देश की राजनीति में क्या कुछ बदलेगा?

 जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने से चूकी बीजेपी, देश की राजनीति में क्या कुछ बदलेगा?
नेशनल कांफ्रेंस के चीफ फारूक अब्दुल्ला ने ऐलान कर दिया है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री होंगे.

हरियाणा में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार बाजी मार ली है, लेकिन जम्मू कश्मीर में भाजपा इस बार भी अपने दम पर सरकार बनाने से चूक गई. नेशनल कांफ्रेंस (NC) और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. कांग्रेस गठबंधन को कुल 48 सीटें मिली, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 और कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं. वहीं बीजेपी 29 सीटों पर चुनाव जीती है. पीडीपी को 3 सीट मिली. एक-एक सीट आम आदमी पार्टी और जेपीसी के खाते में गई. 7 निर्दलीय भी चुनाव जीते.

जम्मू कश्मीर का मसला हमेशा से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी दोनों के साथ बीजेपी गंठबंधन सरकार बना चुकी है. हालांकि अपने दम पर अकेले बीजेपी की सरकार अबतक नहीं बनी.

नेशनल कांफ्रेंस के चीफ फारूक अब्दुल्ला ने ऐलान कर दिया है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री होंगे. उमर अब्दुल्ला ने दो सीटों बडगाम और गांदरबल पर जीत हासिल की है. एनसी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कुछ बड़े ऐलान किए थे. जैसे- आर्टिकल 370-35ए को बहाल करने और 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति में राज्य का दर्जा बहाल करने की बात कही. घाटी की जेलों में बंद कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करने का भी वादा किया था.

सरकार बनाने के लिए चाहिए 48 सीटें
जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने के लिए पांच सदस्यों को मनोनीत किए जाने के बाद विधानसभा में संख्या बल 95 हो जाएगा. किसी भी पार्टी को यहां सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 48 सीटों का चाहिए. जम्मू-कश्मीर विधानसभा पुद्दुचेरी विधानसभा की तर्ज पर बनाई गई है, जहां तीन मनोनीत सदस्य निर्वाचित विधायकों की तरह काम करते हैं और उन्हें सदन में वोटिंग का अधिकार होता है.

जम्मू कश्मीर में कांग्रेस गठबंधन के जीत की वजह क्या है?
एबीपी न्यूज से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद शोएब ने कांग्रेस गठबंधन के जीत की वजह बताई. उन्होंने कहा, कश्मीर के लोग सबसे पहले खुद को कश्मीरी मानते हैं. अगर कश्मीर के लोग बीजेपी की योजनाओं के पक्ष में होते, तो चुनाव में लोग उन्हें सपोर्ट करते. अगर बीजेपी को सपोर्ट नहीं किया है तो इसका मतलब है कश्मीरी बीजेपी की योजनाओं से खुश नहीं हैं. 

हालांकि, एनसी के घोषणापत्र पर मोहम्मद शोएब ने कहा कि बीजेपी ने आर्टिकल-370 हटाने, नोटबंदी, जीएसटी लागू करने जैसे इतने बड़े फैसले लिए हैं, ये किसी भी दूसरी राजनीतिक पार्टी के लिए संभव नहीं था. न ही किसी दूसरी पार्टी की सरकार बनने पर इन फैसलों में फिर बदलाव करना संभव है. अगर किसी सरकार में गैस सिलेंडर की कीमत 400 से बढ़कर 1100 हो गई, तो ये बिल्कुल भी संभव नहीं है कि दूसरी पार्टी की सरकार बनने पर गैस सिलेंडर फिर 400 रुपये का हो जाएगा.

जम्मू कश्मीर में क्यों अब तक नहीं जीतीं बीजेपी?
इस मुद्दे पर एबीपी न्यूज ने राजनीतिक विश्लेषक विष्णु शर्मा से बातचीत की. उनका कहना है कि जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल केंद्र शासित प्रदेश है केंद्र की बीजेपी सरकार जम्मू कश्मीर के विकास के लिए कितना भी काम करवा लें, लेकिन फिर भी घाटी में भाजपा का अपने दम पर सरकार बनाना आसान नहीं है. ये असंभव जैसा है. इसके लिए बीजेपी को कश्मीरी पंडित और दलितों को एकजुट करना होगा. मुस्लिम समदाय एकजुट होकर वोट देते हैं. उन्हें विकास से मतलब नहीं है. कांग्रेस इसी बात का राजनीतिक फायदा उठाती है. 

