छठ पर्व की आस्था पर भारी पड़ती राजनीतिक दलों की सियासत ?

ठ पर्व की आस्था पर भारी पड़ती राजनीतिक दलों की सियासत

हिन्दुओं और पूर्वांचलियों से सबसे ज्यादा नफ़रत करते हैं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी आम आदमी पार्टी. ये बात इस आधार पर कही जा सकती है, क्योंकि आज तक सिर्फ उन्होंने वोट बैंक की तरह पूर्वांचल के लोगों का इस्तेमाल किया है. आज दिल्ली में लगभग 42 फीसदी जनसंख्या पूर्वांचल यानी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड से आए लोगों की है. अधिकांश लोग राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की कच्ची कॉलोनियों में रहते हैं.

ये मैं नहीं कह रहा, बल्कि आम आदमी पार्टी का आज तक जो कार्य और मंशा रही है, वो इसे दर्शाता है. याद कीजिये कोरोना टाइम किस तरह से पूर्वांचलियों को घरों में घुस-घुसकर निकाला गया, उन्हें जबरन बसों में ठूसा गया और दिल्ली से बाहर कर दिया गया था. उस वक्त किस तरह तत्कालीन दिल्ली के सीएम केजरीवाल का बयान आया था कि 300 का टिकट लेकर बिहार के लोग दिल्ली आते हैं और 7-8 लाख रुपये का मुफ्त इलाज करवा कर वापस अपने राज्य चले जाते हैं. इसके अलावा, जैसे ही हिन्दुओं का पर्व त्योहार दिल्ली में शुरू होता है, आम आदमी पार्टी की सरकार प्रतिबंध और बाधा उत्पन्न करना शुरू कर देती है. 

विशेष कर इन्हें सबसे ज्यादा समस्या दिवाली और पूर्वांचलियों के लोक आस्था के सबसे बड़े पर्व छठ पर अवरोध उत्पन्न जरूर करना होता है. अरविंद केजरीवाल और पूरी आम आदमी पार्टी को पता है कि छठ पर्व नदी, झील, तालाब के किनारे ही मनाया जाता है. लेकिन दिल्ली में चाहे यमुना हों या कोई झील, तालाब उसमें प्रदूषण का लेवल इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि डुबकी लगाना तो दूर, पैर रखना मुश्किल होता है. 

पिछले दस साल में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार की तरफ से 8500 करोड़ रूपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च करने का दावा किया गया, जिससे यमुना या बाकी जल श्रोतों कि सफाई की जा सके. लेकिन ये सारे पैसे केजरीवाल और उनके मंत्री-विधायकों के जेब में चला जाता है. इतना ही नहीं, छठ घाट पर तैयारी के नाम पर करोड़ों का फंड जरूर दिल्ली सरकार जारी करती है, लेकिन वो फंड भी इन्हीं के नेताओं के बंदर बांट का हिस्सा बनकर रह जाता है और कृत्रिम घाटों पर महज खाना पूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता. 

इस बार भी यमुना कि हालत बद से बदतर हो चुकी है. महज कुछ दिनों बाद ही छठ का महापर्व है, लेकिन केजरीवाल की रिमोट से चलने वाली दिल्ली सरकार के पास उसकी सफाई को लेकर ना तो कोई नीति है और न ही नीयत. ऐसे में भले ही कितना भी घड़ियाली आँसू बहा लें, लेकिन आम आदमी पार्टी दिल्ली में सिर्फ हिदुओं और ख़ासकर पूर्वाचलियों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करना जानती है. 

अभी हाल ही कुछ घटनाओं से ये बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि छठ पर्व में महज कुछ दिन ही रह गए हैं. बावजूद इसके यमुना की सफाई तो दूर, जो कृत्रिम घाट पूरी दिल्ली में अलग-अलग जगह बने हैं, वहाँ भी दिल्ली सरकार कोई सुविधा नहीं पहुंचा रही. विश्वस्त सूत्रों से ये भी पता चला है की NGT ने यमुना के किसी भी घाट पर छठ होने से रोक नहीं लगाई है, बल्कि केजरीवाल की आप पार्टी की सरकार करोड़ों का घोटाला करने के बाद भी जो यमुना को साफ नहीं कर पाए और उसे एक नाला बना कर रख दिया, उसी नाकामी को छुपाने के लिए यमुना पर होने वाले छठ अर्ध्य पर बैन लगाए हैं. 

पूर्वांचल का मतलब बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले लोग हैं. इनकी संख्या दिल्ली में लगभग 42% है. ये लोग दिल्ली के आर्थिक और राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रखते है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अतिशी मार्लेना ने केजरीवाल के कहने पर 10 हज़ार सिविल डिफेन्स और बस मार्शल को नौकरी से निकाल दिया. उनमें भी अधिकांश पूर्वांचल से ही आने वाले लोग थे. दिल्ली के 70 में से लगभग 20 विधानसभा ऐसे हैं, जहां हार-जीत का फैसला पूर्वांचली वोटों से होता है. इसमें संगम विहार, बदरपुर, पालम, किरारी, जनकपुरी, द्वारका, बुराड़ी, तिमारपुर, लक्ष्मीनगर, करवालनगर तमाम क्षेत्र हैं. 

केजरीवाल के विधायक जीतते भी रहे है और लोगों को भरोसा भी देते रहे कि विकास होगा. लेकिन सच्चाई ये है कि ये सारे क्षेत्र दिल्ली के सबसे अविकसित क्षेत्रों में आज भी शामिल है. वास्तविकता ये है कि असली फायदा अवैध रूप से बसाये गए रोहिंग्या, बंगालदेशियों, वक्फ बोर्ड को पहुंचा रही है, केजरीवाल कि आम आदमी की सरकार. 

केंद्र सरकार कि सभी लाभार्थी योजना, जिसका लाभ हिन्दुओं तक पहुंचना चाहिए, वो सीधा अवैध रूप से दिल्ली में बसे रोहिंग्या, बांग्लादेशियों को पहुंच रहा है. इतना ही नहीं, पिछले दस साल में 100 करोड़ से भी ज्यादा रूपये वक्फ बोर्ड को दे चुके हैं केजरीवाल. 

हालांकि, इस बार दिल्ली की जनता का मिजाज बदला हुआ नज़र आ रहा है. लोग ये कहने लगे हैं कि जो केजरीवाल 10 साल में दिल्ली में कुछ नहीं कर पाए, वो आगे क्या करेंगे और इस बार सत्ता में परिवर्तन का दौर दिख रहा है. इस पूरे दौर में भाजपा बहुत समय बाद एक मजबूत स्थिति में दिख रही है. ऐसी संभावना बन रही है की अगर दिल्ली की जनता ख़ासकर पूर्वांचल समाज लोकसभा चुनाव की तरह ही भाजपा के पक्ष में वोट कर देते हैं, तो बाजी केजरीवाल के हाथ से निकल जाएगी. अब देखना यह होगा की ऊंट किस करवट बैठता है, क्योंकि ये सिर्फ और सिर्फ राजनीति है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *