प्रोफेसर से IPS बने अमित पाठक की कहानी !

छात्रा की FIR कराने थाने पहुंच गए IPS
चर्चित DSP तंजील अहमद मर्डर केस सॉल्व किया; प्रोफेसर से IPS बने अमित पाठक की कहानी

यूपी पुलिस फोर्स में IPS अमित पाठक एक बड़ा नाम हैं। उन्हें जहां भी तैनाती मिली, कभी कानून व्यवस्था से समझौता नहीं किया। 8 जिलों में SP और SSP रहने के साथ करीब 5 साल यूपी STF के SSP भी रहे। गाजियाबाद में SSP रहने के दौरान जब एक छात्रा से मोबाइल लूट की FIR नहीं हुई तो वह न्याय दिलाने खुद थाने पहुंच गए।

पढ़ाई के शुरुआती दिनों में अमित प्रोफेसर बनना चाहते थे। महज 21 साल की उम्र में नेट क्वालिफाइ कर असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए सिलेक्ट हुए। तब एक दोस्त ने कहा – अभी उम्र ही कितनी है। सिविल की तैयारी करो। दोस्त के कहने पर प्रोफेसर की नौकरी ठुकरा दी। दिल्ली आकर UPSC की तैयारी करने लगे।

अमित चौथे प्रयास में 2007 बैच के IPS बन गए। अब तक के करियर में उन्होंने कई चर्चित मर्डर केस सॉल्व किए। लखनऊ में STF एसएसपी रहते हुए प्रदेश के पेट्रोल पंप पर छापेमारी करवाई। चिप से चल रही घटतौली पकड़ी। यह केस नजीर बना। इसके बाद 17 राज्यों के पेट्रोल पंप पर चिप से घटतौली पकड़ी गई। NIA के DSP तंजील अहमद का मर्डर केस साल्व करना उनके लिए सबसे बड़ा चैलेंज रहा। अमित पाठक इस वक्त पुलिस हेड क्वार्टर में DIG लोक शिकायत हैं।

…… खास सीरीज खाकी वर्दी में IPS अमित पाठक की कहानी 6 चैप्टर में पढ़ेंगे…

यूपी के उन्नाव शहर में एबी कॉलोनी है। यहां रहने वाले सुरेंद्र कुमार पाठक पेशे से एमबीबीएस डॉक्टर रहे। 22 जनवरी, 1979 को घर पर बेटे ने जन्म लिया। मां रीता पाठक ने नाम रखा अमित। पिता पेशे से डॉक्टर और मां भी स्वास्थ्य विभाग में थीं तो शुरुआती पढ़ाई अच्छे स्कूल में हुई।

अमित बताते हैं कि 8वीं तक की पढ़ाई उन्नाव शहर में ही ICSE बोर्ड के स्कूल से हुई। साल 1994 में कानपुर के वीरेंद्र स्वरूप इंटर कॉलेज से प्रथम श्रेणी से हाईस्कूल पास किया। 1996 में प्रथम श्रेणी में इंटर की पढ़ाई पूरी की। जिसके बाद DSN कॉलेज उन्नाव से 1999 में बीएससी किया। तब वह प्रोफेसर बनने की प्लानिंग कर रहे थे। साल 2001 में कानपुर के पीपीएन कॉलेज से प्रथम श्रेणी में MSC की।

इसी साल उन्होंने केमिस्ट्री से UGC नेट क्वालिफाइड किया। तभी उनका चयन कानपुर यूनिवर्सिटी में ऑर्गेनिक केमिस्ट्री के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए हुआ। हालांकि, उन्होंने जॉइन नहीं किया। दूसरी नौकरी भी उन्हें प्रोफेसर की मिली, लेकिन उसे भी ठुकरा दिया।

अमित पाठक बताते हैं कि मम्मी-पापा ने बचपन में कभी भी नहीं दबाव नहीं डाला कि तुम क्या बनोगे। मम्मी-पापा ने यह मुझ पर छोड़ दिया। वह बस यही कहते कि प्रेशर ठीक नहीं होता। जब 21 साल की उम्र में नेट परीक्षा पास कर प्रोफेसर की नौकरी पा सकते तो फिर जीवन में कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

साल 2001 अमित पाठक के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा। इस साल उनके पिता डॉ. सुरेंद्र कुमार की कैंसर से मौत हो गई। ऐसे में उन पर और भी जिम्मेदारी आ गई। अमित कहते हैं कि मेरे एक दोस्त उस समय यूपीएससी की तैयारी करने लगे। एक दिन उन्होंने कहा- अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? यह नौकरी करने नहीं पढ़ने की उम्र होती है। यूपीएससी की तैयारी करोगे तो एक दिन जरूर कामयाबी मिलेगी।

