NGO कैसे शुरू करें: रजिस्ट्रेशन से लेकर फंडिंग तक !
NGO कैसे शुरू करें: रजिस्ट्रेशन से लेकर फंडिंग तक, पूरी जानकारी
NGO बिना अपने फायदे के काम करते हैं लेकिन पैसे के बिना तो किसी तरह की मदद नहीं हो सकती है. इसलिए उन्हें भी फंड की जरूरत होती है.
कुछ एनजीओ मानवाधिकारों के लिए काम करते हैं, तो कुछ पर्यावरण बचाने के लिए. कुछ लोगों को सेहत से जुड़ी सुविधाएं देते हैं, तो कुछ गरीबों की मदद करते हैं. कुछ एनजीओ सिर्फ अपने गांव या शहर में काम करते हैं, तो कुछ पूरे देश में. कुछ तो पूरी दुनिया में काम करते हैं.
कुछ NGOs मुनाफा कमाने वाली कंपनियां भी हो सकती हैं, लेकिन ज्यादातर NGO बिना मुनाफा कमाने वाले संगठन होते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि राजनीतिक पार्टियां या अपराधी संगठनों को NGO नहीं माना जाता है.
किन मुद्दों पर काम करते हैं NGO
NGO कई तरह के मुद्दों पर काम करते हैं, जैसे कि सबको बराबरी का हक मिले, इसके लिए आवाज उठाना. पेड़ लगाना, पानी बचाना, प्रदूषण कम करना. बाढ़, भूकंप जैसी मुसीबतों में लोगों की मदद करना. गरीबों को खाना, पैसा और दूसरी चीजें देना ताकि वो भी तरक्की कर सकें. ये स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर सकते हैं. कई बार कुछ NGO उन जातीय समूहों के लिए भी काम करते हैं जिनका अपना कोई देश नहीं होता और वे सरकारी जैसी भूमिकाएं निभाते हैं.
NGO को फंडिंग अलग-अलग स्रोतों से मिल सकती है. कुछ लोग अपनी मर्जी एनजीओ को दान करते हैं, कुछ बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन पैसा देते हैं और कभी-कभी सरकार भी पैसा देती है. NGO का उद्देश्य हमेशा समाज के हित में होता है और ये संगठन उन क्षेत्रों में काम करते हैं जहां आमतौर पर सरकारी सेवाएं नहीं पहुंच पातीं.
ज्यादातर NGO अच्छे काम करते हैं लेकिन कुछ NGO ऐसे भी होते हैं जो सरकार के कंट्रोल में होते हैं या फिर गलत काम करते हैं. लेकिन याद रखना राजनीतिक पार्टियां और हिंसक संगठन NGO नहीं होते.
NGO: यूएन ने दिया था इन्हें ये नाम
एनजीओ कोई नई चीज नहीं है. 1910 में तो करीब 130 अंतरराष्ट्रीय ग्रुप ने मिलकर यूनियन ऑफ इंटरनेशनल एसोसिएशन्स नाम का एक संगठन भी बना लिया था. NGO शब्द तो 1945 में यूनाइटेड नेशन्स (UN) के बनने के समय ही आया. इससे पहले तो सभी को बस संगठन ही कहा जाता था. लेकिन यूएन के आने के बाद सरकारी संगठनों (IGOs) और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) में फर्क करने के लिए यह नाम दिया गया.
कुछ NGO तो इतने बड़े हैं कि उनके मेंबर्स पूरी दुनिया में फैले हैं. जैसे कि एमनेस्टी इंटरनेशनल, रेड क्रॉस, ऑक्सफैम, केयर, सेव द चिल्ड्रन और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड. ये सभी अलग-अलग देशों के ग्रुप से मिलकर बने हैं. कुछ NGOs के तो लाखों मेंबर्स हैं, जैसे कि ग्रीनपीस और सिएरा क्लब.
लेकिन ज्यादातर NGO तो छोटे होते हैं जो किसी इंटरनेशनल ग्रुप से जुड़े नहीं होते. ये अपने इलाके में ही काम करते हैं, हालांकि कभी-कभी इन्हें इंटरनेशनल फंडिंग भी मिल जाती है.
कौन-कौन से होते हैं NGO?
- रजिस्टर्ड सोसाइटी: ये कुछ खास काम करने के लिए बनाई जाती हैं, जैसे गरीबों की मदद करना या पर्यावरण बचाना. ये ‘सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट’ के तहत रजिस्टर्ड होती हैं.
- चैरिटेबल ऑर्गनाइजेशन और ट्रस्ट: ये दान के पैसे से चलते हैं और लोगों की भलाई के लिए काम करते हैं, जैसे अस्पताल चलाना या बच्चों को पढ़ाना.
