बढ़ रहा मिट्टी की झोपड़ी बनाने का ट्रेंड….

अमेरिका में पिछले दो सालों से मिट्‌टी और भूसे से घर बन रहे; तैयार करने में खर्चा कम और प्रदूषण जीरो…..

मिट्‌टी की झोपड़ी… फूस या खपरैल की छत। अगर यह विवरण सुनकर आप भारत के किसी दूर-दराज के पिछड़े गांव की तस्वीर दिमाग में बना रहे हैं तो आप गलत हैं। यह तस्वीर अमेरिका जैसे विकसित देश के मॉन्टेना या एरिजोना जैसे राज्यों में आपको दिख सकती है।

दरअसल, अमेरिका में पिछले दो साल में मिट्‌टी और भूसे के मिश्रण से घर बनाने का चलन तेजी से बढ़ा है। यह अभियान 1995 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के तीन छात्रों ने शुरू किया था। इन लोगों ने ‘डांसिंग रैबिट’ के नाम से एक ईको-विलेज बनाया था जहां लोग खुद मिट्‌टी और भूसे के घर बनाकर रहते हैं। मगर कोरोना के दौर में लोगों का ध्यान सस्टेनेबल लिविंग के इस तरीके की ओर गया।

2020 की शुरुआत में सोशल मीडिया पर ऐसे ही एक घर का वीडियो आने के बाद ‘डांसिंग रैबिट’ में मिट्‌टी का घर बनाने की ट्रेनिंग लेने आने वालों की संख्या कई गुना बढ़ गई। ईको-विलेज में 38 घर हैं और सभी मिट्‌टी से बने हैं। कोरोनाकाल से पहले यहां साल में 40-45 लोग घर बनाना सीखने आते थे। अब 1000 से ज्यादा लोग आते हैं।

‘डांसिंग रैबिट’ ईको विलेज की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डेनिएल विलियम्स बताती हैं कि जब यह विचार शुरू हुआ तो अमेरिका और दुनिया की अर्थव्यवस्था में अस्थिरता थी। 1995 में इराक-कुवैत युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल मची थी। घर खरीदना बहुत ज्यादा महंगा था। उस समय स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के तीन छात्रों ने मिसूरी राज्य के रटलेज में 280 एकड़ जमीन खरीदी और ईको विलेज की शुरुआत की।

डेनियल बताती हैं कि अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन्स भी सदियों से मिट्‌टी के घरों में रहते आए थे। जब हमने रिसर्च की तो पाया कि भारत में भी ऐसे घर प्राचीन सभ्यताओं में भी मिले हैं। तब हमने घर बनाने का ये तरीका अपनाया। कोरोनाकाल में लोगों को खर्च कम करने के साथ ही पर्यावरण की भी चिंता हुई। इसकी वजह से कई लोग वैकल्पिक आवासीय प्रणालियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

कैसे बनते हैं मिट्‌टी के घर

घर के लिए मिट्‌टी तैयार करतीं डेनिएल विलियम्स।
घर के लिए मिट्‌टी तैयार करतीं डेनिएल विलियम्स।

इन घरों में सीमेंट या लोहे जैसी किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं होता। जिस जमीन पर घर बनाना हो उसकी खुदाई से मिट्‌टी मिल जाती है और बाजार से भूसा बहुत सस्ती दर पर मिल जाता है। 70% रेत, 30% मिट्‌टी में भूसा घोलकर जो मिश्रण बनता है उससे दीवारें बन जाती हैं। बांस या अन्य किसी उपलब्ध लकड़ी से छत का ढांचा बन जाता है। इसके ऊपर फूस की छत बनाई जा सकती है। दीवारों के लिए बनाए मिश्रण से ही खपरैल बनाकर इससे भी छत बनाई जा सकती है।

सोलर पैनल से बिजली और रेनवाटर हार्वेस्टिंग भी: डैनिएल कहती हैं कि मिट्‌टी के घर की छत पर सोलर पैनलों लगाकर आप अपनी जरूरत की बिजली बना सकते हैं। बारिश का पानी भी आसानी से सहेज सकते हैं। अमेरिका में अभी 12 वर्गफुट से बड़ी रेसिडेंशियल यूनिट बनाने के लिए मंजूरी अनिवार्य है। इसी वजह से ईको विलेज में कई लोगों ने एक बड़ा मकान बनाने के बजाय 12-12 वर्गफुट के तीन-चार छोटे यूनिट बना रखे हैं। डेनिएल को उम्मीद है कि लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही सरकार का रुख भी बदलेगा।

क्यों बेहतर हैं मिट्‌टी के घर

  • बनाना आसान और सस्ता है। आप खुद बना सकते हैं, किसी आर्किटेक्ट और मजदूर की जरूरत नहीं है।
  • मिट्‌टी की दीवारों की वजह से घर गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहेगा।
  • सीमेंट के मकानों से ज्यादा उम्र है। ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि मिट्‌टी के घर 100 साल से ज्यादा चले हैं।
  • पर्यावरण के लिए पूरी तरह अनुकूल हैं। यानी आपका मकान कार्बन फुटप्रिंट नहीं बढ़ाएगा।
  • एक अमेरिकी नागरिक का मौजूदा कार्बन फुटप्रिंट प्रतिवर्ष 20 मीट्रिक टन है जबकि यह 9 मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। डांसिंग रैबिट में रहने वालों का औसत कार्बन फुटप्रिंट 8.3 मीट्रिक टन है।

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