इसी के बाद से अमित पाठक ने अफसर बनने की ठान ली। वह दिल्ली आ गए और यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली। वह निराश नहीं हुए और यह मानकर मेहनत करते रहे कि अगर मैं अफसर बनने के काबिल हूं तो मुझे कोई रोक नहीं सकता। इसी जुनून और मेहनत के बल पर चौथे प्रयास में कामयाबी मिली। वह IPS अफसर बन गए।te

अमित पाठक को पहली पोस्टिंग लखनऊ में मिली। वह फतेहपुर, चंदौली, एटा, अलीगढ़, आगरा, मुरादाबाद, वाराणसी और गाजियाबाद में SSP रहे। साल 2012 से 2017 तक यूपी एसटीएफ के SSP रहे।

अमित बताते हैं कि तभी 2 अप्रैल, 2016 को बिजनौर जिले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के DSP तंजील अहमद और उनकी पत्नी फरजाना की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह वारदात बिजनौर के स्योहारा में रात के करीब 1 बजे की गई। एनआईए के DSP पत्नी और बच्चों के साथ एक शादी से कार से लौट रहे थे। DSP तंजील अहमद को 24 गोलियां लगी थीं। गोली लगने और शरीर से बाहर निकलने के निशान इससे कहीं ज्यादा थे।

यह यूपी का ही नहीं बल्कि पूरे देश का सबसे चर्चित मर्डर केस रहा। यूपी पुलिस के अलावा एसटीएफ, एनआईए और ATS की टीमें लगाई गई। इस एंगल पर भी केस की जांच शुरू की गई कि कहीं हत्यारों का आतंकी कनेक्शन तो नहीं हैं।

अमित पाठक बताते हैं कि इस केस को साल्व करने के लिए मैं घटनास्थल पर पहुंचा। घटनास्थल से लेकर आसपास के इलाके को छान मारा। एसटीएफ को अहम क्लू मिले। एक बात तो साफ हो गई थी कि यह मर्डर का कोई आतंकी कनेक्शन नहीं है। इसे शूटरों अंजाम दिया होगा।

एक मोबाइल रिचॉर्ज करने वाली दुकान से हमें अहम सबूत मिले। इसके बाद एसटीएफ ने वारदात में शामिल रैयान फिर मुनीर को पकड़ा। शूटर मुनीर ने अपने साथी रैयान के साथ मिलकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया। कुख्यात मुनीर इस हत्याकांड को अंजान देने के लिए 4 पिस्टल लेकर पहुंचा था। जिसने पूरी रेकी के साथ एनआईए के DSP तंजील अहमद और उनकी पत्नी की हत्या की। जिसमें दो पिस्टल मुनीर ने खुद अपने पास रखीं, और अन्य दो पिस्टल लोड करके रैयान को दीं।

शूटरों की प्लानिंग थी कि अगर एक पिस्टल नहीं चली तो दूसरी से गोली बरसानी है। वह बताते हैं कि इस केस में आरोपियों ने मोबाइल रिचॉर्ज कराते समय जब फुटेज डिलीट कराने का प्रयास किया, वहीं से हत्यारे पकड़ में आए। जिसके बाद एसटीएफ ने इस केस को सॉल्व कर लिया।

अमित बताते हैं कि साल 2017 में अप्रैल महीने का आखिरी हफ्ता था। एसटीएफ को सुराग मिले कि लखनऊ, कानपुर व मेरठ समेत अलग-अलग जिलों में पेट्रोल पंपों पर चिप लगाकर घटतौली की जा रही है।

कम डीजल और पेट्रोल देकर ग्राहकों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जिसके बाद एक्सपर्ट की मदद से हमने पहले बारीकी से पूरा खेल समझा। 29 अप्रैल, 2017 को एसटीएफ की अलग-अलग टीमें बनाकर लखनऊ, कानपुर, उन्नाव, मेरठ समेत दूसरे जिलों में एक साथ छापे मारे गए।