- लोकल ग्रुप, सेल्फ हेल्प ग्रुप: ये छोटे-छोटे ग्रुप होते हैं जो अपने इलाके में लोगों की मदद करते हैं, जैसे महिलाओं को रोजगार दिलाना या किसानों की मदद करना.
- प्रोफेशनल बॉडी: ये डॉक्टर, इंजीनियर या वकील जैसे प्रोफेशनल्स के ग्रुप होते हैं जो अपने फील्ड में नियम बनाते हैं और उनका पालन करते हैं.
- कोऑपरेटिव: ये लोगों का ऐसा ग्रुप होता है जो मिलकर कोई काम करते हैं, जैसे दूध उत्पादक सहकारी समिति या बैंक.
- बिना किसी औपचारिक संगठनात्मक ढांचे वाले ग्रुप: ये ऐसे ग्रुप होते हैं जिनका कोई पक्का रजिस्ट्रेशन नहीं होता, लेकिन फिर भी ये समाज के लिए काम करते हैं.
- गवर्मेंट प्रमोटेड थर्ड सेक्टर ऑर्गेनाजेशन: ये ऐसे संगठन होते हैं जिन्हें सरकार बढ़ावा देती है ताकि वो समाज के लिए काम कर सकें.
NGO को पैसा कहां से मिलता है?
एनजीओ बिना अपने फायदे के काम करते हैं लेकिन पैसे के बिना तो किसी तरह की मदद नहीं हो सकती है. इसलिए उन्हें भी फंड की जरूरत होती है. अगर कोई एनजीओ विदेश से पैसा लेना चाहता है, तो उसे ‘FCRA कानून’ का पालन करना होता है. यह कानून मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स देखती है. इस कानून के मुताबिक, NGO को यह बताना होता है कि वो विदेशी पैसा किस काम के लिए ले रहे हैं और उस पैसे का इस्तेमाल सही से हो रहा है या नहीं.
FCRA कानून के तहत NGO को हर 5 साल में अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यू कराना होता है. इससे यह भी होता है कि सरकार यह निगरानी रख सके कि एनजीओ किस तरह काम कर रहे हैं और उनका उद्देश्य क्या है. इसके अलावा एक और कानून भी है जो NGO के विदेशी पैसे पर नजर रखता है. यह है FEMA कानून. फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA) 1999 में बना था. यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि भारत में विदेशी मुद्रा का लेन-देन सही तरीके से हो और कोई गड़बड़ न हो.
दोनों ही कानून विदेशी पैसे से जुड़े हैं, लेकिन इनमें थोड़ा फर्क है. FEMA के तहत मिलने वाले पैसे को फीस या सैलरी कहा जाता है, जबकि FCRA के तहत मिलने वाले पैसे को ग्रांट या कंट्रीब्यूशन कहा जाता है. 2016 में एक बड़ा बदलाव हुआ था. पहले एनजीओ के विदेशी पैसे पर नजर रखने का काम मिनिस्ट्री ऑफ फाइनेंस करती थी, लेकिन अब यह काम भी FEMA के तहत आ गया. इससे सभी NGO जो विदेश से पैसा लेते हैं एक ही कानून के अंदर आ गए और उन पर नजर रखना आसान हो गया.
किसे NGO बनाने का अधिकार?
आर्टिकल 19(1)(c) कहता है कि हर किसी को अपना ग्रुप या संगठन बनाने का अधिकार है. आर्टिकल 43 कहता है कि सरकार को गांव में कोऑपरेटिव को बढ़ावा देना चाहिए. कोऑपरेटिव भी एक तरह का NGO ही होता है जहां लोग मिलकर काम करते हैं और फायदा कमाते हैं. कंकरेंट लिस्ट में एंट्री 28 में चैरिटी और धार्मिक संस्थाओं का जिक्र है. मतलब कि सरकार इन संस्थाओं के लिए भी कानून बना सकती है.
भारत में एनजीओ का रजिस्ट्रेशन तीन तरीके से हो सकता है-
- ट्रस्ट: अगर आप अपना एनजीएओ ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर कराना चाहते हो, तो इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882 के नियमों का पालन करना होगा.
- सोसायटी: अगर सोसायटी के रूप में रजिस्टर कराना चाहते हो तो सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के नियमों का पालन करना होगा.
- सेक्शन 8 कंपनी: अगर सेक्शन 8 कंपनी के रूप में एनजीओ रजिस्टर कराना चाहते हैं तो कंपनीज एक्ट 2013 के नियमों का पालन करना होगा.
NGO के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे करें?
