दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के चुनाव …. फीस बढोतरी, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे वोटिंग के दौरान दिखे हावी;

DUSU: फीस बढोतरी, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे वोटिंग के दौरान दिखे हावी; नए अध्यक्ष से छात्रों के यह है उम्मीदें

छात्राओं ने सुरक्षा पर चिंता जताई और ऐसे प्रतिनिधियों के लिए वोट करने की बात कही, जो छात्राओं की सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़ सकें। छात्राओं ने कहा कि इस चुनाव में मुख्य छात्र संगठन एबीवीपी और एनएसयूआई ही हैं। इन्होंने महिलाओं के लिए अलग से घोषणा पत्र जारी किए हैं। लेकिन, यह सिर्फ बाते ही हैं। धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आता। 

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के चुनाव के लिए शुक्रवार को मतदान हुई। डूसू के चार पदों (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव) के लिए हो रहे चुनाव में दो पालियों में मतदान संपन्न होगा। वोटिंग वाले दिन भी छात्राओं की सुरक्षा का मुद्दा और स्टूडेंट को अच्छी सुविधाएं देने जैसे मुद्दे हावी रहे। अमर उजाला से चर्चा में अधिकतर छात्रों ने सुरक्षा बढ़ाने के लिए मतदान करने की बात कही। पिछले दिनों हुए फेस्टिवल के दौरान कॉलेज परिसर में बाहरी युवाओं के प्रवेश के बाद लगातार छात्राओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

डूसू चुनाव में इसका असर देखने को मिला। छात्राओं ने सुरक्षा पर चिंता जताई और ऐसे प्रतिनिधियों के लिए वोट करने की बात कही, जो छात्राओं की सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़ सकें। छात्राओं ने कहा कि इस चुनाव में मुख्य छात्र संगठन एबीवीपी और एनएसयूआई ही हैं। इन्होंने महिलाओं के लिए अलग से घोषणा पत्र जारी किए हैं। लेकिन, यह सिर्फ बाते ही हैं। धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आता। 

हाल ही में जब फेस्टिवल के दौरान जब मिरांडा हाउस में बाहरी युवकों ने प्रवेश किया, तो इस पर छात्र संगठनों ने कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं किया। दोनों ही संगठनों में सचिव पद पर ही महिला प्रत्याशी को उतारा है। शेष तीनों पदों पर पुरुष चुनाव लड़ रहे हैं। उनसे जाकर अपनी बात रखना छात्राओं के लिए मुश्किल भरा रहता है। आखिरी बार 2008-09 में नूपुर शर्मा डूसू की अध्यक्ष रही थीं। इतने सालों में एक भी महिला अध्यक्ष को मैदान में नहीं उतारा गया है। अगर उन्हें चुनाव लड़ाया जाएगा तभी महिलाएं जीतकर डूसू में आएंगी। जब 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है तो चुनावों में भी दिखना चाहिए।

चुनाव में इन मुद्दों पर रहा है फोकस
इस बार के चुनाव में हॉस्टल, फ्री वाई फाई, फीस बढ़ोतरी, कैंटीन, लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड समेत कई मुद्दों को चुनावों में मजबूती से उठाया गया। फीस बढ़ोतरी का मुद्दा इतना बड़ा है कि सभी पार्टियों ने अपने चुनावी कैंपेन में इसे तरजीह दी। विश्वविद्यालय की लगातार फीस बढ़ रही है, जो सभी स्टूडेंट्स चुका पाने में सक्षम नहीं है। एबीवीपी के लिए मुख्य चुनावी मुद्दों में सभी पीजी कोर्सेज के लिए ‘वन कोर्स, वन फी स्ट्रक्चर’, विश्वविद्यालय छात्रावास का केंद्रीय आवंटन और एससी/एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिए स्कॉलरशिप की मांग शामिल थीं जबकि एनएसयूआई के कैंपन में कैंपस के बुनियादी ढांचे, एडमिशन में ट्रांसपेरेंसी और कॉलेज से जुड़े फैसलों में छात्रों की भागीदारी बढ़ाने जैसे मुद्दे हावी रहे।

इस बीच, वामपंथी छात्र संगठन एआईएसए और एसएफआई ने निजीकरण, फी हाइक, अटेंडेंस पॉलिसी में बदलाव, महिला सुरक्षा और चार साल के अंडर ग्रैजुएट प्रोग्राम को मुद्दा बनाया। डीआईएसएचए ने भी फी हाइक ,अभिव्यक्ति की आजादी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके अलावा फ्रेटरनिटी मूवमेंट जैसे समूह जो केवल राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने प्रशासनिक सुधारों, बुनियादी ढांचे में सुधार और छात्रवृत्ति प्रक्रियाओं में पारदर्शिता वगैरह पर खूब जोर दिया।

ये लोग हैं चुनावी मैदान में
2024 डूसू चुनाव में कुल 21 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, इनमें से आठ उम्मीदवार अध्यक्ष पद के लिए, पांच उपाध्यक्ष पद के लिए और चार-चार उम्मीदवार संयुक्त सचिव और सचिव पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। एबीवीपी से अध्यक्ष पद के लिए ऋषभ चौधरी, उपाध्यक्ष पद के लिए भानु प्रताप सिंह, सचिव पद के लिए मित्रविंदा कर्णवाल और संयुक्त सचिव पद के लिए अमन कपासिया चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि एनएसयूआई से रौनक खत्री अध्यक्ष पद के लिए, यश नांदल उपाध्यक्ष पद के लिए, नम्रता जेफ मीना सचिव पद के लिए और लोकेश चौधरी संयुक्त सचिव पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। 

