दुनियाभर में बदलता रहा है परिवार का नजरिया ?

मुद्दा: आखिर कितने बच्चे होने चाहिए, दुनियाभर में बदलता रहा है परिवार का नजरिया
Issue: How many children should one have? perspective of the family has been changing all over world
सांकेतिक तस्वीर।

बहुत साल पहले इस लेखिका ने विदेश में अपने बच्चों के परिचित भारतीयों में एक ट्रेंड देखा था, वह था, एक बच्चे का। चाहे लड़की हो या लड़का। हमारे यहां की तरह नहीं कि अगर छह लड़कियां भी हों, तो बेटे की चाहत में सातवां बच्चा चाहिए। इन दंपतियों के बच्चे अकेले होते थे और उन्हें किसी के साथ का अभाव खलता था, तो इसका आसान तरीका यह निकाला गया कि कोई बच्चा किसी दूसरे के घर खेलने चला जाता था, फिर दूसरा उसके घर आ जाता था, इस तरह बारी-बारी से माता-पिता अपने बच्चों को एक-दूसरे के घर खेलने के लिए छोड़ आते थे और ले आते थे। छुट्टियों के दिन, वे लोग ग्रुप में घूमने भी जाते थे।

लेकिन यह देखकर हैरानी हुई कि उसी उम्र के मध्यवर्ग के लोग अब भारत में भी एक ही बच्चा चाहते हैं। लड़की, लड़के का कोई भेद नहीं। एक बार एक परिचित लड़की से इस बारे में पूछा, तो उसने कहा कि आंटी नौकरी करें कि कई-कई बच्चे पालें। फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनका कॅरिअर, सब कुछ इतना महंगा है कि एक बच्चे के खर्चे उठाना ही मुश्किल है। ये वे लोग हैं, जिन्हें डिंक इनकम ग्रुप कहा जाता है। अधिकांश के माता-पिता, दोनों ही नौकरी करते हैं। बहुतों के घर में बच्चों की देखभाल के लिए सहायिका के अलावा दादा-दादी या नाना-नानी भी हैं। आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने परिवार नियोजन के नारे ‘हम दो हमारे दो’ को पीछे छोड़ते हुए, एक नारा शुरू किया था ‘हम दो, हमारा एक’। लगभग पचास साल पहले किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया था। लेकिन आज बिना किसी नारे के मध्यवर्ग की साधन संपन्न पीढ़ी ने इसे अपना लिया है।

एक तरफ तो ऐसा है, दूसरी तरफ भारत की लगातार बढ़ती आबादी की चिंता जग-जाहिर है। चीन को पीछे छोड़कर, भारत अब दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश है। एक बार स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को बोलते हुए सुना था। यह दशकों पुरानी बात है, तब उन्होंने भारत की जनसंख्या नीति का विरोध करते हुए कहा था कि यदि भगवान खाने को एक मुंह देता है, तो कमाने के लिए दो हाथ भी देता है। यानी कि आर्थिकी की बढ़त में सहयोग के लिए जनसंख्या सबसे बड़ा साधन होती है। चीन, जापान जैसे देशों के बारे में पढ़ें, तो पाते हैं कि वहां सरकारें, अपने बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से परेशान हैं। चीन से तो लगातार खबरें आ रही हैं कि वहां युवा अब बच्चे पैदा करना नहीं चाहते।

स्त्रियां बच्चों को पालने का बोझ नहीं उठाना चाहतीं। स्त्री विमर्श के तमाम नारों ने उन्हें सिखाया है कि पहले जहां स्त्री के मां बनने को उसकी सबसे बड़ी योग्यता माना जाता था और संतानहीन स्त्री को बांझ कहकर अपमानित किया जाता था, अब उसके दिन गए। अब स्त्री की सबसे बड़ी योग्यता, उसकी शिक्षा और उसका कॅरिअर है। परिवार नियोजन के तमाम साधनों ने उसे यह सुविधा भी प्रदान की है कि वह चाहे तो मां बने, चाहे तो मां न बने। वैसे भी आबादी रोकने के लिए जिस तरह की बातें कही गई हैं, जैसे कि शादी का मतलब आनंद होता है, कंपेनियनशिप होती है, सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं, इन नारों ने भी स्त्रियों के मानस पर असर डाला है और उन्हें निर्णय लेना सिखाया है।

कल तक चीन की सरकार कहती थी कि कम बच्चे पैदा करो। अब कहा जा रहा है कि ज्यादा बच्चे चाहिए, क्योंकि देश चलाने और अर्थव्यवस्था के लिए युवा चाहिए। अगर बच्चे ही नहीं होंगे, तो युवा कहां से आएंगे। युवाओं को डेटिंग पर जाने के लिए विशेष छुट्टियां प्रदान की जा रही हैं, पर कोई नहीं सुन रहा। इसी का नतीजा है कि सैकड़ों की संख्या में केजी स्कूल बंद हो चुके हैं। प्राइमरी स्कूल भी कम होते जा रहे हैं।

भारत में भी पिछले दिनों दक्षिण के दो नेताओं ने कहा कि हमारे राज्यों की स्त्रियां ज्यादा बच्चे पैदा करें, लेकिन जो महिलाएं पढ़-लिख रही हैं, आत्मनिर्भर होना चाहती हैं, उन्हें ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए आखिर कैसे मनाया जाएगा? और वे मानेंगी भी क्यों? ज्यादा बच्चे होंगे, तो पालने तो माता-पिता को ही हैं। वे ही उनके लिए संसाधन जुटाएंगे। क्या आम परिवारों के पास इतने संसाधन होंगे? सरकारें और नेता, तो कहकर भूल जाएंगे। फिर पहले की तरह के संयुक्त परिवार बचे नहीं हैं, जहां दादी-नानी, घर के अन्य सदस्य, अपनी तीसरी पीढ़ी को पालने में गौरव और आनंद का अनुभव करते थे। जहां संयुक्त परिवार बचे भी हैं, वे सिकुड़ते जा रहे हैं। इसके अलावा, दादी-नानी हैं भी, तो अब उन्हें भी अपनी निजता और आजादी का एहसास होने लगा है। उन्हें लगता है कि अपने बच्चे पाल लिए, अब अगली पीढ़ी के बच्चे पालना उनके माता-पिता की जिम्मेदारी है। समाज का ढांचा बदल रहा है। इसकी आलोचना व प्रशंसा करने के अपने-अपने तर्क हैं।  

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