चुनावी दस्तावेजों के निरीक्षण से जुड़ा नियम …. अब क्या नहीं होगा सार्वजनिक?

EC: केंद्र ने क्यों सीमित किया चुनावी दस्तावेजों के निरीक्षण से जुड़ा नियम, अब क्या नहीं होगा सार्वजनिक? जानें

चुनाव आयोग ने किन नियमों को बदला है और अब किन दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा? इसके अलावा इन नियमों को किस आधार पर बदला गया? सरकार ने चुनाव से जुड़े इन नियमों को बदलने का क्या हवाला दिया है? आइये जानते हैं…

केंद्र सरकार ने चुनाव के कई नियमों में बदलाव कर दिए हैं। निर्वाचन आयोग (ईसी) की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे गए ‘कागजात’ या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित करने के लिए चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया है। इसे लेकर अब विपक्षी दलों ने केंद्र पर हमला बोला है। जहां कांग्रेस ने चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को लेकर सवाल उठाया है, वहीं लेफ्ट से लेकर आम आदमी पार्टी ने भी केंद्र के इस फैसले को कठघरे में खड़ा कर दिया है। 

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद मामले में कई सवाल उठने लगे हैं। मसलन- आखिर चुनाव आयोग ने किन नियमों को बदला है और अब किन दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा? इसके अलावा इन नियमों को किस आधार पर बदला गया? सरकार ने चुनाव से जुड़े इन नियमों को बदलने का क्या हवाला दिया है? 
सरकार ने किन नियमों को बदला है और इसका क्या असर होने वाला है? 

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 अनुबंधों के मुताबिक, चुनाव से संबंधित सभी ‘कागजात’ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे जाएंगे। यानी ये सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध होंगे। अब केंद्र सरकार ने इस नियम में संशोधन किया है। इसके तहत अब नियम 93 की शब्दावली में ‘कागजातों’ के बाद ‘जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है’ शब्द जोड़े गए हैं।

चुनाव आयोग से मशवरे के बाद केंद्रीय कानून और विधि मंत्रालय की तरफ से किएगए बदलावों के बाद अब चुनाव संबंधी सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा। अब आम जनता सिर्फ उन्हीं चुनाव संबंधी दस्तावेजों को देख सकेगी, जिनका जिक्र चुनाव कराने से जुड़े नियमों में पहले से तय होगा। 

चूंकि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का जिक्र चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, इसलिए इन्हें सार्वजनिक निरीक्षण के लिए बरकरार रखा जाएगा। हालांकि, आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज चुनाव संचालन नियमों के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में यह दस्तावेज जनता की पहुंच से दूर हो जाएंगे। 

क्या है हरियाणा विधानसभा चुनाव से जुड़ा मामला, जिसके बाद नियमों में हुआ बदलाव?
1. वकील ने चुनाव आयोग से मांगी थे प्रक्रिया से जुड़े वीडियो-फुटेज
रिपोर्ट्स की मानें तो चुनाव आयोग का यह फैसला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के हाल ही में दिए गए एक फैसले के बाद आया है। दरअसल, 9 दिसंबर को हाईकोर्ट ने ईसी को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियां वकील महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। प्राचा ने चुनाव संचालन से संबंधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज और फॉर्म 17-सी की प्रतियों की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी।2. चुनाव आयोग ने हाईकोर्ट में किया था याचिका का विरोध
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में ही चुनाव आयोग ने वकील की इस याचिका का विरोध किया था। ईसी ने कहा था कि चूंकि महमूद प्राचा खुद अक्तूबर में हुए विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए उनकी तरफ से चुनाव से जुड़े इन दस्तावेजों की मांग नहीं की जा सकती। 

3. हाईकोर्ट ने दिया था दस्तावेज मुहैया कराने का निर्देश
चुनाव आयोग के तर्क के बावजूद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि वकील को सभी जरूरी दस्तावेज मुहैया कराए जाएं। इसके साथ ही फॉर्म 17सी के पार्ट-1 और पार्ट-2 की प्रतियां भी याचिकाकर्ता को छह हफ्ते के भीतर दी जाएं। कोर्ट ने प्राचा के उस तर्क को माना था, जिसमें कहा गया था कि चुनाव में उम्मीदवार को यह सब दस्तावेज मुफ्त में मुहैया कराए जाते हैं, लेकिन बाकी लोगों को यह डॉक्यूमेंट्स कुछ फीस लेने के बाद दिए जाने चाहिए। 

चुनाव संचालन नियमों में सार्वजनिक उपलब्धता के दायरे में क्या?

चुनाव आयोग का नियम 93 चुनाव संचालन से जुड़े दस्तावेजों को पेश करने से जुड़ा है। इसके तहत 

1. रिटर्निंग अफसर की कस्टडी में रखे गए दस्तावेज

  • बैलट पेपर से जुड़ी जानकारियां (वैध, अवैध या इस्तेमाल न हुए), प्रिंट की हुईं पेपर स्लिप्स। 
  • मतदाता सूची की चिह्नित प्रतियों से जुड़े दस्तावेजों और उनकी सामग्री
  • फॉर्म 17ए में मतदाताओं के रजिस्टर से जुड़े पैकेट्स
  • मतदाताओं के घोषणा और उनके हस्ताक्षर के साक्ष्यांकन से जुड़े पैकेट…

