‘बंटेंगे तो कटेंगे’ से काटकर ‘तुम्हारी ही जमीन में गाड़ देंगे’ ?
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ से काटकर ‘तुम्हारी ही जमीन में गाड़ देंगे’, भाजपा की है होमटर्फ पर वापसी
प्रधानमंत्री मोदी की मौन सहमति!
इन सबकी शुरुआत के लिए विपक्ष तो हालांकि प्रधानमंत्री मोदी को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है. उनका मानना है कि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान जब पीएम मोदी ने मंगलसूत्र छीनने को राहुल गांधी के रीडिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ से जोड़ा था, तभी वो इसके बीज बो चुके थे. हालांकि, भाजपा एक ऐसी पार्टी है, जिसमें बिना शीर्ष नेतृत्व की मौन सहमति के ऐसे बेबाक और कठोर बयान नहीं दिए जा सकते हैं. याद कीजिए, नूपुर शर्मा का हाल, जब मौलानाओं द्वार बार-बार कही जा चुकी एक बात को ही उन्होंने दोहराया था, तो भाजपा ने उनसे कैसे तुरंत किनारा किया था. योगी, मिठुन और हिमंता को ‘फ्रिंज’ भी नहीं करार दिया जा सकता है.
मिठुन चक्रवर्ती ने केवल यही नहीं कहा जो ऊपर उद्धृत है. उन्होंने टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं (उन्होंने हिंदू शब्द का इस्तेमाल किया) को वोट देने से रोकने की घटनाओं का उल्लेख किया, कहा कि इसका जवाब देना होगा. मिठुन ने अपनी नक्सल पृष्ठभूमि का भी उल्लेख किया और कहा कि अगर हमारे झाड़ (पेड़) से कोई एक फल तोड़ेगा, तो हम उसके चार फल तोड़े देंगे. मिठुन ने यह भी कहा कि नवंबर से वह महीने के 20 दिन पार्टी को देंगे और पार्टी को ऐसा मजबूत करेंगे कि अगर उनके लोगों को वोट नहीं देने दिया गया, तो दूसरी पार्टी के लोग भी वोट नहीं दे पाएंगे. इसके बाद उनका सर्वाधिक कठोर बयान आया, जब उन्होंने कहा, ‘इनकी पार्टी का एक नेता है. वह कहता है कि यहां 60 फीसदी मुसलमान है. वह हमको काटकर भागीरथी में फेंक देगा. अब हम बोलता है कि हम तुमको भागीरथी में नहीं फेंकेगा. वो हमारी मां है, पुण्य सलिला है…हम तुमको काटकर तुम्हारा जमीन में गाड़ देगा.’ जब मिठुन यह सब बोल रहे थे, तो गृहमंत्री अमित शाह भी मंचस्थ थे और मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे.
मुर्गी पहले आयी या अंडा?
जाहिर है कि इस तरह के बयानों के बाद हंगामा मचना ही था. विपक्षी नेताओं से लेकर कई यूट्यूबर्स ने चुनाव आयोग को टैग करके ये सारे वीडियो शेयर करने शुरू किए हैं. हालांकि, भाजपा की तरफ से उसके नेताओं या समर्थकों का वही कहना है, जो ऐसे मौकों पर उनकी तरफ से आता है. उनका कहना है कि सेकुलरिज्म की एकतरफा दुकान जब तक चलती रहेगी, जब तक हिंदुओं को ही, दीवार से सटाया जाएगा, तब तक इस देश में इस तरह के बयान आएंगे ही. वे पूछते हैं कि कर्नाटक में 53 ऐसी संपत्तियों पर वक्फ ने कब्जा कर लिया है, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकार में हैं. इसके साथ ही दिल्ली में तो वक्फ 70 फीसदी जमीन को ही अपना बताता है. ताजमहल से लेकर लालकिला और संसद तक पर वह दावा करता है. असम के विवादास्पद नेता बदरुद्दीन अजमल ने तो संसद को ही वक्फ की प्रॉपर्टी बताया. इन सब पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. वक्फ की बैठक से विपक्षी दल कन्नी काट रहे हैं, उसके बाद जमीयत के नेता टीडीपी और जेडी-यू से कह रहे हैं कि अगर वक्फ बिल पारित हुआ, तो उनको भी इसकी सजा मिलेगी, मुसलमान इसे याद रखेंगे.
“सांप्रदायिक” और “नफरती” बयानों की बात है तो असदुद्दीन ओवैसी के भाई और नेता अकबरुद्दीन ओवैसी का वह कुख्यात बयान सबको याद है, जिसमें उन्होंने पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटाने और फिर हिंदुओं को देख लेने की बात कही थी. उन्होंने देवी-देवताओं की बहुत अभद्र तरीके से निंदा करते हुए कहा था कि इनका (हिंदुओं) का तो पता नहीं, कौन-कौन से देवी-देवता पैदा हो जाते हैं और वह उस पाक मजलिस (जिसको वह संबोधित कर रहे थे) में उस पर बात भी नहीं करना चाहते. मौलाना साजिद रशीदी से लेकर मदनी तक ने इतनी बार इतने आपत्तिजनक बयान दिए हैं. जामा मस्जिद के इमाम के खिलाफ गैर-जमानती वारंटों पर तामील करने की पुलिस की हिम्मत तक नहीं हुई. तो फिर, कांग्रेस और उसके साथी दल किस मुंह से किसी और पर ऊंगली उठाते हैं?
भाजपा वापस हिंदुत्व की ओर
भाजपा के नेताओं-समर्थकों का यह कहना है कि इसकी शुरुआत में ही अगर इन पर नकेल कस दी जाती, तो शायद अकबरुद्दीन के जवाब में नितेश राणे नहीं बोलते, रशीदी के जवाब में योगी नहीं आते और मदनी का प्रतिउत्तर हिमंता को नहीं देना होता. अगर बंगाल में भाजपा समर्थकों के साथ इतनी हिंसा और एक समुदाय का विकट तुष्टीकरण, संदेशखाली से लेकर मिदनापुर की वीभत्स घटनाओं पर राज्य सरकार ने चुप्पी नहीं साधी होती, तो मिठुन चक्रवर्ती इस तरह का कठोर बयान नहीं देते. अगर खुलेआम एक खास समुदाय का तुष्टीकरण नहीं किया जाता, तो शायद हिंदू भी दीवार से नहीं सटते.
हालांकि, यह बात बिल्कुल दीगर है कि शायद भाजपा समझ चुकी है कि मुसलमानों से उसकी दूरी बनी ही रहेगी और विश्वास जीतने के तमाम प्रयास काम नहीं आ सकेंगे. इसलिए, वह वापस हिंदुओं को एक करने पर जुट गयी है, जो उसकी जीत की कुंजी है. यूपी में सपा की 37 सीटें बार-बार उसकी आंखों में चुभती तो होंगी ही. जहाँ तक अतिवादी बयानों का सवाल है, तो रामधारी सिंह दिनकर याद आते हैं—
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