क्यों पीछे खिसकता जा रहा है गोमुख पर्वत ?
क्यों पीछे खिसकता जा रहा है गोमुख पर्वत, कारण को लेकर क्या बोले वैज्ञानिक?
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मौजूद गोमुख पर्वत भागीरथी नदी से शुरू होता है. ये पर्वत हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल है. कहा जा रहा है कि गोमुख पर्वत लगातार पीछे खिसकता जा रहा है लेकिन इस पर्वत के पीछे खिसकने का क्या कारण है. जानिए इस पर वैज्ञानिक क्या कहते हैं.
Gomukh Parvat: उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले में गोमुख पर्वत (Gomukh Parvat) है. यहीं से भागीरथी नदी आरम्भ होती है, जो गंगा नदी की एक प्रमुख स्रोत धारा है. ये पर्वत 4,023 मीटर (13,200 फुट) पर स्थित है. ये पर्वत हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है. ये पर्वत हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल है.
दावा किया जाता है कि गोमुख पर्वत के ठीक पीछे वाले ग्लेशियर को भागीरथ पहाड़ कहते हैं. यहीं उन्होंने गंगा को धरती पर लाने से पहले भगवान शिव से उन्हें अपनी जटाओं में बांधने की आराधना की थी. इस पहाड़ में तीन चोटियां दिखती हैं, जिनके नाम ब्रह्मा, विष्णु और महेश है, जहां भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में बांधकर छोड़ा था. वो शिखर गोमुख से पीछे थे लेकिन आज हम बात गोमुख पर्वत की कर रहे हैं.
गोमुख पर्वत पर बहुत कुछ बदल गयाये पर्वत लगातार खिसकता जा रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार कितनी है. क्या इस पर्वत के लगातार खिसकने के पीछे साल 2013 की तबाही है या कारण कुछ और है. देहरादून में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान है. ये संस्थान पिछले कई सालों से हिमालय के ग्लेशियर की निगरानी कर रहा है. इसके वैज्ञानिक ग्लेशियर में आ रहे बदलावों पर भी काम करते हैं. जानकारों के मुताबिक साल 2013 में आई तबाही के बाद गोमुख पर्वत पर बहुत कुछ बदल गया है.
पर्वत के विलुप्त होने की बात खारिजसंस्थान के निदेशक डॉक्टर कलाचंद सैन ने बताया कि ऐसा क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग की वजह हो रहा है. साथ ही तापमान बढ़ने की वजह से भी पर्वत पीछे खिसक रहा है. उनके मुताबिक, पर्वत का मुंह 1935 में जहां था. आज वो उससे 15-20 मीटर पीछे खिसक गया है. हालांकि जानकारों ने पर्वत के विलुप्त हो जाने की बात को खारिज कर दिया. डॉक्टर कलाचंद सैन पर्वत के विलुप्त हो जाने की बात से इनकार करते हैं. वो कहते हैं कि जिन कारणों की वजह से पर्वत पीछे खिसक रहा है और इसके पीछे खिसकने का जो रेट है. उसे देखकर ये नहीं कहा जा सकता है कि ये पर्वत विलुप्त हो जाएगा