किस जंजाल में फंसा बसपा का हाथी ?
किस जंजाल में फंसा बसपा का हाथी, बार-बार क्यों रणनीति बदल रहीं मायावती?
मायावती अपनी राजनीति को लेकर किस हद तक उलझन में हैं उसका उदाहरण उपचुनाव को लेकर उनकी रणनीति भी है। बसपा कभी भी कोई उपचुनाव नहीं लड़ती थी। इसके पीछे मायावती तर्क देती थीं कि वह उपचुनाव में अपनी पार्टी की ऊर्जा बर्बाद नहीं करना चाहतीं लेकिन पहले उन्होंने हाल ही में नौ सीटों पर उपचुनाव लड़ा लेकिन परिणाम के बाद घोषणा की कि अब वह कोई उपचुनाव नहीं लड़ेंगी।।
- लगातार घटते जनाधार से परेशान मायावती बार-बार बदल रहीं रणनीति
- कभी बहुजन तो कभी सर्वजन की बात, मुस्लिमों पर भी दिख रही उलझन
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में हर चुनाव के बाद राजनीतिक विमर्श में यह प्रश्न राजनीतिक समीक्षकों के बीच उठता है कि अब बसपा का क्या? अब मायावती का अगला कदम क्या होगा? प्रश्न हर बार इसलिए भी अबूझा रहा जाता है, क्योंकि अब बसपा क्या करेगी? इसे लेकर खुद पार्टी प्रमुख मायावती भी उलझन में दिखती हैं।
बेअसर रही मुस्लिमों को रिझाने की चाल
अनुसूचित जाति वर्ग के बलबूते पार्टी खड़ी जरूर हुई, लेकिन अब बसपा का हाथी जातियों के जंजाल में ही छटपटा रहा है। हर चुनाव के बाद रणनीति बदलने वालीं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती बहुजन की रट छोड़ फिर सर्वजन जपने लगीं और लोकसभा चुनाव के बाद मुस्लिमों को आंख दिखाना बेअसर रहा तो फिर उन्हें लुभाने चल पड़ी हैं।
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चुनाव परिणाम से मायावती को संकेत
2014 में उसका वोट शेयर 19.77 प्रतिशत था, जो 2019 में सपा के साथ गठबंधन के सहारे 19.43 प्रतिशत तो 2024 में मात्र 9.27 प्रतिशत रह गया। विधानसभा में भी बसपा के पास सिर्फ एक सीट रह गई है। 2024 के चुनाव परिणाम ने मायावती को संकेत दिया कि मुस्लिम उनसे काफी दूरी बना चुके हैं।
कोर वोट को साधने की कवायद
चूंकि, मायावती ने अन्य विपक्षी दलों की तुलना में कहीं अधिक मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, इसलिए उन्होंने खुलकर नाराजगी जताई और कहा कि भविष्य में वह मुस्लिमों को टिकट देने पर विचार करेंगी। इसी तरह दलित वोट भाजपा के साथ ही सपा-कांग्रेस की ओर जाते देख सर्वजन की बात छोड़ अपने कोर वोट को साधने की कवायद में जुट गईं।
मुस्लिमों को साधने की रणनीति
मगर, नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में वह उलझन में दिखीं। मुस्लिमों को फिर रिझाने के प्रयास में नौ में से दो टिकट इस वर्ग को दिए। हालांकि, फिर उनके हाथ खाली रहे और अब बसपा प्रमुख ने फिर रणनीति बदलने की बात कही है।
अपनी मजबूती वाले अंचल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए दलित नेता चंद्रशेखर आजाद के उभार को देखते हुए न सिर्फ पुराने नेताओं की मान-मनौव्वल की तैयारी कर रही हैं, बल्कि बहुजन की बात छोड़ फिर ब्राह्मणों के साथ मुस्लिमों को साधने की रणनीति पर काम शुरू किया है।
अपनी मजबूती वाले अंचल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए दलित नेता चंद्रशेखर आजाद के उभार को देखते हुए न सिर्फ पुराने नेताओं की मान-मनौव्वल की तैयारी कर रही हैं, बल्कि बहुजन की बात छोड़ फिर ब्राह्मणों के साथ मुस्लिमों को साधने की रणनीति पर काम शुरू किया है।
हर जिले में कमेटी बनाकर इन वर्गों को साधने का जिम्मा पदाधिकारियों को दिया है। इस प्रश्न का उत्तर भविष्य में देगा कि दूसरे दलों में जाकर स्थापित हो चुके पुराने नेता अब बसपा में वापसी आखिर क्यों करेंगे?