खाली कुर्सी, रूठते नेता, दौड़ती राजनीति ?

खाली कुर्सी, रूठते नेता, दौड़ती राजनीति

महाराष्ट्र में धूम मची है। एक तरह से लूट मची है। कुर्सी की। सत्ता की। मोटे-मोटे मंत्रालयों की। कोई कुर्सी छोड़ना नहीं चाहता। कोई अपना चहेता मंत्रालय किसी और को देना नहीं चाहता। चुनाव परिणाम आए ग्यारह दिन बीत चुके लेकिन कुछ भी तय नहीं हो पा रहा है।

कुर्सी अपने नेता की बाट जोह रही है। कोई दूसरा पक्ष जीत गया होता तो 26 नवंबर लास्ट डेट का वास्ता देकर अब तक राष्ट्रपति शासन लग चुका होता। लोग तो यहां तक कहते सुने गए हैं कि 20 नवंबर को मतदान के बाद 23 को रिजल्ट की तारीख तय ही इसलिए की गई थी ताकि कुछ भी ऊपर-नीचे हुआ तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सके।

खैर, ये सब बातें हैं, इनका कोई न तो सबूत है और न ही ठिकाना। फिलहाल नेता यानी मुख्यमंत्री तय करने में महायुति को पसीने आ रहे हैं। सुना है- एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम खुद नहीं बनना चाहते लेकिन यह पद अपने खेमे में रखने के साथ गृह मंत्रालय पर भी अपना कब्जा चाहते हैं।

देवेंद्र फडणवीस किसी हाल में गृह मंत्रालय छोड़ना नहीं चाहते। बेशक, उन्हें मुख्यमंत्री पद भी चाहिए। होड़ में सबसे आगे वे ही चल रहे हैं। अब चौंकाने वाली मोदी-परम्परा के तहत कल को कोई और नाम सामने आ जाए तो कोई हैरत नहीं होगी। वैसे तो शिंदे और फडणवीस एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते लेकिन सत्ता वो मजबूरी है जो दोस्तों को दुश्मन और दुश्मनों को दोस्त बनाने में पल भर भी देर नहीं लगाती।

ये बात और है कि मराठवाड़ा और मुंबई से दिल्ली तक भाजपा के खुद के खेमे में भी लोगों की पसंद-नापसंद अलग है। कोई किसी के पक्ष में है तो कोई किसी के खिलाफ। कहने को तो महाराष्ट्र में सीटों का गणित एकदम साफ है। भाजपा के सामने अड़ने की क्षमता उसके दोनों ही सहयोगी पूरी तरह खो चुके हैं।

अजित पवार बाहर भी हो जाएं तो शिंदे और भाजपा मिलकर आराम से सरकार चला सकते हैं। इसी तरह शिंदे अगर बाहर हो जाएं तो भाजपा अजित पवार से काम चला सकती है।

मजबूरी यह है कि दोनों में से किसी एक का साथ छोड़कर भाजपा बाकी देश को यह राजनीतिक संदेश नहीं देना चाहती कि भाजपा अपने सहयोगियों को खा जाती है या उन्हें धोखा देती है। यही वजह है कि शिंदे को बार-बार मनाया जा रहा है और वे बार-बार मुंबई से सातारा जाकर अपना गुस्सा जाहिर करते फिर रहे हैं।

हालांकि भाजपा ने पिछले दिनों एक नायाब चाल चली। अजित पवार को अकेले बुलाकर बात कर ली। शिंदे सीधे हो गए। अगले ही दिन उनकी बिगड़ी हुई तबीयत ठीक हो गई और तुरंत सातारा से मुंबई दौड़े चले आए। इसके बाद भाजपा ने अगला पांसा फेंका। महाराष्ट्र के भाजपा अध्यक्ष ने शपथ समारोह की तारीख घोषित कर दी। 5 दिसंबर।

इस घोषणा का सीधा-सा संकेत यह है कि हम तो सरकार बनाएंगे, जिसको साथ आना हो आए, जिसको न आना हो, न आए।कहा जा रहा है कि भाजपा किसी ओबीसी चेहरे पर भी विचार कर रही है। अगर मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसा कोई प्रयोग किया गया तो निश्चित रूप से सरप्राइज ही सामने आएगा।

पर्यवेक्षक के रूप में निर्मला सीतारमण और विजय रूपाणी का नाम तय होने से यह बात तो साफ हो ही गई है कि नाम पूरी तरह फाइनल हो चुका है। इन पर्यवेक्षकों को वहां जाकर केवल पर्ची ही निकालनी है। संभवतया यह पर्ची 4 या 5 दिसंबर को तो निकल ही आएगी।

  • कहा जा रहा है भाजपा किसी ओबीसी चेहरे पर भी विचार कर रही है। अगर एमपी और राजस्थान जैसा कोई प्रयोग किया गया तो निश्चित रूप से सरप्राइज ही सामने आएगा। नाम फाइनल हो चुका है, पर्यवेक्षकों को पर्ची ही निकालनी है।

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