ग्वालियर : निगम अफसरों की लापरवाही ?
इसकी 2 वजह:
- प्रदूषण बोर्ड से नहीं मिली एनओसी
- पेट्रोलियम एक्सप्लोसिव सिक्योरिटी ऑर्गनाइजेशन से लाइसेंस नहीं
शहर के लाल टिपारा स्थित प्रदेश के पहले गोबर आधारित बायो सीएनजी प्लांट में 73 दिन बाद भी क्षमता से सिर्फ 50% ही उत्पादन हो रहा है। उसे भी निगम अफसरों की लापरवाही के कारण जलाकर नष्ट करना पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि अभी तक न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी मिली है और न ही पेट्रोलियम एक्सप्लोसिव सिक्योरिटी ऑर्गनाइजेशन से लाइसेंस मिल पाया है। जिससे वाहनों में प्लांट से गैस नहीं भर पा रही है।
इस प्लांट का 2 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअली उद्घाटन किया था। तब दावा किया गया कि प्लांट प्रतिदिन 2 से 2.5 टन गैस का उत्पादन करेगा, लेकिन सिर्फ 40-50% उत्पादन हो रहा है। इसकी वजह डेयरियों से गोबर और सब्जी-फल मंडियों का कचरा प्लांट तक न पहुंचा पाना है। पहला प्लांट सफल नहीं हो पाया उधर निगम अफसरों ने ~84.59 करोड़ की लागत से नए कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट का प्लान बना लिया है।
फैक्ट फाइल
- गोबर उठाने के लिए वाहन- 17 ट्रैक्टर-ट्राली इन पर 2-2 कर्मचारी तैनात हैं।
- निगम में कुल: 83 सीएनजी वाहन
- सीएनजी की खरीद पर खर्च- 11 लाख रु. प्रतिमाह
- शहर में डेयरी- 2300 से अधिक
- बायो सीएनजी प्लांट क्षमता- 100 टन गैस
73 दिन बाद भी निगम सब्जी मंडी व भैंस डेयरियों से पूरा नहीं उठवा पा रहा गोबर-कचरा
गोबर और कचरे का प्रबंधन फेल: शहर में 2300 से ज्यादा भैंस डेयरियां और 10 सब्जी-फल मंडियां हैं। नगर निगम के मुताबिक, डेयरियों से रोजाना 30-35 टन गोबर और मंडियों से 20 टन गीला कचरा मिल सकता है। लेकिन 17 ट्रैक्टर-ट्रालियां होने के बावजूद निगम औसतन केवल 1.5 टन गोबर प्लांट तक पहुंचा पा रहा है। सब्जी-फल मंडियों से निकलने वाला कचरा लैंडफिल साइट पर फेंका जा रहा है, जिससे बदबू फैल रही है। डेयरी संचालक गोबर नालों और सीवर लाइनों में बहा रहे हैं, जिससे सीवर जाम की समस्याएं बढ़ रही हैं।
हर महीने बाजार से खरीद रहे 11 लाख की सीएनजी: नगर निगम के पास कचरा उठाने के लिए 25 डोर-टू-डोर सीएनजी 83 वाहन हैं। इनको चलाने के लिए हर महीने 11 लाख रुपए की बायो सीएनजी निजी पंप से नगर निगम भरवाता है। उक्त प्लांट बनने से निगम के अफसर उम्मीद जता रहे थे कि खर्चा बचेगा। दो महीने में एक भी वाहन में सीएनजी नहीं भर पाई। क्योंकि निगम को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एक सटिर्फिकेट नहीं मिला है।
दोनों प्लांट पर खर्च राशि और क्षमता
बायो सीएनसी प्लाट: इंडियन आयल कार्पोरेशन ने ~31 करोड़ से 100 टन क्षमता का बायो सीएनजी प्लांट बनाया है। निगम 80 टन गोबर व 20 टन कचरा नहीं जुट पा रहा। गौशालाओं से 20-25 टन गोबर मिल रहा है, जिससे प्रतिदिन 2 से 2.5 टन गैस बनाने का दावा अधूरा है।
कंप्रेस्ड बायो गैस बिथ सॉलिड वेस्ट प्रोसेसिंग: निगम 84.50 करोड़ रुपए की लागत से नया कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट लगा रहा है। यह 336 टन कचरे से प्रतिदिन 5 से 7 टन गैस बनाएगा। इसमें एमआरएफ और आरडीएफ प्लांट से 277 टीपीडी कचरे का उपयोग होगा।
हां, नया प्लांट बना रहे हैं, ये भविष्य की जरूरत है
शहर दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में भविष्य में कचरा ज्यादा निकलेगा। उसे ध्यान में रखकर नया कंप्रेस्ड बायो गैस बिथ सॉलिड वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट बनाने की योजना है। इसकी डीपीआर मुख्यालय भोपाल पहुंचा दी है। अभी गोबर और सब्जी के कचरे से संचालित बायो सीएनजी प्लांट के लिए 21 नए टिपर खरादे जा रहे हैं। उनके माध्मय से मंडियों से कचरा लेंगे। गोबर उठाने के लिए वाहन संचालित है। वर्तमान में बायो गैस बनना शुरू हो चुकी है। बायो गैस के उपयोग के लिए पेशो से प्रमाण-पत्र मांगा है। इसके बाद उसका होगा। -अमन वैष्णव, आयुक्त ननि ग्वालियर