क्या भारत बचा पाएगा अपनी जैव विविधता ?
क्या भारत बचा पाएगा अपनी जैव विविधता, क्या है नई रणनीति के लक्ष्य?
2030 तक धरती के 30% हिस्से को बचाने का जो वादा किया गया था, उसे पूरा करने के लिए हमें अभी बहुत तेज दौड़ना होगा.
जंगल, पहाड़, नदियां और समुद्र ये सब प्रकृति का खजाना हैं. इन्हें बचाना बहुत जरूरी है, न सिर्फ जानवरों और पेड़-पौधों के लिए बल्कि हम इंसानों के लिए भी. इसीलिए 2022 में दुनियाभर के देशों ने मिलकर वादा किया था कि 2030 तक हम धरती के 30% हिस्से को बचाएंगे जिसमें जमीन और पानी दोनों शामिल हैं. यह वादा ‘कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’ का हिस्सा है.
प्रकृति को बचाने के लिए हम क्या कर रहे हैं, इसका हिसाब किताब रखना भी जरूरी है. इसीलिए एक नई रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि दुनियाभर में प्रोटेक्टेड एरिया कितने बनाए गए हैं और उनका क्या हाल है. इस रिपोर्ट का नाम है- ‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट 2024’. इसे UNEP-WCMC और IUCN ने मिलकर बनाया है.
क्या कहती है रिपोर्ट?
अगर हमें 2030 तक अपना लक्ष्य पूरा करना है, तो जमीन पर प्रोटेक्टेड एरिया को दोगुना और समुद्र में तिगुना करना होगा. 2020 के बाद से समुद्र में प्रोटेक्टेड एरिया बढ़ाने में थोड़ी तेजी आई है, लेकिन ज्यादातर काम देशों के अपने समुद्री इलाकों में हुआ है. अंतर्राष्ट्रीय समुद्री इलाकों में तो अभी बहुत कम काम हुआ है.
यह पता लगाने के लिए कि प्रोटेक्टेड एरिया कितने असरदार हैं, इसकी पूरी जानकारी भी नहीं है. दुनिया की सिर्फ 5% जमीन और 1.3% समुद्री इलाके ऐसे हैं जहां प्रोटेक्टेड एरिया के प्रबंधन का आंकलन किया गया है.
इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की प्रमुख इंगर एंडरसन ने कहा है कि सिर्फ प्रोटेक्टेड एरिया बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि यह भी जरूरी है कि ये एरिया असरदार हों और उन लोगों को नुकसान न पहुंचाएं जो वहां रहते हैं.
प्रकृति को बचाने के नाम पर खानापूर्ति!
प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, जिन जगहों पर जैव विविधता को सबसे ज्यादा खतरा है, वहां तो सिर्फ 20% ही प्रोटेक्टेड एरिया बनाए गए हैं. एक तिहाई खतरनाक इलाके तो प्रोटेक्टेड एरिया के बाहर ही हैं. कुछ प्राकृतिक इलाकों को तो 30% तक कवर कर लिया गया है, लेकिन कुछ इलाकों में तो एक भी प्रोटेक्टेड एरिया नहीं है. इससे कुछ जीव-जंतु और पेड़-पौधे तो सुरक्षित हैं, लेकिन कुछ खतरे में हैं.
सिर्फ 8.5% जमीन ऐसी है जो प्रोटेक्टेड भी है और जहां जंगल और दूसरे प्राकृतिक इलाके आपस में जुड़े हुए हैं. प्रोटेक्टेड एरिया के अलावा आदिवासी इलाके भी प्रकृति को बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं. ये इलाके दुनिया की 13.6% जमीन पर फैले हुए हैं. मगर बहुत कम प्रोटेक्टेड एरिया ऐसे हैं जहां आदिवासी लोगों को प्रबंधन में शामिल किया गया है. सिर्फ 4% इलाके ऐसे हैं जो आदिवासी लोगों द्वारा प्रबंधित हैं.
UNEP प्रमुख एंडरसन ने बताया, पिछले चार सालों में कुछ तरक्की जरूर हुई है लेकिन हम जितनी तेजी से आगे बढ़ना चाहिए, उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे हैं. 51 देशों ने तो जमीन पर 30% का लक्ष्य पहले ही पूरा कर लिया है. 31 देशों ने समुद्र में भी 30% का लक्ष्य पूरा कर लिया है.
प्रकृति को बचाने का लक्ष्य मुश्किल है, मगर नामुमकिन नहीं!
