बच्चों में बढ़ते ScreenTime से डरी दुनिया ..कई देशों ने लगाई लगाम, भारत में क्या है स्थिति ?

पूरी दुनिया में बच्चों का स्क्रीनटाइम तेजी से बढ़ रहा है। बच्चे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। इससे न सिर्फ उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है बल्कि काम पर फोकस भी घट रहा है। दुनिया के कई देश बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर रोक लगाने की पहल कर रहे हैं। ऐसे में भारत की स्थिति क्या है जानिए

सोशल मीडिया का इस्तेमाल बच्चों के लिए घातक साबित हो रहा है …..
 नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए ऑस्ट्रेलियन सीनेट ने पिछले महीने एक बिल पारित किया है। अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में भी 14 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर सकते।
देर से ही सही, लेकिन दुनिया अब धीरे-धीरे सोशल मीडिया और इंटरनेट के दुष्परिणामों को लेकर सजग हो रही है। एक स्टडी के मुताबिक, भारत दुनिया का वह देश है, जहां बच्चों को सबसे कम उम्र में मोबाइल मिल जाता है।
सस्ते इंटरनेट का नतीजा ये है कि बच्चों के सबसे अधिक मोबाइल देखने के मामले में भी भारत दुनिया में चौथे नंबर पर आता है। लेकिन इस बढ़ते स्क्रीनटाइम ने दुनिया का कितना नुकसान किया है, इसका अंदाजा अभी भले ही न हो, लेकिन बहुत जल्द होगा।
आज हम समझने की कोशिश करेंगे कि बच्चों में स्क्रीन टाइम बढ़ने की क्या वजह है, इनके नुकसान क्या हैं और इसे कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?
क्या होता है स्क्रीन टाइम?
सबसे पहले तो ये समझ लीजिए कि स्क्रीन टाइम का मतलब क्या है? यहां स्क्रीन का मतलब मोबाइल और लैपटॉप जैसे डिवाइस से है और स्क्रीन टाइम से तात्पर्य उस समय से है, जिसे कोई व्यक्ति ऐसी स्क्रीन के सामने गुजारता है।बढ़ते स्क्रीन टाइम से परेशान विशेषज्ञ

एक सामान्य व्यक्ति अपनी स्क्रीन टाइम का अधिकतर हिस्सा सोशल मीडिया पर गुजारता है। आम तौर पर धारणा है कि सोशल मीडिया का मतलब सिर्फ व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम से है, मगर ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया में वो गेम भी शामिल हैं, जिन्हें आप दिन भर खेलते रहते हैं।
क्यों बढ़ रहा स्क्रीन टाइम?

  • कोरोना महामारी के वक्त लोगों ने अपना ज्यादातर समय घर पर बिताया। स्कूलों और ऑफिस में छुट्टी की वजह से लोग फोन और लैपटॉप की दुनिया के करीब होते चले गए। कुछ समय बाद ऑनलाइन क्लासेज और वर्क फ्रॉम होम का दौर शुरू हुआ।
  • जो लोग ऑफिस में 8 घंटे कंप्यूटर पर बिताते थे, वह वर्क फ्रॉम होम में औसतन 12 घंटे काम करने लगे। स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेज लगाईं, तो बच्चों की दोस्ती किताबों से ज्यादा मोबाइल और लैपटॉप से हो गई।
  • अब कोरोना खत्म हो गया है, स्कूल-ऑफिस सब ऑफलाइन हो गए हैं। लेकिन फोन की आदत अभी तक बनी हुई है। सुबह उठने से लेकर स्कूल जाने और स्कूल से आने से लेकर रात में सोने तक बच्चे फोन पर चिपके हुए हैं।

स्टडी में चौंकाने वाले आंकड़े

राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग की एक स्टडी में सामने आया कि भारत के करीब 24 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो सोने से पहले स्मार्टफोन देखते हैं। करीब 37 फीसदी बच्चे ऐसे भी हैं, तो स्क्रीनटाइम ज्यादा होने की वजह से किसी काम पर सही से फोकस नहीं कर पाते। 

बच्चे कर रहे सोशल मीडिया का इस्तेमाल 

ज्यादा स्क्रीनटाइम से क्या नुकसान?

वैसे तो ज्यादा स्क्रीनटाइम सभी के लिए हानिकारक है, लेकिन बच्चों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चों में ज्यादा स्क्रीन टाइम होने से नींद न आने, ड्राई आइज की समस्या हो रही है। बच्चों में किताब पढ़ने की आदत खत्म हो रही है। स्कूल में उनकी परफॉर्मेंस पर असर पड़ रहा है।
इतना ही नहीं, बच्चे अब बाहर जाकर खेलना या प्रकृति के साथ समय बिताना पसंद नहीं करते। किसी एक काम पर फोकस नहीं कर पाते। चिड़चिड़ापन और मोटापा बढ़ रहा है
कैसे रोकें बढ़ता स्क्रीन टाइम?
स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए आपको अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे। लेकिन सबसे पहले आपको ये समझना पड़ेगा कि बच्चों का स्क्रीन टाइम एक दिन में नहीं कम हो जाएगा। इसके लिए लगातार प्रयास करने होंगे। आप इन स्टेप्स को फॉलो कर सकते हैं:

  • बच्चों को कहने से पहले खुद स्क्रीन टाइम कम करें
  • घर में तय कर दें कि सोने से 1 घंटे पहले और उठने के 1 घंटे बाद तक कोई फोन नहीं देखेगा
  • छुट्टी के दिन बच्चों को कहीं घुमाने ले जाएं, जिससे उन्हें फोन इस्तेमाल करने का मौका न मिले
  • सप्ताह में एक दिन ‘नो डिजिटल डिवाइस डे’ के रूप में तय करें
  • बच्चों को सोशल मीडिया के नुकसान के बारे में बताएं
  • उनके साथ बैठकर बात करें और खेलें

भारत में सोशल मीडिया इस्तेमाल की स्थिति क्या?

वैसे तो भारत में सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर कोई खास कानून नहीं है। लेकिन 2023 में यहां डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट बनाया गया था, जिसमें 18 साल से कम उम्र के बच्चों का डाटा सुरक्षित करने के लिए माता-पिता की परमिशन अनिवार्य कर दी गई थी। 

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