ट्रस्ट बनाने के लिए एक व्यक्ति अपनी कुछ संपत्ति किसी दूसरे व्यक्ति को दे देता है ताकि वो उस संपत्ति का इस्तेमाल किसी तीसरे व्यक्ति या समाज की भलाई के लिए कर सके. जैसे कोई अपनी जमीन या पैसा किसी ट्रस्ट को दे देता है ताकि वो उससे स्कूल या अस्पताल चला सके. ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन करने के लिए CBDT की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा. इसके लिए फॉर्म 10A भरना होगा और उसके साथ कुछ जरूरी दस्तावेज भी लगाने होंगे. अगर सब कुछ ठीक रहा, तो NGO रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट मिल जाएगा.
सोसायटी का रजिस्ट्रेशन करना बहुत आसान है. सोसायटी में कई मेंबर्स होते हैं. सबसे पहले सभी मेंबर्स मिलकर सोसायटी का नाम चुनना होगा. इसके बाद कुछ नियम बनाने होंगे कि आपकी सोसायटी कैसे काम करेगी. इन नियमों को मेमोरेंडम ऑफ सोसायटी में लिखा जाता है. सभी मेंबर्स इस पर साइन करेंगे और एक ‘ओथ कमिश्नर’ इस पर गवाह बनेगा. अब इस ‘मेमोरेंडम’ और कुछ जरूरी दस्तावेजों के साथ अपने राज्य के ‘रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज’ के पास जाकर आवेदन करना होगा. कुछ फीस भी देनी होगी.
सेक्शन 8 कंपनी भी ट्रस्ट और सोसायटी की तरह ही होती है. इसका मकसद भी समाज सेवा ही होता है. MCA की वेबसाइट पर जाकर कुछ स्टेप्स फॉलो करने होते हैं. सबसे पहले अपनी कंपनी के लिए एक अनोखा नाम चुनना होगा. इसके लिए ‘RUN’ फॉर्म ऑनलाइन भरना होगा और 1000 रुपये की फीस देनी होगी. अब ‘SPICe’ फॉर्म भरना होगा और उसके साथ कुछ जरूरी दस्तावेज भी अटैच करने होंगे. आपके आवेदन को ‘ROC’ चेक करेंगे. अगर सब कुछ ठीक रहा तो ‘सर्टिफिकेट ऑफ इनकॉरपोरेशन’ मिल जाएगा.
NGO क्या-क्या काम करते हैं?
अगर आप सोचते हैं कि NGO सिर्फ गरीबों को खाना बांटते हैं या बच्चों की पढ़ाई का खर्चा करते हैं, तो आप गलत हैं. एनजीओ बहुत तरह के काम करते हैं. एनजीओ उन लोगों की आवाज बनते हैं जिनकी कोई नहीं सुनता. ये सरकार और समाज को उनकी समस्याओं के बारे में बताते हैं और उनके हक के लिए लड़ते हैं. ये मीडिया में कैंपेन चलाते हैं, प्रदर्शन करते हैं और नेताओं से भी मिलते हैं.
कई बार NGO अलग-अलग ग्रुप के बीच में बिचौलिए का काम भी करते हैं. जैसे, सरकार और लोगों के बीच या फिर दो झगड़ने वाले ग्रुप के बीच. एनजीओ लोगों के बीच के झगड़े सुलझाने में भी मदद करते हैं. ये लोगों को बातचीत के जरिए समस्या का हल निकालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. कई एनजीओ लोगों को पढ़ाई, ट्रेनिंग और जानकारी देकर उन्हें आगे बढ़ने में मदद करते हैं. एनजीओ गरीबों को खाना, कपड़ा, दवाई जैसी जरूरी चीजें भी देते हैं. इसके अलावा, एनजीओ सरकार और कंपनियों पर भी नजर रखते हैं कि वो सही से काम कर रहे हैं या नहीं. अगर कोई गलत काम करता है, तो NGO उसके खिलाफ आवाज उठाते हैं.
हालांकि कई बार यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि कोई NGO सचमुच में समाज सेवा करना चाहता है या फिर सिर्फ़ सरकार से पैसा लेने के लिए बना है. इससे अच्छे एनजीओ को भी शक की नजर से देखा जाने लगता है. कई एनजीओ सरकार से पैसा लेते हैं. इससे कभी-कभी वो सरकार के खिलाफ बोलने से डरते हैं, चाहे सरकार गलत ही क्यों न हो.
कुछ NGO ने हमेशा से दुनिया में शांति और मानवता के लिए बेहतरीन काम किया है. इस योगदान के लिए कई बार उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया है. इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रॉस को तीन बार साल 1917, 1944 और 1963 में नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा एमनेस्टी इंटरनेशनल को 1977 में, इंटरनेशनल फिजीशियन्स फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर को 1985 में, इंटरनेशनल कैंपेन टू बैन लैंडमाइन्स को 1997 में और इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज को 2007 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था.