जस्टिस चंद्रचूड़ के ऐतिहासिक फैसले !
DY Chandrachud: निजता, सबरीमाला, राम मंदिर से चुनावी बॉन्ड तक; ये हैं जस्टिस चंद्रचूड़ के ऐतिहासिक फैसले
DY Chandrachud: जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ आज यानी रविवार को प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। आधार, सबरीमाला, राम मंदिर से अनुच्छेद 370, चुनावी बॉन्ड तक पर जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले काफी चर्चित रहे हैं। उन्हें इन फैसलों की वजह से हमेशा याद किया जाएगा।
भारत के 51वें प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ आज अपने पद से सेवानिवृत हो रहे हैं। 9 नवंबर 2022 को भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने शपथ ली थी। वह 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना देश के नए मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। इससे पहले शुक्रवार को जस्टिस चंद्रचूड़ का सीजेआई के तौर पर अंतिम कार्य दिवस रहा, जिसमें उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े 1967 के फैसले को पलट दिया। उनके कई निर्णय चर्चित रहे हैं। आइये जानते हैं इन तमाम फैसलों के बारे में…
निजता का अधिकार
2017 में नौ जजों की बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें निजता को मौलिक अधिकार माना गया। इसे न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले के रूप में जाना जाता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुद और तीन अन्य जजों की ओर से बोलते हुए बहुमत की राय लिखी। इसमें निजता को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग बताया गया। इस फैसले में निजता के तमाम पहलुओं को भी मान्यता दी गई, जिसमें शारीरिक निजता, सूचनात्मक निजता और पसंद की निजता शामिल है। यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा पर बाद के कई फैसलों का आधार बना। यह सब 2012 में तब शुरू हुआ जब सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएस पुट्टस्वामी ने आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। आधार अधिनियम ने भारत के विशिष्ट पहचान संख्या कार्यक्रम को वैध बनाया।
2017 में नौ जजों की बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें निजता को मौलिक अधिकार माना गया। इसे न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले के रूप में जाना जाता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुद और तीन अन्य जजों की ओर से बोलते हुए बहुमत की राय लिखी। इसमें निजता को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग बताया गया। इस फैसले में निजता के तमाम पहलुओं को भी मान्यता दी गई, जिसमें शारीरिक निजता, सूचनात्मक निजता और पसंद की निजता शामिल है। यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा पर बाद के कई फैसलों का आधार बना। यह सब 2012 में तब शुरू हुआ जब सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएस पुट्टस्वामी ने आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। आधार अधिनियम ने भारत के विशिष्ट पहचान संख्या कार्यक्रम को वैध बनाया।
दिल्ली का असली मालिक
दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2018) हाल के वर्षों में एक चर्चित फैसला रहा है। मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच विवाद ने एनसीटी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) की स्थिति पर कानूनी विवाद को जन्म दिया। यह मुद्दा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की विशेष स्थिति के मद्देनजर दिल्ली के एलजी की प्रशासनिक शक्तियों को लेकर था। 4 जुलाई 2018 को संविधान पीठ ने फैसला दिया कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। निर्णय ने इस बात पर जोर दिया कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को कार्यपालिका का नेतृत्व करना चाहिए।
दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2018) हाल के वर्षों में एक चर्चित फैसला रहा है। मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच विवाद ने एनसीटी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) की स्थिति पर कानूनी विवाद को जन्म दिया। यह मुद्दा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की विशेष स्थिति के मद्देनजर दिल्ली के एलजी की प्रशासनिक शक्तियों को लेकर था। 4 जुलाई 2018 को संविधान पीठ ने फैसला दिया कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। निर्णय ने इस बात पर जोर दिया कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को कार्यपालिका का नेतृत्व करना चाहिए।
समलैंगिकता पर फैसला
नवतेज जौहर बनाम भारत संघ (2018) मामले में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने वाले फैसले की भी खूब चर्चा रही। इसमें न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की सहमति वाली राय ने धारा 377 को असंवैधानिक घोषित किया। 158 साल पुराना कानून वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता था। उन्होंने इसे एक ऐसा औपनिवेशिक कानून बताया जो समानता, अभिव्यक्ति, सम्मान और निजता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि संवैधानिक नैतिकता को सामाजिक नैतिकता पर हावी होना चाहिए और माना गया कि समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करना LGBTQ+ अधिकारों की पूर्ण मान्यता की दिशा में पहला कदम है।
नवतेज जौहर बनाम भारत संघ (2018) मामले में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने वाले फैसले की भी खूब चर्चा रही। इसमें न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की सहमति वाली राय ने धारा 377 को असंवैधानिक घोषित किया। 158 साल पुराना कानून वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता था। उन्होंने इसे एक ऐसा औपनिवेशिक कानून बताया जो समानता, अभिव्यक्ति, सम्मान और निजता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि संवैधानिक नैतिकता को सामाजिक नैतिकता पर हावी होना चाहिए और माना गया कि समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करना LGBTQ+ अधिकारों की पूर्ण मान्यता की दिशा में पहला कदम है।
केरल के सबरीमाला मंदिर का मुद्दा
सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 10-50 वर्ष की आयु की महिलाओं को प्रवेश से बाहर रखना संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है। इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2019) मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह प्रथा अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का निषेध) का भी उल्लंघन करती है। प्रथा महिलाओं को अशुद्धता की धारणा देती है और जैविक कारणों के आधार पर महिलाओं को प्रवेश से बाहर रखना असंवैधानिक है।
सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 10-50 वर्ष की आयु की महिलाओं को प्रवेश से बाहर रखना संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है। इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2019) मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह प्रथा अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का निषेध) का भी उल्लंघन करती है। प्रथा महिलाओं को अशुद्धता की धारणा देती है और जैविक कारणों के आधार पर महिलाओं को प्रवेश से बाहर रखना असंवैधानिक है।
राम मंदिर पर फैसला
सबसे महत्वपूर्ण फैसले में पांच जजों की पीठ ने विवादित अयोध्या भूमि को राम मंदिर बनाने के लिए दिया और उत्तर प्रदेश सरकार को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में एक वैकल्पिक स्थल उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। डीवाई चंद्रचूड़ 2019 में ऐतिहासिक अयोध्या फैसला सुनाने वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे। नवंबर 2019 में आए इस फैसले ने एक सदी से भी ज्यादा पुराने इस विवादास्पद मुद्दे का निपटारा कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें विवादित भूमि को विभाजित कर उसे मंदिर और मस्जिद ट्रस्टों को निर्माण के लिए दे दिया गया था।
सबसे महत्वपूर्ण फैसले में पांच जजों की पीठ ने विवादित अयोध्या भूमि को राम मंदिर बनाने के लिए दिया और उत्तर प्रदेश सरकार को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में एक वैकल्पिक स्थल उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। डीवाई चंद्रचूड़ 2019 में ऐतिहासिक अयोध्या फैसला सुनाने वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे। नवंबर 2019 में आए इस फैसले ने एक सदी से भी ज्यादा पुराने इस विवादास्पद मुद्दे का निपटारा कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें विवादित भूमि को विभाजित कर उसे मंदिर और मस्जिद ट्रस्टों को निर्माण के लिए दे दिया गया था।
अनुच्छेद 370 पर निर्णय
2023 में संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को बरकरार रखा। अपने ऐतिहासिक 476 पन्नों के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जम्मू-कश्मीर ने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के बाद अपनी संप्रभुता खो दी थी।
2023 में संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को बरकरार रखा। अपने ऐतिहासिक 476 पन्नों के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जम्मू-कश्मीर ने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के बाद अपनी संप्रभुता खो दी थी।
चुनावी बॉन्ड का कानून
पांच जजों की बेंच ने अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया। बेंच ने माना कि इस योजना ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया है। इसने यह भी निर्देश दिया कि चुनावी बॉन्ड की बिक्री तत्काल प्रभाव से रोक दी जाए और एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया और उसे एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया। इस महत्वपूर्ण फैसले ने राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित किया, जिसके तहत चुनावी बॉन्ड के जरिए किए गए सभी राजनीतिक दान का खुलासा करना आवश्यक हो गया।
पांच जजों की बेंच ने अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया। बेंच ने माना कि इस योजना ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया है। इसने यह भी निर्देश दिया कि चुनावी बॉन्ड की बिक्री तत्काल प्रभाव से रोक दी जाए और एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया और उसे एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया। इस महत्वपूर्ण फैसले ने राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित किया, जिसके तहत चुनावी बॉन्ड के जरिए किए गए सभी राजनीतिक दान का खुलासा करना आवश्यक हो गया।
एससी-एसटी वर्ग आरक्षण में वर्गीकरण
इसी साल सितंबर में सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 बहुमत से ईवी चिन्नैया मामले को खारिज करते हुए एससी/एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी। 2024 के पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (एससी/एसटी का उप-वर्गीकरण) फैसले में क्रीमी लेयर के विचारों पर जोर दिया गया और विभिन्न एससी/एसटी उप-समूहों के बीच समान लाभ वितरण सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की शक्ति की पुष्टि की गई। अदालत ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 15 और 16 राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से नहीं रोकते हैं।
इसी साल सितंबर में सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 बहुमत से ईवी चिन्नैया मामले को खारिज करते हुए एससी/एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी। 2024 के पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (एससी/एसटी का उप-वर्गीकरण) फैसले में क्रीमी लेयर के विचारों पर जोर दिया गया और विभिन्न एससी/एसटी उप-समूहों के बीच समान लाभ वितरण सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की शक्ति की पुष्टि की गई। अदालत ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 15 और 16 राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से नहीं रोकते हैं।
सांसदों और विधायकों के लिए छूट
मार्च 2024 में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि यदि किसी सांसद या विधायक पर विधायिका में वोट या भाषण के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया जाता है तो वह मुकदमे से बचने का दावा नहीं कर सकता। सीता सोरेन बनाम भारत संघ (2024) मामले में अदालत ने कहा कि रिश्वत लेना एक खुला अपराध है और इसका संसद या विधानसभा के अंदर विधायक द्वारा कही गई बातों या किए गए कार्यों से कोई संबंध नहीं है। सात न्यायाधीशों वाली पीठ ने सर्वसम्मति से पीवी नरसिम्हा राव मामले को खारिज करते हुए कहा कि सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत रिश्वतखोरी के लिए संसदीय छूट प्राप्त नहीं है।
मार्च 2024 में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि यदि किसी सांसद या विधायक पर विधायिका में वोट या भाषण के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया जाता है तो वह मुकदमे से बचने का दावा नहीं कर सकता। सीता सोरेन बनाम भारत संघ (2024) मामले में अदालत ने कहा कि रिश्वत लेना एक खुला अपराध है और इसका संसद या विधानसभा के अंदर विधायक द्वारा कही गई बातों या किए गए कार्यों से कोई संबंध नहीं है। सात न्यायाधीशों वाली पीठ ने सर्वसम्मति से पीवी नरसिम्हा राव मामले को खारिज करते हुए कहा कि सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत रिश्वतखोरी के लिए संसदीय छूट प्राप्त नहीं है।