स्कूल में लड़के मुझे जबरन अपनी गोद में बिठाते थे, अपना प्राइवेट पार्ट दिखाते थे; कहते थे- तू हिजड़ा है हिजड़ा
मैं किन्नर संजना सिंह, भोपाल की रहने वाली हूं। पढ़ी लिखी हूं, आत्मविश्वास से लबरेज हूं, लेकिन इसके बाद भी मेरे दामन से हिजड़ा होने का लांछन कभी नहीं छूटा। मेरा बचपन वैसा ही बीता जैसा किसी भी किन्नर बच्चे का बीतता है। पापा पुलिस में थे, मां हाउस वाइफ थीं। पांच भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थी। मैं पैदाइशी किन्नर थी, जिसे मेरे मां-बाप ने किन्नर समाज से छिपा कर रखा। मुझे लड़के की पहचान दी।
तो अब उसी पहचान के साथ आगे की कहानी बताती हूं यानी एक लड़के के रूप में…
जब मैं 7-8 साल का हुआ तो मेरे हाव-भाव लड़कियों जैसे झलकने लगे। हाथ हिला-हिला कर बात करता था। मुझे सजने-संवरने का शौक था। मां की साड़ी पहनकर डांस करने का शौक था। एक दफा मां की साड़ी पहनकर डांस कर रहा था। साउंड सिस्टम भी काफी तेज था। तभी पापा आ गए। बाप रे..। मुझे गिरा-गिरा कर मारा था उन्होंने। इतना मारा था कि मैं सिलाई मशीन के बीच जाकर फंस गया।
मेरे बाल पकड़कर वो मुझे बेरहमी से पीटा करते थे। कहते थे कि मेरा चाल-चलन ठीक नहीं है। मैं उनकी इज्जत नीलाम करने आया हुआ हूं। पिटाई के बाद एक कमरे में खुद को बंद करके खूब रोया करता था। जब कभी बाहर से घर आने में जरा सी भी देर होती तो घर में हंगामा मच जाता था। मुझे कुछ समझ नहीं आता था कि आखिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
स्कूल में भी मुझे बहुत प्रताड़ित किया जाता था। लड़के हमेशा मुझसे कहते कि हिजड़ा है हिजड़ा…। एक दफा हमारा रिजल्ट आया। रिजल्ट वाली शीट पर मेरा नाम संजू लिखा था, मैंने उसे काट कर अपना नाम संजना कर दिया, जिस पर मेरी टीचर ने मुझे बहुत बेइज्जत किया।
जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरे अंदर लड़कियों जैसी हरकतें और आदतें देखने को मिलने लगीं। आस पड़ोस के लोग तो समझ चुके थे। वो लोग मेरे माता-पिता को बोलते थे कि इसे छिपा कर रखो, किन्नर उठाकर ले जाएंगे। क्लास 9वीं तक ऐसा ही चलता रहा। मेरे परिवार ने सोचा कि इसे लड़कों वाले स्कूल में डाल देते हैं ताकि कम से कम कुछ तो लड़कों वाले गुण आएं, लेकिन वहां तो मेरी और दुर्गति हो गई।
वहां लड़के मुझे आंख मारते। मैं डर के मारे पीछे के टेबल पर बैठ जाता था। लड़के मुझसे बोलते कि अरे, आओ, मेरे साथ बैठो, यहां बैठो, मेरी गोद में बैठो। वे लोग मुझे अपने पास बिठाकर अपना प्राइवेट पार्ट दिखाते थे। यहां तक कि वॉशरूम में मेरे पीछे आ जाते थे और मेरी बाजू पकड़ कर यहां से वहां खींचते।
डर के मारे पागल हो चुका था। उधर घर में मेरी कोई सुनने वाला नहीं था। तंग आकर अपनी टीचर से इस बात की शिकायत की तो उल्टे टीचर ने मुझे ही जोर से डांट दिया कि तुम ऐसे लडकियों की तरह हरकत करोगे तो ऐसा ही होगा, अपनी आदतें सुधारो।
