मूर्ति विसर्जन और बाराबंकी से बहराइच तक तनाव में प्रशासन कहां?

गुलाल, डीजे और झंडा…, मूर्ति विसर्जन और बाराबंकी से बहराइच तक तनाव में प्रशासन कहां?

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी और बहराइच… यहां से लगातार तनाव, हिंसा, हत्या और झड़प की खबरें आ रही हैं. बाराबंकी में भी ऐसी घटना पैदा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन समय रहते प्रशासन की मुश्तैदी से इन प्रयासों को विफल कर दिया गया. दरअसल, मूर्ति विसर्जन बेहद संवेदनशील क्षण होते हैं, वैसे समय में ऐसी आशंका बनी रहती है कि कहीं भी साम्प्रदायिक झगड़े शुरू हो सकते हैं.

इसमें प्रशासन को एहतियात बरतने की ज्यादा जरूरत होती है. बाराबंकी में पुलिस ने मस्जिद तक को ढकवा दिया था. इसके बावजूद जब मस्जिद के सामने गुलाल फेंका गया या डीजे बजा फिर भी प्रशासन ने काफी मुश्तैदी से काम लिया और वहां पर हिंसा की कोई घटना आगे नहीं बढ़ पाई.

लेकिन, बहराइच में ऐसा नहीं हो पाया. वहां पर एक के बाद एक जो घटनाक्रम हुआ, वो लगातार बढ़ता ही चला गया. आज हम जिस स्थिति में है, उसमें तो यही कहा जा सकता है कि घटना के पीछे या फिर घटना को आगे बढ़ाने में कौन-कौन, किस तरह से मददगार रहे हैं. किस तरह के लोगों की भूमिका रही है, ये जांच का विषय बन जाता है और जांच के बाद ही इस पर ठोस तरीसे से आप कोई बात कह सकते हैं.

साम्प्रदायिक तनाव का इतिहास पुराना

लेकिन, यहां पर दो बातें गौर करने की आवश्यकता है. जिस वक्त अंग्रेजों का शासन था, ये बात 1927 की है, जब कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था. उस समय बात होने लगी कि एक नया ट्रेंड देखा जा रहा है और वो ये कि एक समुदाय के जो धर्मस्थल या धर्म के प्रतीक स्थल माने जाते हैं, उन स्थलों पर एक दूसरे समुदाय के समूह किसी खास मौके पर जाने की कोशिश करता है.

वहां पर जाकर नारे लगाने की कोशिश करता है. वहां पर उकसावेबाजी की कोशिश करता है. उसके बाद वहां पर एक तनावपूर्ण वातावरण बन जाता है और झड़पें भी होने लगती है. ये उस समय की बात है. यानी, आज से करीब 100 साल पूरे हो जाएंगे, उस वाकये के. जैसे आरएसएस का 1925 में गठन हुआ और अब उसके भी सौ साल पूरे हो जाएंगे.

कहने का अभिप्राय ये है कि ये सारी घटनाएं उस समय से चली आ रही है. आज भी हम इस तरह का कोई ठोस नियम का कानून नहीं बना सके हैं कि किसी भी धर्म के मानने वाले का अगर कोई जुलूस जा रहा है, कोई कार्यक्रम हो रहा है तो जब दूसरे समुदाय के धार्मिक स्थल से जब गुजरे तो उसको क्या-क्या एहतियात बरतना पड़ेगा.

नहीं है कोई ठोस नियम-कानून

एक वाकये का यहां पर जिक्र करना जरूर है. जब धनबाद में डिस्ट्रक्ट कलेक्टर हुआ करते थे, वो आईएएस अधिकारी थे, जो अब रिटायर हो गए हैं, जिस वक्त राम मंदिर को लेकर पूरे देश में तनाव का वातावरण बना हुआ था, उस समय धनबाद में उन्होंने तय किया था कि वहां पर दंगे नहीं होंगे.

हालांकि, ये ऑनरिकॉर्ड है या फिर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक ने ये कहा है कि अगर राज्य प्रशासन चाहे तो फिर किसी भी सूरत में दंगा नहीं होगा. अगर दंगा हो भी गया तो उसे आधा से एक घंटे के अंदर रोका जा सकता है. ये सरकार चलाने वाले लोगों की तरफ से दिया गया बयान है.

धनबाद जब ये बात हुई थी, उस वक्त जुलूस के लिए एक पैमाना तय किया गया कि आपको क्या-क्या करना है. यहां तक कि कैसे एक समुदाय की तरफ से दूसरे समुदाय का स्वागत करना है, ये भी उसमें तय था. यानी, एक लंबी चौड़ी फेहरिस्त तैयार की गई थी और उसको फॉलो किया गया. वहां पर शांतिपूर्वक ये सारा कुछ हो गया.

100 साल से क्यों ऐसी घटना?

दरअसल, बहराइच के बहाने यहां पर ये सबकुछ रेखांकित किया गया, क्योंकि जो 100 साल से लगातार हमारे समाज में एक तकलीफ पैदा करने का कारण बन रहा है. वो इसलिए बन रहा है क्योंकि इसके लिए कोई नियम कानून नहीं बना है. उकसावेबाजी को रोकने को जो कानूनी आधार होता है, वो नहीं तैयार किया है.

यानी, जब हम अंग्रेजों के शासन में थे, तब भी वैसा होता था. आज तक वो चला आ रहा है. ये बात परेशान करती है. खासकर इस बात को ध्यान में रखकर कि इससे समाज में विभाजन की रेखा खिंचती है. विभाजन की स्थिति तैयार होती है, तनाव और हिंसा होती है. उसका जो खामियाजा लंबे समय तक समाज को जिस तरह से भुगतना पड़ता है, इसे ध्यान में नहीं रखा जाता है, या फिर नहीं रखा गया है अभी तक. धार्मिक जुलूस में जरूर एक आचार संहिता होनी चाहिए.   

ताकि समाज के अंदर भाईचारे की स्थिति मजबूत हो और उस पर को खरोंच न आए. ये बात साफ है कि सबको साथ ही रहना है. भारतीय संस्कृति में जो मिक्सिंग की यानी एक दूसरे के साथ मिलकर रहने की संस्कृति काफी गहरी है और जब बहुत ज्यादा चोट पहुंचाने की कोशिश की जाती है, तब टूटने वाली तो नहीं है लेकिन हां जरूर थोड़ी दिक्कत हो जाती है. समाज में थोड़ी परेशानी पैदा हो जाती है. 

बहराइच के लोगों का इस पर ये कहना है कि जो प्रशासन की तरफ से अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है, वो सावधानी बहराइच में नहीं बरती गई. जिस तरह की गंभीरता से उसे लेना चाहिए था, वैसा नहीं हो पाया. अभी भी वक्त है और लोग लगे हुए हैं कि वहां पर शांति की स्थिति बन पाए. दंगे की अगर थोड़ी बहुत भी जमीन तैयार हो रही है, तो उसे भाईचारे की स्थिति बना दें.

यूपी में हर कोई जानता है कि चुनाव आने वाला है. ऐसा देखा गया है कि राजनीतिक दलों के लिए चुनाव के वक्त ऐसी स्थिति उनके लिए मुफीद होती है. ऐसे में खासकर उत्तर प्रदेश में और ज्यादा सावधानी सरकार और प्रशासन को बरतनी चाहिए. प्रशासन के साथ ही समाज के लोगों को भी आगे बढ़कर कोशिश करनी चाहिए कि तनावपूर्ण स्थिति को दूर किया जा सके.          

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि  ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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