आखिर कैसे काम करता है टाटा समूह? Tata Group, Tata Sons और Tata Trust में क्या है अंतर?
Explainer : कैसे काम करती है टाटा कंपनी, Tata Group, Tata Sons और Tata Trust में क्या है अंतर?
रतन टाटा के निधन के बाद अब उनकी वसीयत से जुड़े कई अपडेट सामने आए हैं. इसमें एक बात ये भी लिखी है कि रतन टाटा की निजी संपत्ति को एक नए ‘रतन टाटा एंडाउमेंट ट्रस्ट’ को दान कर दिया जाएगा. इसी के साथ एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर टाटा फैमिली में इस तरह के ट्रस्ट की रवायत क्या है, क्यों ये इतने जरूरी हैं, टाटा ग्रुप और टाटा ट्रस्ट्स अलग कैसे हैं, और आखिर में टाटा ग्रुप काम कैसे करता है?
टाटा ट्रस्ट्स और उसका काम
आपको ये तो पता ही है कि गुजरात के नवसारी से संबंध रखने वाले जमशेदजी टाटा ने टाटा ग्रुप की शुरुआत की. उनके दो बेटे थे सर रतन टाटा (रतन नवल टाटा के दादाजी) और सर दोराबजी टाटा. इन दोनों की अपनी संपत्ति के लिए एक-एक ट्रस्ट बना दिया गया. इसके चलते 1919 में सर रतन टाटा ट्रस्ट और 1932 में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट सामने आए. आज टाटा ट्रस्ट्स में यही दो सबसे बड़े ट्रस्ट शामिल हैं.
बाद में इनके परिवार के लोगों या इनके द्वारा समाज की भलाई के लिए किए गए कामों के लिए अलग-अलग ट्रस्ट बनाए गए. इसने इन ट्रस्ट के एलाइड ट्रस्ट्स की शुरुआत की जैसे टाटा एजुकेशन ट्रस्ट, टाटा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट, नवाजबाई रतन टाटा ट्रस्ट, सार्वजनिक सेवा ट्रस्ट, जमशेदजी टाटा ट्रस्ट, जेआरडी टाटा ट्रस्ट, लेडी मेहरबाई टाटा ट्रस्ट और लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट इत्यादि इनमें शामिल हैं.
अब हाल में रतन नवल टाटा की मृत्यु के बाद बना ‘रतन टाटा एंडाउमेंट ट्रस्ट’ भी इसी टाटा ट्रस्ट्स का हिस्सा बन जाएगा. इस तरह टाटा परिवार के सदस्यों की संपत्ति संभालने का काम ये अलग-अलग ट्रस्ट्स करते हैं और इन सभी ट्रस्ट्स को संभालने का काम टाटा ट्रस्ट्स करता है. इसे एक बोर्ड चलाता है.
टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा संस की करीब 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है. इस तरह टाटा संस को कंट्रोल करने का काम टाटा ट्रस्ट्स करता है. टाटा ट्रस्ट्स देश और समाज के लिए कई परोपकारी काम करता है. जैसे टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल चलाना, सर रतन टाटा इंस्टीट्यूट के माध्यम से पारसी समाज की महिलाओं को सशक्त बनाना, कई शैक्षिक संस्थाओं को प्रमोट करना इत्यादि. इस तरह टाटा ट्रस्ट्स को दुनिया के सबसे बड़े परोपकारी संगठन में से एक माना जाता है.
टाटा संस की भूमिका
अब जिस टाटा संस में लगभग 66 प्रतिशत हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट्स रखता है, वह क्या काम करती है? आपको बता दें कि टाटा संस असलियत में टाटा ग्रुप की एक होल्डिंग कंपनी है. टाटा ग्रुप की अलग-अलग सेक्टर में 100 से ज्यादा कंपनियां काम करती हैं. इनमें से करीब 30 कंपनियां ऐसी हैं जो शेयर बाजार में लिस्ट हैं. इन सभी कंपनियों को अंतत: मैनेज करने का काम टाटा संस करता है. चलिए इसे आसान भाषा में समझते हैं…
मान लीजिए एक जॉइंट फैमिली है. इसमें दादा जी हेड ऑफ द फैमिली हैं. उनके तीन बेटे हैं जो स्वतंत्र तौर पर अपना कारोबार अलग-अलग करते हैं. लेकिन जब उन्हें कारोबार में नुकसान होता है, या एक्सपेंशन के लिए पैसे की जरूरत होती है या कोई नया कारोबार शुरू करना होता है. तब वह अपने सोर्स से पैसा जुटाने के अलावा परिवार के मुखिया या दादाजी से मदद मांगते हैं. दादाजी मदद करते हैं, लेकिन बदले में अपने बेटों की कंपनी में एक हिस्सेदारी रख लेते हैं, ताकि आगे कोई बड़ा डिसिजन लेने से पहले उनसे एक बार सलाह-मशविरा कर लिया जाए. टाटा ग्रुप में दादाजी की यही भूमिका ‘टाटा संस’ निभाती है.
टाटा संस, असल में टाटा ग्रुप की कंपनियों में प्रमोटर के तौर पर काम करती है. ये टाटा समूह के लिए एक फाइनेंस कंपनी की तरह काम करती है. टाटा ग्रुप के लोगो और नाम की वह मालिक है. टाटा ग्रुप की कंपनियों को उसके नाम का इस्तेमाल करने के लिए टाटा संस को रॉयल्टी मिलती है.वहीं टाटा ग्रुप की कंपनियों में मिलने वाली हिस्सेदारी से भी ये कंपनी कमाई करती है और फिर कंपनी को मिले पैसे का इस्तेमाल कैसे करना है, ये फैसला टाटा ट्रस्ट्स का बोर्ड करता है.
टाटा ग्रुप का आकार
टाटा ग्रुप असल में टाटा से जुड़ी सभी कंपनियों को मिलाकर जो कारोबार बनता है, उसे कहते हैं. फिर वह चाहें टाटा कंसल्टेंसी सर्विस हो या टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा पावर, टाइटन, टाटा प्रोजेक्ट्स, एअर इंडिया, ताज होटल की मालिक इंडियन होटल्स कंपनी, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, टाटा केमिकल्स, टाटा टी, वोल्टास, ट्रेंट और क्रोमा या बिग बास्केट. ये सभी टाटा ग्रुप का ही हिस्सा हैं.