बिहार को जहरीली शराब या बाढ़ से भी नहीं, तो फर्क किस बात से पड़ता है?
बिहार को जहरीली शराब या बाढ़ से भी नहीं, तो फर्क किस बात से पड़ता है?
शराबबंदी और तेजस्वी के 12 सवाल
इस क्रम में तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार के सामने 12 सवाल भी रखे थे. तेजस्वी यादव का दावा था कि राजनीतिज्ञों, पुलिस और शराब माफिया ने राज्य में अवैध शराब का एक ऐसा फलता-फूलता तंत्र बना दिया है जिसकी वजह से राज्य को प्रति वर्ष 30,000 करोड़ रुपये के राजस्व की हानि हो रही है. राजद ने ये भी दावा किया कि 2016 से अब तक की शराब-बंदी में राज्य में जहरीली शराब से 300 से अधिक मौतें हो चुकी हैं. पुलिस के आंकड़ों की मानें तो 2023 में राज्य में देसी और विदेशी (आईएमएफएल) मिलाकर प्रतिदिन 10,000 लीटर शराब जब्त की गयी. पुलिस ने 72,062 प्राथमिकियां दर्ज की और 1.43 लाख लोगों को शराब सम्बन्धी मामलों में गिरफ्तार किया. इसके साथ ही 17,183 वाहन भी जब्त किये गए. इतने मामलों का मतलब वकीलों और न्यायिक व्यवस्था से जुड़े लोगों को होने वाली “आय” भी है. क्योंकि इतने जमानत के मुकदमे भी आये होंगे.
सरकारी तंत्रों पर इससे कितना बोझ बढ़ा होगा, पहले से ही धीमी चलने वाली और कर्मचारियों की कमी से जूझती न्यायिक व्यवस्था पर क्या असर हुआ होगा, उसका अनुमान लगाया जा सकता है. इन आंकड़ों को जनवरी में जारी करते समय उस समय एडीजी (पुलिस) रहे जितेन्द्र सिंह गंगवार ने बताया था कि पिछले वर्ष (2022) की तुलना में इस वर्ष प्राथमिकियों की गिनती 25% कम थी और गिरफ्तारियों की गिनती 16% घटी थी. जो शराब जब्त की गयी वो अवश्य 19% अधिक थी. नवम्बर 2016 स लेकर नवम्बर 2023 तक में 1215 शराब से जुड़े मामलों में 1522 लोगों को सजाएं सुनाई गयी हैं. पुलिस ने शराब-बंदी लागू करने के लिए 180 टीमों का गठन किया है और इस काम में 25 खोजी कुत्तों के दल भी लगे हुए हैं. इसके अलावा सीसीटीवी निगरानी, ड्रोन और स्पीडबोट के प्रयोग से लेकर चेक नाकों तक का गठन किया गया है.
बिहार में नहीं है ये मुद्दा, हिंदू जागरण हो रहा
आप अगर ये सोच रहे हैं कि तीस से अधिक लोगों की मौतें और सौ के लगभग गिरफ्तारियां अभी के बिहार में बड़ा मुद्दा होंगी, तो बता दें कि ऐसा कुछ भी नही हो रहा. बिहार में 18 से 22 अक्टूबर के बीच केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ की. ये यात्रा भागलपुर, किशनगंज, कटिहार, पुर्णिया और अररिया जिले से गुजरी. बिहार के इन जिलों को सीमांचल क्षेत्र कहा जाता है और हाल के वर्षों में यहां बदल रही डेमोग्राफी यानी जनसंख्या का गणित, बहसों का मुद्दा रहा है. ऐसा माना जाता है कि बांग्लादेश और रोहिंगिया घुसपैठ के जरिये इन इलाकों की जनसंख्या में जो बदलाव आया है वो देशहित में नहीं है. गिरिराज सिंह ने अपनी यात्रा की शुरुआत ही 19 अक्तूबर को कटिहार में लव, थूक और लैंड जिहाद पर बयानों से की और सीमांचल में रोहिंगिया और बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाया.