घर आकर मैं सोचता था कि मुझे यहां से चला जाना चाहिए। मेरे लिए यहां कोई जगह नहीं है। फिर एक दिन मैं घर से भाग गया। मैं मध्य प्रदेश के विदिशा में एक किन्नर डेरे में गया। वहां जाकर मैंने गुरु दीक्षा ली। यानी अब मैं किन्नर बन चुकी थी। मुझे मेरी असली पहचान मिल चुकी थी।
अब कहानी अपनी असली पहचान अपनाने के बाद की…. किन्नर बनने के बाद मैं किन्नरों की टोली के साथ बधाई देने जाने लगी। एक दिन मुझे पता लगा कि पापा की मौत हो गई है। मैं अपने घर गई। सब रिश्तेदार जा चुके थे। मेरा भाई मुझसे इतना झगड़ा, गंदी गालियां दी। यहां तक कि चाकू लेकर मेरी हत्या के लिए खड़ा हो गया।
उस दिन मैं गुस्से से भर गई और अपने भाई के सामने ताली बजाई। तब मां ने मेरा साथ नहीं दिया। वो बोली कि निकल जा यहां से। मां के मुंह से ऐसा सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई, खूब रोई। फिर अपना स्कूटर स्टार्ट किया और रेलवे क्रॉसिंग चली गई। तय कर लिया था कि अब मरना है। मरने से पहले मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया। उससे कहा कि मैं जान देने जा रही हूं, मेरी डेड बॉडी लेते जाना। उसने मुझे बहुत समझाया, बहुत रोका। बस एक वो लम्हा था कि मैं रुक गई और फिर वो लम्हा टल गया।
इसके बाद मैंने हमेशा के लिए घर छोड़ दिया और डेरे पर रहने लगी। मैंने प्राइवेट पढ़ाई शुरू की। 10वीं कर चुकी थी। 12वीं के लिए फॉर्म भर दिया। साल 2007 की बात है मुझे मेरे एक दोस्त ने कहा कि एक NGO में नौकरी है। दरअसल वो नौकरी ऐसी थी कि किन्नर समाज में HIV के लिए जागरुकता अभियान चलाना था, जिसके लिए पढ़े-लिखे किन्नर की जरूरत थी।
मेरा इंटरव्यू हुआ और सिलेक्शन भी हो गया। मैंने अपने डेरे के गुरु से परमिशन ली तो उन्होंने मुझे साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि ऐसे तो हर किन्नर कहेगा कि उसे नौकरी करनी है और सब नौकरी करेंगे तो बधाई पर कौन जाएगा, पैसा कहां से आएगा?
मैंने उनसे वादा किया कि मैं अकेले किसी बधाई पर नहीं जाऊंगी। कभी जाना हुआ तो अपनी टोली के साथ जाऊंगी। किन्नर समाज की सारी गोपनीयता को गोपनीय ही रखूंगी। मिन्नत करने पर आखिरकार गुरु हाजी सुरैय्या नायक बहुत सारी शर्तों के साथ मान गईं। मेरे अंदर एक आग थी कि मेरे जिस किन्नर होने की वजह से मेरे परिवार ने मुझे ठुकराया, बेइज्जत किया उस परिवार के लिए मैं मिसाल बनूंगी।
मैं NGO में LGBT ग्रुप और किन्नर समाज में HIV को लेकर काम करने लगी। हालांकि वहां मेरे काम करने का अनुभव खराब रहा। मैं जब भी कभी लंच टाइम में चाय पीने के लिए जाती थी तो मेरे ही कलीग बगल में बैठकर मुंह छिपा कर हंसते रहते थे, ताली बजाते थे। कान में खुसफुस करके जोर से ठहाका लगाते थे। मुझे बहुत खराब लगता था। मैं कई दफा रोने लगती थी। एक रोज मैंने डायरेक्टर से कहा कि मैं नौकरी नहीं कर पाऊंगी। मेरे डायरेक्टर ने मुझसे कहा कि हाथी चले बाजार, कुत्ते भौंके हजार..। खैर मैं 15-20 दिन छुट्टी पर रही। इसके बाद मैंने वापस पूरी हिम्मत के साथ ऑफिस जॉइन किया।