आर्टिकल 370 निरस्त किए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. घाटी में लंबे समय तक पाबंदियां रहीं. आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ केंद्र सरकार की सख्ती का लोगों ने समर्थन तो किया, लेकिन ज्यादातर लोगों को ये भी लगा कि डर दिखाकर विरोध को दबाया जा रहा है. घाटी में बीजेपी को वोट न मिलने का ये भी एक बड़ा कारण रहा.

अब दूसरा दिल्ली बन जाएगा कश्मीर!
विष्णु शर्मा का कहना है कि ऐसा कोई बड़ा बदलाव तो नहीं आएगा. लेकिन अब दूसरा दिल्ली बन जाएगा जम्मू कश्मीर. क्योंकि यहां मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दे ज्यादा हैं, इसलिए ऐसे कुछ तो मुद्दे उठाए जाएंगे, जिससे केंद्र से टकराव हो. दिल्ली जैसा ही यहां भी टकराव देखने को मिल सकता है. आरोप लगाया जाएगा कि बीजेपी राज्य में काम नहीं करने दे रही है. ये भी कहा जाएगा कि राज्य की चुनी हुई सरकार को परेशान किया जा रहा है. लेकिन देखा जाए तो केंद्र की सरकार भी जनता द्वारा चुनकर आई है. ऐसे ही कई मुद्दों पर राजनीतिक हो सकती है. किसी कारण से संविधान में कुछ राज्यों को पूरे अधिकार नहीं दिए गए हैं. 

“केंद्र शासित प्रदेश का सीधा मतलब होता है यहां का बॉस ‘केंद्र’ होगा. उपराज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है. संविधान में कुछ राज्यों को पूरे अधिकार नहीं दिए गए हैं. दिल्ली के मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी ये बात कह चुका है. ऐसे में आम आदमी पार्टी और केंद्र सरकार जैसा टकराव जम्मू कश्मीर में भी दिखने को मिल सकता है.”

जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पर क्या बोले एक्सपर्ट्स?
केंद्र की बीजेपी सरकार अक्सर दावा करती है घाटी में धारा-370 समाप्त किए जाने के बाद आतंकवाद काफी कम हो गया है, पत्थरबाजी खत्म हो गई है. सरकार आंकड़े भी यही बताते हैं. हालांकि बीते 5 साल से केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू है. इससे पहले बीजेपी की गठबंधन वाली सरकार रही.

जम्मू कश्मीर में नई सरकार को लेकर आतंकवाद पर विष्णु शर्मा ने कहा, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस गठबंधन की सरकार केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवाद को बढ़ावा देगी, लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति जरूर होगी. घाटी में आतंकवाद की घटनाएं पहले से कम हुई हैं, लेकिन अभी भी खत्म नहीं हुई है. जिस तरह से नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपना घोषणापत्र जारी किया था, इससे शक पैदा होता है कि अब इनकी सरकार अलगाववाद को बढ़ावा दे सकती है. अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ऐसा कुछ तो करने की कोशिश कर सकते हैं.

वहीं राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद शोएब ने कहा, पहले ये समझने की जरूरत है कि आतंकवाद क्यों होता है. उदाहरण से समझिए- अगर यूपी-बिहार में बांग्लादेश का कब्जा हो जाता है तो जाहिर सी बात है राज्य के लोग बांग्लादेश की हुकुमत स्वीकार नहीं करेंगे. कश्मीर का मामला भी कुछ ऐसा ही है. ये इंटरनेशनल पॉलिटिक्स का मुद्दा है. कश्मीर में आतंकवाद का किसी पार्टी से लेना-देना नहीं है. ये दशकों से चला आ रहा मुद्दा है.

बता दें कि जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव हुए और इस बार तीन चरणों में विधानसभा चुनाव आयोजित कराए गए. पिछले साल ही दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया था.

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