इस यात्रा के बारे में तरह-तरह के अनुमान इसलिए लगाये गए क्योंकि एक पार्टी के तौर पर भाजपा ने इस पूरी यात्रा से उचित दूरी बनाई हुई थी. पार्टी के राज्य स्तर पर जो भी नाम हैं, उन्होंने इसपर बयान देने से परहेज रखा. नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) अपने सेक्युलर चेहरे के साथ भाजपा की सहयोगी पार्टी बनी हुई है और उसके नेता भी सीमांचल मुद्दे पर चुप रहे. इससे पहले भी जब बिहार में किशनगंज के स्कूलों में शुक्रवार को छुट्टी शुरू हो जाने का मुद्दा विधानसभा में उछला था, उस समय भी जद(यू) ने इस मुद्दे पर चुप्पी ही साधी थी. दूसरी तरफ यात्रा जैसे जैसे अंतिम चरण की ओर बढ़ने लगी, बिहार में जो विपक्ष है, उसमें इस यात्रा का परिणाम दिखाई देने लगा. तेजस्वी यादव ने बाकायदा वीडियो जारी करके कहा कि वो मुसलमानों के साथ हैं, और जो उनके खिलाफ जाएगा, उसकी ईंट से ईंट बजा देंगे.
यात्राओं का दौर है बिहार में
थोड़े दिन पहले राजद नेता तेजस्वी ने एक यात्रा निकाली थी और प्रशांत किशोर ने यात्राओं के जरिये ही बिहार राजनीति में अपनी जगह बनाई है. इस वक्त भी वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी की निषाद संकल्प यात्रा और भाकपा माले की न्याय यात्रा चल ही रही है. इन यात्राओं की तुलना में गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा और इस दौरान आए बयानों की चर्चा ने बिहार का सीयासी माहौल गर्म रखा. किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 45, अररिया में 43, पूर्णिया में 38 और भागलपुर में 18 प्रतिशत मुसलमान आबादी मानी जाती है. इसके अलावा दशकों से बिहार के किसी राजनेता ने डेमोग्राफी और आबादी में बदलाव जैसे मुद्दे तो छोड़िये, अखंड भारत के पोस्टर वाले मंच और सीधा हिन्दुओं के हितों की बात तक करने की हिम्मत नहीं दिखाई है.
बिहार के लोगों को ये भी याद आ गया होगा कि भागलपुर ही वो इलाका है जहाँ 1989 में दंगा हुआ था और जिसे लालू और राजद ने लम्बे समय तक भुनाया. राजनैतिक रूप से ये यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि सीमांचल के इन चार ज़िलों में 24 विधानसभा क्षेत्र होते हैं. भागलपुर के 7 विधानसभा क्षेत्रों को जोड़कर गिरिराज सिंह ने अपनी यात्रा से स्वयं को 31 विधानसभा क्षेत्रों में प्रभाव वाला नेता तो निश्चित रूप से घोषित कर लिया है. राजद जहाँ जातीयता को साधकर पुनः सत्ता में आना चाहती है और जद(यू) अपने विकास के दावों को आगे कर रही है, वहीं भाजपा के पास अलग से अपना कोई मुद्दा नहीं था. इस यात्रा ने शराब-बंदी की असफलता और तीस से अधिक मौतों को पीछे धकेलकर चर्चाओं में अपनी जगह बना ली.
बिहार का मूल प्रश्न और नदारद जवाब
बिहार में हाल में हुई इन दो घटनाओं का जिक्र हमें फिर से बिहार के मूल प्रश्न पर ले आता है. पलायन बिहार का एक ऐसा सच है, जिससे आम बिहारी हर रोज जूझता है. जर्जर शिक्षा व्यवस्था, चाहे फिर वो स्कूलों की हो या कॉलेजों-विश्वविद्यालयों की हो, उसकी वजह से भी बिहारियों को प्रतिदिन दिक्कत होती है. रोजगार एक बड़ा मुद्दा है. पर्यटन बहुत तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में भी सरकारी मदद पर्यटन क्षेत्र को नहीं मिली है. इन सारे मुद्दों को भूलकर बिहारी फिर से लोक-लुभावन राजनीति, फ्री-सब्सिडी, जाति-धर्म जैसे मुद्दों की चपेट में कैसे आ जाता है, ये सचमुच आश्चर्य का विषय है. बिहार को राजनीति की प्रयोगशाला यूं ही नहीं कहते. गिरिराज सिंह ने अपने प्रयोग के जरिये एक बार फिर से सिद्ध तो कर ही दिया है कि राजनीति में क्या चलेगा और क्या नहीं चलेगा. बाकी जनता वोट कैसे देती है, ये आगे आने वाले विधानसभा चुनावों में देखते हैं.
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