जब घटतौली पकड़ी गई तो बड़ा खुलासा हुआ। पता चला कि पेट्रोल पंपों की मशीन में इलेक्ट्रॉनिक चिप लगाई गईं थी। जहां बड़े पैमाने पर डीजल और पेट्रोल की घटतौली का पर्दाफाश हुआ। पूरे प्रदेश में एसटीएफ की यह कार्रवाई नजीर बनी। यूपी एसटीएफ के इनपुट पर देश के दूसरे राज्यों की एसटीएफ ने भी इस कार्रवाई को सराहा और अपने-अपने राज्यों में मशीनों में चिप पकड़ीं।

पूरे प्रदेश के पेट्रोल पंपों की मशीन बदली गईं, यहां तक कि एसटीएफ की इस कार्रवाई के बाद देश के 17 राज्यों में भी पंप की मशीनों को बदला गया। इस गैंग के मास्टरमाइंड समेत 50 से ज्यादा लोग पूरे प्रदेश से अरेस्ट किए गए। एसटीएफ में एसएसपी रहते हुए नकल माफियाओं पर भी शिकंजा कसा। कई बड़े माफिया को अरेस्ट कर सलाखों के पीछे भेजा गया।

अमित पाठक बताते हैं कि जुलाई, 2021 की बात है। मैं गाजियाबाद जिले में SSP था। गाजियाबाद के मसूरी में बीए की छात्रा से मोबाइल लूट लिया गया। जिसके बाद छात्रा ने डायल-112 पर सूचना दी। मौके पर पुलिस पहुंची लेकिन मोबाइल गुम होने की बात कहते हुए केस दर्ज नहीं किया।

अगले दिन छात्रा ने मुझे बताया कि मेरा मोबाइल छीन लिया गया। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। अपने ऑफिस में सुनवाई के दौरान मैंने एडिशनल एसपी से कहा कि आप जनसुनवाई करते रहिए। छात्रा को लेकर मैं एक फरियादी की तरह मसूरी थाने पहुंच गया। अचानक अफसर को थाने में देख पुलिस में हड़कंप मच गया। मैंने कहा कि तहरीर लिखें। आनन-फानन में मोबाइल लूट की एफआईआर दर्ज कर कॉपी पीड़िता को दी गई। इस मामले में चौकी इंचार्ज व दूसरे पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया।

अमित पाठक बताते हैं कि मई, 2021 की बात है। यह सूचना मिली कि लोनी बार्डर थाने के इंस्पेक्टर ने अवैध हथियार के मामले में एक युवक को अरेस्ट किया। युवक पर न तो एफआईआर दर्ज की गई, न ही उच्च अधिकारियों को सूचना मिली। इंस्पेक्टर ने मोटी रकम लेकर युवक को छोड़ दिया। जिसके बाद मैं सादे कपड़ों में थाने पहुंच गया। पूरे मामले की जांच कराई तो आरोप सही पाए गए। जिसके बाद मौके पर ही इंस्पेक्टर विश्वजीत और दूसरे पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में कार्रवाई की।

जून, 2021 में गाजियाबाद में एक ही परिवार के 4 लोगों के मर्डर केस को भी सॉल्व किया। पहले पुलिस इस केस को लूट व डकैती से जोड़कर देख रही थी। अमित पाठक बताते हैं कि जब मैं इस मर्डर केस पर घटनास्थल पर पहुंचा तो गोली के निशान शरीर पर देखे। तभी समझ गया कि बदमाशों ने लूट या डकैती के लिए मर्डर नहीं किया है, यह रंजिश या प्रॉपर्टी का विवाद हो सकता है।

जांच में पता चला कि भतीजे अय्यूब ने 1 करोड़ रुपए के लिए अपने ताऊ रहीसुद्दीन, उनके दो बेटे और एक महिला की गोली मारकर हत्या की गई थी। यह गाजियाबाद का सबसे चर्चित केस रहा।

अमित पाठक बताते हैं कि दिसंबर, 2018 की बात है, मैं उस समय आगरा एसएसपी था। आगरा के मलपुरा गांव की रहने वाली 10 वीं की छात्रा दोपहर को स्कूल से साइकिल से घर लौट रही थी। छात्रा के साथ अन्य छात्राएं भी थीं, लेकिन वह आगे निकल गईं। तभी पुलिस को सूचना मिली की छात्रा पर पेट्रोल उड़ेलकर आग लगा दी गई। मैं भी मौके पर पहुंचा। पुलिस ने छात्रा को तत्काल में अस्पताल में भर्ती कराया, मजिस्ट्रेट व महिला पुलिस ने भी बयान दर्ज किए। जहां छात्रा का उपचार शुरू हुआ। बाद में छात्रा को दिल्ली रेफर कर दिया। अगले दिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

