59 सीटों का पिछले तीन चुनाव का एनालिसिस .. इनमें 30 सीटें यादव बेल्ट की, लेकिन 2017 में सपा को सिर्फ 8 मिली; हर चुनाव में बदला ट्रेंड
यूपी में तीसरे फेज में 16 जिलों की 59 सीटों पर आज वोटिंग है। पिछले तीन चुनाव का ट्रेंड यही कहता है कि इन सीटों के वोटर जिस पार्टी के साथ गए, लखनऊ की कुर्सी पर वही काबिज हुआ। सिर्फ यही नहीं, इन सीटों के वोटर्स ने जिस पार्टी को भी वोट दिया, छप्पड़ फाड़ के दिया। बात भले ही 2007, 2012 या 2017 के विधानसभा चुनाव की। 2007 में इन 59 में बसपा को 28 सीट मिलीं। 2012 में सपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि 2017 की मोदी लहर में भाजपा ने 49 सीटों पर जबरदस्त जीत हासिल की थी।
ऐसे में भाजपा और सपा गठबंधन के सामने अपनी साख बचाने के लिए चुनौती है। सियासी जानकार कहते हैं कि यह सीटों की हार-जीत का गणित जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द रहता है। राष्ट्रीय या प्रदेश के मुद्दों का यहां कोई खास असर नहीं होता है। इनमें मैनपुरी, इटावा, औरेया जैसे सपा के गढ़ हैं। इसके अलावा, गैर-यादव वोटर हैं। यह गैर-यादव वोटर जिधर गया, जीत का सेहरा उसी पार्टी के सिर में बंधता है।
यादव बेल्ट में अखिलेश की परीक्षा
तीसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, एटा व कासगंज की 19 सीटें हैं। वहीं, बुंदेलखंड के 5 जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 13 सीटें हैं। अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 विधानसभा सीटों पर वोटिंग है। इन 16 जिलों की 59 सीटों में से 30 सीटों पर यादव वोट अधिक है। इसे यादव बेल्ट भी कहा जाता है।
जातीय समीकरण साधने की कोशिश
तीसरे चरण के चुनाव में भाजपा और सपा दोनों ही एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास कर रही हैं। जहां भाजपा ध्रुवीकरण के सहारे हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश में है, वहीं सपा गठबंधन गैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश की है। 2017 में भाजपा ने हिंदुत्व और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर अपना परचम लहराया था।
भाजपा का गैर-यादव ओबीसी कार्ड काफी सफल रहा था। सैनी, शाक्य, कुशवाहा, मौर्य के साथ लोधी वोट भी भाजपा को मिला था। मगर, सपा ने इस बार अपने वोटरों को साधने के लिए कड़ी मशक्कत की है। सपा ने भाजपा से आए स्वामी प्रसाद मौर्य, महान दल के केडी मौर्य और अपना दल की कृष्णा पटेल के सहारे भाजपा को झटका देने की तैयारी की है।