महंगाई की आग थाली तक पहुंची, 20 साल में एक दिन की थाली का बिल 3 गुना से ज्यादा बढ़कर 78 रुपए हुआ
महंगाई का असर अब हमारी थाली पर दिखने लगा है। एक एनालिसिस के मुताबिक पिछले 20 साल में एक दिन की थाली का बिल 23 रुपए से बढ़कर 78 रुपए हो गया है। यानी 3 गुना से ज्यादा बढ़ गया है। यह एनालिसिस होलसेल प्राइस इंडेक्स के आंकड़ों पर आधारित है। इतना ही नहीं, खाने-पीने के सामान से लेकर तेल के दाम बढ़ने से महंगाई 8 साल के पीक पर पहुंच गई है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI आधारित रिटेल महंगाई दर अप्रैल में बढ़कर 7.79% हो गई।ऐसे में आइए जानते हैं कि पिछले 20 साल में हमारी थाली कैसे महंगी हो गई? इस दौरान किन वस्तुओं के दाम सबसे ज्यादा बढ़े हैं? इसका कारण क्या है?
किराने का वीकली बिल 10 साल में 68% बढ़ गया
दिल्ली की रहने वाली 34 साल पूजा बताती हैं कि कुछ सालों में ही हमारे किराने का बिल एकाएक काफी बढ़ गया है। पूजा कहती है कि अब हम अपने 3 लोगों के परिवार के लिए एक हफ्ते की ग्रॉसरी के 4 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं जो कि 2012 में उनकी शादी के बाद पहली बार की गई खरीदारी से दोगुना है। पूजा कहती हैं कि इस दौरान बेटे के जन्म और वर्क फ्रॉम होम ने इसमें थोड़ा इजाफा भी किया है। हालांकि कुल मिलाकर हम 10 साल पहले जितना खर्च करते थे, अब उससे दोगुना खर्च कर रहे हैं।
इसे हम गणित के जरिए समझते हैं। तीन लोगों के परिवार को एक हफ्ते में इन बुनियादी सामान मसलन 5 लीटर दूध, 2 किलो चावल, 2 किलो आटा, 1 लीटर तेल, दाल, 1 दर्जन केले, 1 किलो सेब और 2 किलो प्याज की जरूरत होती है। होलसेल एंड रिटेल प्राइज इंफॉर्मेशन सिस्टम यानी WPI के मुताबिक, मार्च 2012 के मुकाबले मार्च 2022 यानी 10 साल में इन सामानों की कीमतों में 68% की बढ़ोतरी हुई है।
वहीं कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स यानी CPI के अनुसार देश में एक परिवार द्वारा खाने वाले सामानों की कीमतों में जनवरी 2014 के मुकाबले मार्च 2022 में 70% की बढ़ोतरी हुई है। एक्सपर्ट इसके लिए ग्लोबल फैक्टर्स जैसे वस्तुओं (कृषि) की कीमतों में इजाफा, एनर्जी (तेल और गैस) की कीमतों में तेजी और अमेरिका के फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी और लॉकडाउन से सप्लाई चेन में समस्या को जिम्मेदार मानते हैं।

आखिर इन्फ्लेशन को मापते कैसे हैं?
इन्फ्लेशन यानी महंगाई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी की दर है। भारत में इसे साल दर साल के हिसाब से मापा जाता है। यानी एक महीने की कीमतों की तुलना पिछले साल के उसी महीने की कीमतों से की जाती है। इस दर से हम उस समय की अवधि में किसी स्थान पर रहने की लागत में वृद्धि का अनुमान लगा सकते हैं।
दुनियाभर की कई अर्थव्यवस्थाएं महंगाई को मापने के लिए WPI को अपना आधार मानती हैं। हालांकि भारत में ऐसा नहीं होता। हमारे देश में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई चेक करने का पैमाना माना जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक मानता है। WPI और CPI एक-दूसरे पर असर डालते हैं। इस तरह WPI बढ़ेगा, तो CPI भी बढ़ेगा।
होलसेल प्राइस इंडेक्स यानी WPI बाजार में सामान की औसत कीमतों में हुए बदलाव को मापता है। होलसेल बाजार का मतलब है, बड़ी मात्रा में सामान की खरीदारी, जो कारोबारी, खुदरा व्यापारी या कंपनियां करती हैं। इस इंडेक्स का मकसद बाजार में उत्पादों की गतिशीलता पर नजर रखना है, ताकि मांग और सप्लाई की स्थिति का पता चल सके।
इस इंडेक्स में सर्विस सेक्टर की कीमतें शामिल नहीं होतीं, ना ही यह बाजार के उपभोक्ता मूल्य की स्थिति ही दिखाता है। पहले WPI मापने का बेस ईयर 2004-2005 था। हालांकि अप्रैल 2017 में सरकार ने इसे बदलकर 2011-12 कर दिया। एक ग्राहक के तौर पर आप और हम होलसेल खरीदारी का हिस्सा नहीं होते। हम रिटेल बाजार से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम करता है कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI।
पिछले 8 साल में हर माह खाने वाली वस्तुओं की कीमतें 4.4% तक बढ़ीं
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2021 की तुलना में मार्च 2022 में खाद्य वस्तुओं की कीमतें 7.68% ज्यादा थीं। नवंबर 2020 के बाद से यह सबसे ज्यादा है। देखा जाए तो जनवरी 2014 और मार्च 2022 के बीच औसतन हर महीने में खाने वाली वस्तुओं की कीमतों में 4.483% की वृद्धि हुई है। इसका मतलब यह हुआ कि जनवरी 2014 में जिस सामान की कीमत 100 रुपए थी, उसकी कीमत अब 170 रुपए हो गई है।
क्या अप्रैल में यूक्रने पर रूस के हमले की वजह से महंगाई बढ़ी है?
यूक्रेन पर रूस के हमले से कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़े हैं। साथ ही अप्रैल में ज्यादा महंगाई का डाटा न तो चौंकाने वाला है ओर न ही अचानक हुई वृद्धि हुई है।
रिटेल इन्फ्लेशन अक्टूबर 2019 से लगातार बढ़ रही है। इस दौरान सिर्फ एक बार ही ऐसा हुआ है जब यह 4% पर आई हो। इसके अलावा हर महीने यह 4% से ज्यादा ही बल्कि लगतार 6% पर बनी हुई है। 2022 की शुरुआत से ही भारत में इन्फ्लेशन रेट 6% से ऊपर है यानी यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले ही।