पुलिस के मुताबिक, छात्रा के बयान से यह बात साफ हो चुकी थी कि गांव व परिवार के युवक पर संदेह है। छात्रा ने बयान में कहा था कि मुझे चचेरा भाई ही परेशान करता है। पुलिस ने इस केस में अलग-अलग स्थानों पर CCTV खंगाले। कुछ संदिग्ध मोबाइल नंबरों की लोकेशन ट्रेस की गई।

पुलिस ने जब छात्रा के चचेरे भाई के घर छापेमारी की तो वहां से कुछ लेटर मिले। यह छात्रा के लिए लिखे गए थे। पुलिस ने आरोपी योगेश और उसके साथियों को ट्रेस किया। पता चला कि पहले चचेरा भाई तेजाब से चेहरा झुलसाना चाहता था। तेजाब नहीं मिला तो पेट्रोल डालकर कपड़े जलाना चाहता था। लेकिन आग इतनी भयंकर लगी कि छात्रा झुलस गई। आरोपी ने सारे सबूत मिटाने का प्रयास किया।

बाइक सवार तीनों युवकों ने घटना को अंजाम देने के लिए पहले हेलमेट लगाए। इसके बाद स्कूल से घर आने वाले रास्ते पर रेकी की। घटना के अगले दिन छात्रा की मौत हुई, तो तीसरे दिन आरोपी युवक ने भी पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए जहरीला पदार्थ खाकर जान दे दी। इस केस में पुलिस ने अन्य दोनों युवकों को अरेस्ट कर केस सॉल्व किया।

अमित बताते हैं कि एसटीएफ में एसएसपी रहते हुए ही देश का सबसे बड़ा 3700 करोड़ रुपये की सोशल ट्रेडिंग के नाम पर ठगी का पर्दाफाश किया। जिसमें मुख्य आरोपी अनुभव मित्तल ने पूरा गैंग खड़ा कर यह ठगी की। कई राज्यों में इसके केस दर्ज हुए। यह पहला ऐसा केस था, जिसमें 1 हजार करोड़ से अधिक की रिकवरी की गई। जिसमें साढ़े 6 लाख लोगों को पोंजी स्कीम देकर ठगा गया। इसमें अलग-अलग लोगों को जेल भेजा गया। एसटीएफ में रहते ही बिहार के सबसे चर्चित डॉक्टर दंपती को सकुशल बरामद किया था।

बाघ की तस्करी का खुलासा

अमित पाठक बताते हैं कि फरवरी, 2017 में एसएसपी एसटीएफ रहते हुए बाघ की तस्करी का भी पर्दाफाश किया। एसटीएफ ने वन्य जीवों के अवशेष बरामद किए। कानपुर और दूसरे स्थानों से टाइगर, लायन, दुर्लभ प्रजातियों की चिड़िया, कछुए को रेस्क्यू कराया। हालांकि, इसमें शेर और चीते को मार दिया गया था। इस गैंग पर यूपी एसटीएफ ने कार्रवाई की।

जब वर्दी पहनी, तभी मां का निधन

अमित पाठक कहते हैं कि एक मलाल जीवन भर रहेगा, जिसे कभी भूला भी नहीं जा सकता। मम्मी-पापा ने हमेशा अनुशासन में रहकर पढ़ना सिखाया। जब बचपन में छोटा था तो मम्मी रात में स्कूल ड्रेस के कपड़े धोया करती थीं। लेकिन जब सफलता मिली तो मम्मी और पापा नहीं रहे। 2001 में पिता का कैंसर से निधन हुआ। जब आईपीएस में चयन हुआ तो 2009 में मम्मी की भी कैंसर से मौत हो गई।

2009 में नीलम अग्रवाल से शादी

अमित पाठक अपनी शादी के बारे में बताते हैं कि दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी के दौरान मेरी मुलाकात नीलम अग्रवाल से हुई। वह भी उस समय सिविल सेवा की तैयारी कर रहीं थीं। जिसके बाद हम दोनों में बातचीत होने लगी। साल 2009 में परिवार की मर्जी से शादी की। नीलम अग्रवाल झारखंड में डिप्टी कलेक्टर भी रह चुकीं हैं। नीलम अग्रवाल 2008 बैच की आईआरएस अधिकारी हैं। इस समय वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय नई दिल्ली में निदेशक हैं।

अचीवमेंट्स

  • डीजीपी के तीनों मेडल से सम्मानित किए जा चुके हैं।

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