वामपंथी गठबंधन की ओर से आइसा के सावी गुप्ता अध्यक्ष पद के लिए, आइसा के आयुष मंडल उपाध्यक्ष पद के लिए, एसएफआई की स्नेहा अग्रवाल सचिव पद के लिए और अनामिका के संयुक्त पद के लिए डुसू चुनाव लड़ रहे हैं। साल 2023 के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अध्यक्ष पद सहित चार केंद्रीय पैनल सीटों में से तीन पर जीत हासिल की. एबीवीपी के तुषार डेढ़ा अध्यक्ष चुने गए, जबकि एनएसयूआई के एकमात्र विजेता अभि दहिया छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए थे।

डूसू चुनाव में इसका असर देखने को मिला। छात्राओं ने सुरक्षा पर चिंता जताई और ऐसे प्रतिनिधियों के लिए वोट करने की बात कही, जो छात्राओं की सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़ सकें। छात्राओं ने कहा कि इस चुनाव में मुख्य छात्र संगठन एबीवीपी और एनएसयूआई ही हैं। इन्होंने महिलाओं के लिए अलग से घोषणा पत्र जारी किए हैं। लेकिन, यह सिर्फ बाते ही हैं। धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आता। 

हाल ही में जब फेस्टिवल के दौरान जब मिरांडा हाउस में बाहरी युवकों ने प्रवेश किया, तो इस पर छात्र संगठनों ने कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं किया। दोनों ही संगठनों में सचिव पद पर ही महिला प्रत्याशी को उतारा है। शेष तीनों पदों पर पुरुष चुनाव लड़ रहे हैं। उनसे जाकर अपनी बात रखना छात्राओं के लिए मुश्किल भरा रहता है। आखिरी बार 2008-09 में नूपुर शर्मा डूसू की अध्यक्ष रही थीं। इतने सालों में एक भी महिला अध्यक्ष को मैदान में नहीं उतारा गया है। अगर उन्हें चुनाव लड़ाया जाएगा तभी महिलाएं जीतकर डूसू में आएंगी। जब 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है तो चुनावों में भी दिखना चाहिए।

चुनाव में इन मुद्दों पर रहा है फोकस
इस बार के चुनाव में हॉस्टल, फ्री वाई फाई, फीस बढ़ोतरी, कैंटीन, लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड समेत कई मुद्दों को चुनावों में मजबूती से उठाया गया। फीस बढ़ोतरी का मुद्दा इतना बड़ा है कि सभी पार्टियों ने अपने चुनावी कैंपेन में इसे तरजीह दी। विश्वविद्यालय की लगातार फीस बढ़ रही है, जो सभी स्टूडेंट्स चुका पाने में सक्षम नहीं है। एबीवीपी के लिए मुख्य चुनावी मुद्दों में सभी पीजी कोर्सेज के लिए ‘वन कोर्स, वन फी स्ट्रक्चर’, विश्वविद्यालय छात्रावास का केंद्रीय आवंटन और एससी/एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिए स्कॉलरशिप की मांग शामिल थीं जबकि एनएसयूआई के कैंपन में कैंपस के बुनियादी ढांचे, एडमिशन में ट्रांसपेरेंसी और कॉलेज से जुड़े फैसलों में छात्रों की भागीदारी बढ़ाने जैसे मुद्दे हावी रहे।

इस बीच, वामपंथी छात्र संगठन एआईएसए और एसएफआई ने निजीकरण, फी हाइक, अटेंडेंस पॉलिसी में बदलाव, महिला सुरक्षा और चार साल के अंडर ग्रैजुएट प्रोग्राम को मुद्दा बनाया। डीआईएसएचए ने भी फी हाइक ,अभिव्यक्ति की आजादी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके अलावा फ्रेटरनिटी मूवमेंट जैसे समूह जो केवल राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने प्रशासनिक सुधारों, बुनियादी ढांचे में सुधार और छात्रवृत्ति प्रक्रियाओं में पारदर्शिता वगैरह पर खूब जोर दिया।

ये लोग हैं चुनावी मैदान में
2024 डूसू चुनाव में कुल 21 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, इनमें से आठ उम्मीदवार अध्यक्ष पद के लिए, पांच उपाध्यक्ष पद के लिए और चार-चार उम्मीदवार संयुक्त सचिव और सचिव पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। एबीवीपी से अध्यक्ष पद के लिए ऋषभ चौधरी, उपाध्यक्ष पद के लिए भानु प्रताप सिंह, सचिव पद के लिए मित्रविंदा कर्णवाल और संयुक्त सचिव पद के लिए अमन कपासिया चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि एनएसयूआई से रौनक खत्री अध्यक्ष पद के लिए, यश नांदल उपाध्यक्ष पद के लिए, नम्रता जेफ मीना सचिव पद के लिए और लोकेश चौधरी संयुक्त सचिव पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। 

वामपंथी गठबंधन की ओर से आइसा के सावी गुप्ता अध्यक्ष पद के लिए, आइसा के आयुष मंडल उपाध्यक्ष पद के लिए, एसएफआई की स्नेहा अग्रवाल सचिव पद के लिए और अनामिका के संयुक्त पद के लिए डुसू चुनाव लड़ रहे हैं। साल 2023 के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अध्यक्ष पद सहित चार केंद्रीय पैनल सीटों में से तीन पर जीत हासिल की. एबीवीपी के तुषार डेढ़ा अध्यक्ष चुने गए, जबकि एनएसयूआई के एकमात्र विजेता अभि दहिया छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए थे।

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