प्रति 854 लोगों के लिए 1 डॉक्ट ?
प्रति 854 लोगों के लिए 1 डॉक्टर; भारत में स्वास्थ्य बीमा कवरेज और अस्पतालों की दुर्दशा पर रिपोर्ट
सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्थित स्थिति और गुणवत्ता की कमी के कारण लाखों भारतीयों को स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने में कठिनाई होती है.
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत चिंताजनक बनी हुई है. साल 1948 में इस देश के सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं थी, लेकिन इतने सालों बाद भी आज यहां सिर्फ 41% परिवारों के पास ही स्वास्थ्य बीमा है. इसका मतलब है कि आज भी देश के बहुत से लोग बीमा नहीं ले पाते है.
इसके अलावा, सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्थित स्थिति और गुणवत्ता की कमी के कारण भी लाखों भारतीयों को स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने में कठिनाई होती है. यह न केवल स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की कमजोरी को दर्शाता है, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक बड़ा संकट पैदा करता है जो सस्ती और विश्वसनीय चिकित्सा सेवाओं की तलाश में हैं.
भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?
भारत का स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र हाल के कुछ सालों में काफी तेजी से बढ़ा है और साल 2023 तक इसका मूल्य 372 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जिससे लगभग 7.5 मिलियन लोगों को रोजगार मिला है. इस क्षेत्र में टेलीमेडिसिन, स्वास्थ्य तकनीक और चिकित्सा पर्यटन, जैसे नई तकनीकों और सेवाओं का तेजी से विस्तार हुआ है. इसके अलावा ई-हेल्थ के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, और अनुमान है कि साल 2025 तक इन दोनों क्षेत्रों का बाजार 16 बिलियन डॉलर से ज्यादा का हो जाएगा.
भारत का अस्पताल बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है, जिसका अनुमानित मूल्य 2023 में 98.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. यह आंकड़ा अगले दस सालों में दोगुना होने की संभावना है. भारत में हर 854 लोगों के लिए केवल 1 डॉक्टर उपलब्ध है, जिसमें एलोपैथिक और आयुष दोनों तरह के चिकित्सक शामिल हैं, जिससे ये पता चलता है कि देश में चिकित्सकों की संख्या अब भी सीमित है.
इसके अलावा, मेडिकल टूरिज्म में भी भारत ने महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है. भारत अब एक वैश्विक स्वास्थ्य पर्यटन केंद्र बन चुका है, और 2024 में यह क्षेत्र 7.69 बिलियन डॉलर का योगदान देगा, जबकि 2029 तक यह आंकड़ा बढ़कर 14.31 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है.
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में विदेशी निवेश भी बढ़ रहा है. मार्च 2024 तक, भारत में फार्मास्यूटिकल्स और दवाओं में 22.57 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश हुआ है, जो इस क्षेत्र में वैश्विक विश्वास और विकास को दर्शाता है. इस प्रकार, भारत का स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र न केवल आंतरिक रूप से मजबूत हो रहा है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण वृद्धि की दिशा में बढ़ रहा है.
भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में बाधा डालने वाले मुद्दे क्या हैं?
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage – UHC) का मतलब है कि देश के सभी लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल मिल सके. सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में न केवल इलाज की उपलब्धता, बल्कि रोकथाम, स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, और अन्य निवारक उपायों पर भी जोर दिया जाता है.
हालांकि भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने में कई बड़ी चुनौतियां हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता पर असर डाल रही हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम खर्च करती है. भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 1.9% स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो दुनिया के सबसे बड़े देशों के मुकाबले बहुत कम है.
1. स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में क्षेत्रीय असमानताएं: स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में असमानता भी देश के लिए बड़ी समस्या हैं. भारत के शहरी इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की भारी कमी है. भारत के 70 प्रतिशत स्वास्थ्य पेशेवर शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जबकि 65 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, जिससे ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य देखभाल में बड़ी असमानता है.