ऐसे ही एक दिन मैं अपनी एक दोस्त के साथ भोपाल के चिनार पार्क के आसपास घूम रही थी। एक पुलिस वाला आया और बोलने लगा कि भागो यहां से, तुम्हारी वजह से यहां माहौल खराब हो रहा है। पुलिस वाले तो ऐसे व्यवहार करते हैं कि जैसे हम जानवर हैं। फिर 2009 में मैंने किन्नरों के लिए काम करने के लिए अपनी संस्था बना ली। मेरी संस्था इस मुद्दे पर काम करने वाली मध्यप्रदेश की पहली संस्था थी।
मेरे प्रोजेक्ट्स में डेरे से लोग आने लगे। मेरे काम को सराहने लगे। धीरे-धीरे मेरी शोहरत बढ़ने लगी। साल 2016 में मुझे मध्यप्रदेश सरकार ने स्वच्छता अभियान का ब्रांड अंबेस्डर बनाया। सरकार का इसके पीछे मानना था कि किन्नर औरतों और मर्दों से बराबर बात करते हैं और दोनों ही उनकी बात को ध्यान से सुनते हैं। इस अभियान के तहत मुझे अभिताभ बच्चन के साथ मंच सांझा करने का मौका मिला।
हम लोग गाना गाकर स्वच्छता के बारे में बताते थे। केंद्र सरकार ने मेरे गीत को अपने विभाग की किताब में शामिल किया। मैं मध्य प्रदेश की पहली किन्नर बनी जिसे जिला विधि सेवा प्राधिकरण में पैरा लीगल वॉलिंटियर के तौर पर नियुक्त किया गया। जब मैं कोर्ट जाती थी तो देखती और सुनती थी कि पढ़े-लिखे वकील कानाफूसी करते थे कि अब हिजड़े कोर्ट चलाएंगे।
दो साल पहले मैंने अपना समाज छोड़कर एक सोसाइटी में घर लेने का मन बनाया। हमें कोई घर नहीं देता है। मुझसे इतने सवाल-जवाब किए गए कि मैं बता नहीं सकती। फिर भोपाल की एक भली महिला ने मुझे कोविड के दौरान अपना एक फ्लैट किराए पर दिया। मैं यहां दो साल से रह रही हूं। आसपास के लोग मुझसे बात नहीं करते हैं। अपने बच्चों को मुझसे दूर रखते हैं। उन्हें लगता है कि मैं कोई जादू टोना कर दूंगी। मुसीबत होने पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आता है।
किन्नर होने का दाग धुलता नहीं। अब समझ में भी आता है कि हमारे समाज के लोग क्यों अपने समाज में रहते हैं। जब लोग किसी को भी बोलते हैं न कि हिजड़ा है क्या तू..यानी तू शून्य है, तेरी कोई हैसियत नहीं है। तो मुझे लगता है कि मैं उन लोगों से कहूं कि जो काम औरत और मर्द नहीं कर सकते हैं, वे काम किन्नर करते हैं, क्योंकि हम औरत और मर्द दो तत्वों से बने हैं। हमें मौका तो मिले। जहां हमें मौका मिला, हमने अच्छा किया।
अभी केंद्र सरकार की योजना के तहत मैं किन्नरों को पहचान पत्र दिलाने को लेकर काम कर रही हूं। युवा किन्नरों की पढ़ाई लिखाई पर काम कर रही हूं। मुझ पर फिल्म बन रही है। मैंने देश की बड़ी हस्तियों के साथ काम किया, मंच साझा किया, लेकिन हिजड़ा होने के दंश को हमेशा झेला है।