2030 तक धरती के 30% हिस्से को बचाने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसे पूरा करना आसान नहीं है. लेकिन अच्छी बात यह है कि अभी भी उम्मीद की किरण बाकी है. दुनियाभर के देशों ने प्रकृति को बचाने के काम में तरक्की नापने के लिए एक जैसा तरीका अपनाने का फैसला किया है. इससे सब देश एक ही दिशा में काम करेंगे और ज्यादा असरदार तरीके से लक्ष्य हासिल कर पाएंगे.
प्रकृति को बचाने के लिए सिर्फ वादे करना ही काफी नहीं है, उन वादों को पूरा भी करना होगा. प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट में कुछ जरूरी बातें बताई गई हैं जिन पर ध्यान देकर हम प्रकृति को बचा सकते हैं. सबसे पहले प्रोटेक्टेड एरिया तो बढ़ाने ही होंगे, लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि ये एरिया आपस में जुड़े हुए हों और सही जगहों पर स्थित हों. जहां जैव विविधता को सबसे ज्यादा खतरा है, वहां प्रोटेक्टेड एरिया बनाना ज्यादा जरूरी है.
आदिवासी लोग प्रकृति के सबसे बड़े रक्षक होते हैं. उनके इलाकों और उनके पारंपरिक ज्ञान का सम्मान करना होगा, उन्हें प्रकृति के संरक्षण में शामिल करना होगा. गरीब देशों को प्रोटेक्टेड एरिया बनाने के लिए पैसे की जरूरत होती है. अमीर देशों को उन्हें इसमें मदद करनी चाहिए. दुनियाभर के देशों ने 2030 तक जैव विविधता में हर साल कम से कम 200 बिलियन डॉलर का निवेश करने का वादा किया है.
प्रकृति को बचाने की रणनीति: क्या है भारत का मास्टर प्लान!
प्रकृति को बचाने के लिए भारत सरकार ने एक ‘नेशनल बायोडायवर्सिटी स्ट्रैटेजी एंड एक्शन प्लान’ (NBSAP) बनाया है. यह एक तरह का मास्टर प्लान है, जिसमें बताया गया है कि भारत अपनी जैव विविधता को कैसे बचाएगा. इसमें बताया जाता है कि जंगलों, जानवरों, पेड़-पौधों और छोटे-छोटे जीवों को कैसे बचाया जाएगा. इसमें यह भी बताया जाता है कि सरकार, समाज और हर व्यक्ति को प्रकृति को बचाने के लिए क्या करना चाहिए.
भारत ने तय किया है कि 2030 तक वो अपनी 30% जमीन, नदियों, तटीय और समुद्री इलाकों को बचाएगा. मतलब, जंगल, पहाड़, नदियां और समुद्र सब कुछ सुरक्षित रहेंगे. जो जंगल कट गए हैं, जो नदियां गंदी हो गई हैं, उन्हें फिर से ठीक किया जाएगा. इससे हमें साफ हवा और पानी मिलेगा.
जैव विविधता को बचाने के 8 मंत्र!
दुनियाभर में जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और छोटे-छोटे जीवों को कई तरह के खतरे हैं. प्रदूषण, जंगलों का कटना, जलवायु परिवर्तन – इन सब से हमारी जैव विविधता को नुकसान हो रहा है. इसीलिए ‘कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’ (KM-GBF) में 8 जरूरी बातों पर ध्यान देने को कहा गया है.
ये लक्ष्य है कि खेती, शहर और दूसरी चीजों के लिए जमीन और पानी का इस्तेमाल इस तरह से हो कि जैव विविधता को नुकसान न पहुंचे. जो जंगल और दूसरे प्राकृतिक इलाके खराब हो गए हैं, उन्हें फिर से हरा-भरा बनाना जाए. कुछ खास जगहों को प्रोटेक्टेड एरिया बनाना जहां किसी भी तरह का निर्माण या गतिविधि नहीं हो सके. अलग-अलग तरह के जीवों और उनकी खासियतों को बचाना, ताकि कोई भी प्रजाति खत्म न हो.
इसके अलावा, जंगली जीवों का इस्तेमाल इस तरह से करना कि उनकी संख्या कम न हो. ऐसे जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को रोकना जो बाहर से आकर हमारी जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं. हवा, पानी और मिट्टी के प्रदूषण को कम करना होगा. जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे.
ये 8 बातें प्रकृति को बचाने के लिए बहुत जरूरी हैं. अगर इन लक्ष्यों का ध्यान रखा जाएगा, तो हमारी जैव विविधता सुरक्षित रहेगी और हमारी आने वाली पीढ़ियां भी प्रकृति का आनंद ले पाएंगी.