2. गैर-संक्रामक रोगों का उच्च बोझ: भारत में गैर-संक्रामक बीमारियां जैसे मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर तेजी से बढ़ रही हैं, जो स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी दबाव डाल रही हैं. इन बीमारियों के इलाज के लिए ज्यादा खर्च और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जबकि स्वास्थ्य सेवाओं का ध्यान मुख्य रूप से संक्रामक बीमारियों पर केंद्रित है. इसके अलावा, वायु प्रदूषण, खराब स्वच्छता और कुपोषण जैसी समस्याएं भी स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ाती हैं.
3. सरकारी योजनाओं के प्रभावी ढंग से लागू नहीं होना: इसके अलावा देश में सरकारी योजनाओं के प्रभावी ढंग से लागू नहीं होने के कारण भी ये समस्या तेजी से बढ़ रही है. जैसे आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने का लक्ष्य था, लेकिन असमान कार्यान्वयन और जागरूकता की कमी के कारण कई लोग इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.
4. स्वास्थ्य बीमा की कमी: स्वास्थ्य बीमा की कमी भी एक और बड़ी बाधा है. भारत की 95% आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है, और अधिकांश लोग अपने इलाज के खर्चे अपनी जेब से भरते हैं. इससे गरीब लोग और भी ज्यादा कर्ज में डूब जाते हैं.
इसके अलावा, सरकार डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी पहुंच बहुत कम है, जिससे सूचना का सही तरीके से आदान-प्रदान नहीं हो पाता. भारत के सार्वजनिक अस्पतालों की स्थिति भी काफी खराब है और लोग निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं, जो महंगे होते हैं. इससे स्वास्थ्य सेवाओं की लागत बढ़ जाती है, और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य पूरा करना मुश्किल हो जाता है.
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में कैसे आ सकती है तेजी
भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) को तेज़ी से लागू करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं:
1. स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना: भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करना चाहिए. इससे स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियादी सुविधाओं को सुधारने, ज्यादा डॉक्टरों और कर्मचारियों की नियुक्ति और जरूरी दवाइयों की उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलेगी.
2. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारना: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और उप-केंद्रों को मजबूत करना ज़रूरी है. इन केंद्रों पर ज्यादा ध्यान देने से लोग शुरुआती स्तर पर बीमारियों का इलाज कर सकेंगे और बड़े अस्पतालों पर दबाव कम होगा. टेलीमेडिसिन जैसी सेवाओं को भी इन केंद्रों से जोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाई जा सकती है.
3. स्वास्थ्य बीमा को बढ़ावा देना: आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को और प्रभावी बनाना चाहिए ताकि सभी को सस्ती स्वास्थ्य बीमा सेवाएं मिल सकें. इससे गरीबों पर स्वास्थ्य खर्च का बोझ कम होगा.
4. स्वास्थ्य कर्मियों की कमी दूर करना: भारत में डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी है. इसके लिए उन्हें बेहतर कामकाजी स्थितियां, प्रशिक्षण और उच्च वेतन देने की जरूरत है, ताकि वे ग्रामीण इलाकों में भी काम करने के लिए प्रेरित हो सकें.
5. डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल बढ़ाना: आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के तहत, डिजिटल हेल्थ आईडी जैसी योजनाओं से मरीजों के रिकॉर्ड को व्यवस्थित किया जा सकता है. इससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार होगा, खासकर ग्रामीण इलाकों में.
6. स्वास्थ्य सेवाओं में निजी और सार्वजनिक साझेदारी: निजी अस्पतालों के साथ मिलकर सरकार बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बना सकते हैं. उदाहरण के लिए, राजस्थान की मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना में फार्मा कंपनियों के साथ साझेदारी की गई, ताकि वहां के लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराई जा सके.
7. क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना: कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है. इन राज्यों को प्रोत्साहित करके उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए धन और संसाधन दिए जा सकते हैं.
8. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार: मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ानी होगी. इसके लिए टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि लोग आसानी से मदद ले सकें.
9. पारंपरिक चिकित्सा का समावेश: आयुष (आयुर्वेद, योग, सिद्ध) जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भी आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ा जा सकता है, ताकि लोगों के पास इलाज के ज्यादा विकल्प हों.