही गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार साइबर और आईटी से जुड़े मामलों में केंद्र सरकार के पास कानूनी अधिकार हैं। जबकि कानून-व्यवस्था और पुलिस का विषय राज्यों के अधीन है।

इसीलिए साइबर और पॉक्सो से जुड़े अपराधों की जांच राज्यों की पुलिस करती है। पॉक्सो कानून का उल्लंघन करने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ राज्यों में पुलिस प्रभावी कार्रवाई कर सके, इसके लिए आईटी एक्ट और दूसरे कानूनों में बदलाव की जरूरत है।

6. एकाधिकार, टैक्स चोरी, मुनाफा वसूली, डेटा चोरी जैसे मामलों में टेक कम्पनियों पर ईयू व अमेरिका में बड़ा जुर्माना लग रहा है। फेडरल ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक, गूगल, यू-ट्यूब, अमेजन, एक्स और स्नेपचैट जैसे 9 प्लेटफॉर्म यूजर्स की निजी जानकारी इकठ्ठा करके अन्य कम्पनियों से साझा कर रहे हैं।

पोर्नोग्राफी कंटेंट और नाबालिग बच्चों की गतिविधियों के बारे में भी इन कंपनियों को पूरा ज्ञान है। गैर-कानूनी कंटेंट को ब्लॉक करने के बजाए ये कम्पनियां डिजिटल साक्षरता और सुरक्षा टूल्स का ​दिखावा कर रही हैं। मुनाफे के लिए बच्चों के मानसिक स्वास्थ, शिक्षा, भविष्य से खिलवाड़ मानवता के खिलाफ अपराध है।

दुष्कर्म के बढ़ते मामलों में ड्रग्स और पोर्नोग्राफी की बड़ी भूमिका सामने आई है। आईटी रूल्स 2011 और 2021 के नए नियमों के अनुसार इंटरनेट कम्पनियों को अपने प्लेटफॉर्म से पोर्नोग्राफिक सामग्रियां हटाना जरूरी है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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