इसका पता इससे चलता है कि इस प्रक्रिया के प्रति लोगों का असंतोष बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे नए राजमार्ग और एक्सप्रेसवे बनते जा रहे हैं वैसे-वैसे वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है। इसी के साथ अपने वाहनों से लंबी दूरी की यात्रा करने का प्रचलन भी बढ़ रहा है, लेकिन यह देखने में आ रहा है कि टोल वसूलने की प्रक्रिया समय खपाने वाली बनी हुई है।

टोल प्लाजा में वाहनों के निकलने के समय के संदर्भ में सरकार के दावे कुछ भी हों, लेकिन सच्चाई यह है कि लगभग पूरी टोल वसूली इलेक्ट्रानिक तरीके से होने के बावजूद किसी न किसी कारण देरी होती है। इसकी सबसे प्रमुख वजह टोल ऑपरेटरों और एजेंसियों के कामकाज में दक्षता का अभाव है।

समस्या केवल यह नहीं है कि टोल चुकाने के दौरान समय की अनावश्यक बर्बादी होती है, बल्कि यह भी है कि टोल प्लाजा में वाहनों की लंबी कतारें लगने से पेट्रोल एवं डीजल की बर्बादी भी होती है। इसका आकलन किया जाना चाहिए कि टोल वसूलने के दौरान लगने वाले समय के चलते ईंधन की कितनी बर्बादी होती है और उससे पर्यावरण को कितनी हानि पहुंचती है।

निःसंदेह राजमार्गों और एक्सप्रेसवे आदि के निर्माण में रखरखाव के लिए वाहन चालकों से शुल्क लेना ही होगा, लेकिन उसकी अदायगी सुगम तरीके से होनी चाहिए। सरकार के तमाम वादों के बावजूद ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसका एक कारण उन्नत तकनीक उपयोग न किया जाना है।

यह ठीक है कि नई टोल नीति में उन्नत तकनीक के इस्तेमाल की बात की जा रही है, लेकिन उसकी उपयोगिता तभी सिद्ध होगी जब लोगों को राहत मिलेगी। फास्टैग को एक उन्नत तकनीक के रूप में ही अमल में लाया गया था, लेकिन समय के साथ वह समस्याजनक हो गया। नई तकनीक ऐसी होनी चाहिए जिससे टोल प्लाजा वास्तव में बैरियर मुक्त हो सकें।

तकनीक ऐसी चीज है जिसे निरंतर उन्नत बनाने की आवश्यकता होती है। अपने देश में इस पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा पा रहा है। आशा की जानी चाहिए कि नई टोल नीति से यह भी स्पष्ट होगा कि किसी राजमार्ग पर किस आधार पर कितनी अवधि तक टोल वसूला जाएगा। इसके साथ ही राजमार्गों, एक्सप्रेसवे आदि के रखरखाव पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि यह सामने आता रहता है कि क्षतिग्रस्त राजमार्गों और एक्सप्रेसवे की मरम्मत का काम समय पर सही तरह नहीं होता है।