अकेलापन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय ?
अकेलापन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय, इससे निपटने के लिए क्या कर रहा है विश्व स्वास्थ्य संगठन
अकेलापन वह एहसास है जब कोई व्यक्ति खुद को दूसरों से अलग महसूस करता है, और उसे लगता है कि उसके पास समझने या सहारा देने वाला कोई नहीं है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अकेलेपन को एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या माना है, जो दुनियाभर में एक चौथाई आबादी को प्रभावित कर रही है. इसका मतलब है कि वर्तमान में दुनिया के लगभग 25% लोग अकेलेपन का सामना कर रहे हैं. यह अकेलापन समय के साथ गंभीर शारीरिक और मानसिक बीमारियों का कारण बन सकता है. हालांकि, इसे ठीक से मापने का कोई सामान्य तरीका नहीं है, इसलिए इसकी गंभीरता को समझना और तुलना करना मुश्किल है.
भारत जैसे देशों में अकेलेपन का मुद्दा और भी जटिल हो सकता है, क्योंकि यहां बुजुर्गों के अलावा, युवा भी अकेलेपन का सामना कर रहे हैं, और इसके बारे में कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. शोध बताते हैं कि अकेलापन सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह युवा पीढ़ी को भी तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है. कोविड-19 महामारी के दौरान तो यह समस्या और भी बढ़ गई, क्योंकि लोग एक-दूसरे से दूर रहने लगे थे.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि दुनिया की एक चौथाई आबादी क्यों हो रही है अकेलेपन का शिकार और इससे निपटने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या कर रहा है?
सबसे पहले समझिये क्या होता है अकेलापन
अकेलापन वह एहसास है जब कोई व्यक्ति खुद को दूसरों से अलग महसूस करता है, और उसे लगता है कि उसके पास समझने या सहारा देने वाला कोई नहीं है. यह जरूरी नहीं कि शारीरिक रूप से अकेला होना ही अकेलापन हो, बल्कि कभी-कभी हम दूसरों के बीच होते हुए भी मानसिक रूप से अकेला महसूस कर सकते हैं. अकेलापन तब होता है जब हमें अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए किसी का साथ नहीं मिलता, या जब हमें लगता है कि हमारे रिश्ते नहीं हैं या बहुत कमजोर हैं.
अकेलापन क्यों है दुनिया के लिए बड़ी समस्या
मानसिक स्वास्थ्य पर असर: अकेलापन मानसिक परेशानियों जैसे कि डिप्रेशन, चिंता (एंग्जायटी) और तनाव (स्ट्रेस) को बढ़ा सकता है. यह व्यक्ति को उदासी, अवसाद और निराशा का अनुभव करा सकता है.
शारीरिक स्वास्थ्य पर असर: शोध से पता चला है कि लंबे समय तक अकेला महसूस करने से दिल की बीमारियां, उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), और इम्यून सिस्टम की कमजोरी जैसी शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं.
सामाजिक और भावनात्मक असर: जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक अकेलापन महसूस करता है, तो वह अपने आसपास के लोगों से जुड़ने में असमर्थ महसूस करता है, जिससे उसके रिश्ते और सामाजिक नेटवर्क भी कमजोर हो सकते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाये हैं
डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने नवंबर 2023 में अकेलेपन को गंभीर स्वास्थ्य खतरा मानते हुए सामाजिक संपर्क पर एक नया आयोग बनाने का ऐलान किया. इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि अकेलेपन और सामाजिक अलगाव को कम करने के लिए विश्वभर में क्या कदम उठाए जा सकते हैं, और यह सुनिश्चित किया जाए कि लोग एक-दूसरे से जुड़े रहें.
यह आयोग अकेलेपन की समस्या को समझने, सामाजिक संपर्क बढ़ाने और लोगों की मानसिक-शारीरिक सेहत सुधारने के लिए रणनीतियां तैयार करेगा. इसके अलावा, अकेलेपन की माप के लिए एक वैश्विक सूचकांक (global index) बनाने पर भी काम हो रहा है, ताकि अकेलेपन की गंभीरता को अलग-अलग देशों में माप सके और उसे बेहतर तरीके से समझा जा सके.
किन देशो में सबसे ज्यादा अकेलापन के शिकार हो रहे हैं लोग
जापान- जापान में अकेलेपन की समस्या खासकर वृद्ध लोगों में अधिक देखी जाती है. समाज में बदलते पारिवारिक ढांचे और शहरीकरण के चलते लोग कम सामाजिक संपर्क में रहते हैं. COVID-19 महामारी ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया. अकेलेपन से जुड़े सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए जापान ने 2021 में एक “मिनिस्टर ऑफ लॉनलीनेस” नियुक्त किया था.
संयुक्त राज्य अमेरिका – अमेरिका में लगभग 52% लोग अकेलापन महसूस करते हैं. खासकर युवा पीढ़ी और वृद्ध लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं. सामाजिक संपर्क में कमी, डिजिटल तकनीक के बढ़ते उपयोग, और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता इसके मुख्य कारण हैं. यहां अकेलेपन को “सार्वजनिक स्वास्थ्य महामारी” के रूप में देखा जा रहा है.
ब्रिटेन (UK)- ब्रिटेन ने भी अकेलेपन की समस्या को गंभीरता से लिया है. 2018 में यहां “मिनिस्टर ऑफ लॉनलीनेस” की नियुक्ति की गई थी. बुजुर्गों और अकेले रहने वाले लोगों के बीच यह समस्या अधिक प्रचलित है. समुदाय आधारित कार्यक्रमों के जरिये इसे हल करने का प्रयास किया जा रहा है.
स्वीडन- स्वीडन में अकेलेपन की समस्या अपेक्षाकृत अधिक है, खासकर वहां की स्वतंत्र जीवनशैली और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के चलते. हालांकि स्वीडन में सामाजिक सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत हैं, लेकिन अकेलापन एक चुनौती बनी हुई है.
दक्षिण कोरिया- यहां युवा पीढ़ी के बीच अकेलेपन की समस्या तेजी से बढ़ रही है. शिक्षा और करियर की अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, सामाजिक अलगाव, और परिवार के साथ समय की कमी इसके प्रमुख कारण हैं. दक्षिण कोरिया में “हिकिकोमोरी” जैसी स्थिति देखने को मिलती है, जहां लोग पूरी तरह से समाज से कट जाते हैं.
अकेलेपन से निपटने के लिए इन देशों ने विभिन्न नीतियां और कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन यह समस्या अब भी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देना इस समस्या के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है.
क्या है भारत की स्थिति
भारत में अकेलेपन की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है, हालांकि इसे अभी भी पूरी तरह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है. भारत में युवा और बुजुर्ग दोनों ही अकेलेपन से प्रभावित हैं. कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने इसे और बढ़ा दिया है, खासकर शहरी इलाकों में रहने वाले और अकेले जीवन बिताने वाले लोगों के बीच.
भारत एक सामूहिक संस्कृति वाला देश है, जहां सामाजिक जुड़ाव अधिक माना जाता है. इसके बावजूद, शिक्षा और रोजगार की तलाश में घर से दूर रहने वाले युवाओं के बीच अकेलापन ज्यादा देखा जा रहा है . अकेलापन मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ हृदय रोग और जीवनकाल की कमी जैसे शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं से भी जुड़ा है। इसे 15 सिगरेट प्रतिदिन पीने जितना हानिकारक माना गया है.