बिना सक्षम न्यायालय के आदेश के निरीक्षित नहीं होंगे या किसी भी व्यक्ति के सामने पेश नहीं किए जाएंगे। 

1(A). चुनाव अधिकारियों की निगरानी में रखी गईं ईवीएम-वीवीपैट और उनके डाटा की सुरक्षा को लेकर भी नियमों का जिक्र है। इसके तहत बिना सक्षम प्राधिकारी या कोर्ट के आदेश के बिना इन्हें निगरानी के लिए किसी भी व्यक्ति के सामने पेश नहीं किया जाएगा।

2. सक्षम प्राधिकारी या कोर्ट से आदेश मिलने और फीस के भुगतान के बाद चुनाव आयोग…

(a) अन्य सभी दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण की इजाजत दे सकता है, जो चुनाव से जुड़ी हैं।
(b) आवेदन मिलने पर इनकी प्रतियां मुहैया करा सकता है। 
 

केंद्र सरकार ने अब इसी नियम 2(a) की शब्दावली को बदल दिया है। अब इस नियम के आगे सरकार ने ‘जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है’ जोड़ा है। चुनाव से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस वाक्य के जुड़ने से सरकार ने संसदीय और विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया से जुड़े कई दस्तावेजों से आम जनता की पहुंच को रोक दिया है। 

गौरतलब है कि चुनाव आयोग से जुड़े इन नियमों में पहले भी कहीं सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग डाटा या चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी वीडियो रिकॉर्डिंग का जिक्र नहीं किया गया था। अब इस वाक्य को जोड़ने के बाद जनता की चुनावी दस्तावेजों तक पहुंच को पहले से बनाए नियमों तक ही सीमित कर दिया गया है।

 

सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण से हटाने की क्या वजह बताई

निर्वाचन आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने बताया, ‘‘चुनाव आचार संहिता के तहत मतदान केंद्रों की सीसीटीवी कवरेज और वेबकास्टिंग नहीं की जाती है, बल्कि यह निर्वाचन आयोग द्वारा समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए उठाए गए कदमों का परिणाम है।’’ निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने कहा कि मतदान केंद्रों के अंदर सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के दुरुपयोग से मतदान की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस फुटेज का इस्तेमाल एआई का उपयोग करके फर्जी विमर्श गढ़ने के लिए किया जा सकता है।

निर्वाचन आयोग के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘‘ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां नियमों का हवाला देते हुए ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए हैं। संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि केवल नियमों में उल्लेखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे और कोई अन्य दस्तावेज जिसका नियमों में कोई संदर्भ नहीं है, उसकी सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी।’’

ईसी के अधिकारी बोले- कोर्ट के आदेश के बाद मिल सकते हैं ये दस्तावेज
चुनाव आयोग से जुड़े एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘‘फुटेज सहित ऐसी सभी सामग्री उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध है। संशोधन के बाद भी यह उनके लिए उपलब्ध होगी। लेकिन अन्य लोग ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए हमेशा अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।’’ यानी कोर्ट के आदेश के बाद लोग इन रिकॉर्ड्स को हासिल कर सकेंगे।

विपक्ष ने क्या आरोप लगाए?

कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए नियम में बदलाव किए जाने को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा और कहा कि उसके इस कदम को जल्द ही कानूनी रूप से चुनौती दी जाएगी। पार्टी महासचिव जयराम ने यह सवाल भी किया कि आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है? रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “हाल के दिनों में भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा क्रियान्वित की जाने वाली चुनावी प्रक्रिया में तेज़ी से कम होती सत्यनिष्ठा से संबंधित हमारे दावों का जो सबसे स्पष्ट प्रमाण सामने आया है, वह यही है। “

उनके मुताबिक, पारदर्शिता और खुलापन भ्रष्टाचार और अनैतिक कार्यों को उजागर करने और उन्हें खत्म करने में सबसे अधिक मददगार होते हैं और जानकारी इस प्रक्रिया में विश्वास बहाल करती है। उन्होंने कहा, “पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस तर्क पर सहमति व्यक्त करते हुए निर्वाचन आयोग को सभी जानकारी साझा करने का निर्देश दिया। ऐसा जनता के साथ करना कानूनी रूप से आवश्यक भी है।” कांग्रेस महासचिव ने कहा कि निर्वाचन आयोग अदालती फैसले का अनुपालन करने के बजाय, कानून में संशोधन करने में ज़ल्दबाज़ी करता है।
 

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा, ‘‘मीडिया की खबरों से पता चलता है कि सरकार ने नए नियमों का मसौदा तैयार करते समय भारत के निर्वाचन आयोग के साथ परामर्श किया। हालांकि, आयोग की कथित सहमति से पहले राजनीतिक दलों के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया, जो वर्षों से स्थापित मिसालों के विपरीत है।’’ माकपा ने कहा, ‘‘सरकार का तर्क, जो चुनावी प्रक्रिया के संचालन पर याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाता है, भ्रामक है। यह दृष्टिकोण पूरी तरह से अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं में राजनीतिक दलों की भागीदारी को बाहर करता है।’’

माकपा ने कहा कि उसके अनुभव, विशेष रूप से त्रिपुरा में लोकसभा चुनाव के दौरान, ने दिखाया कि धांधली के आरोपों के कारण मतदान केंद्रों के भीतर वीडियोग्राफिक रिकॉर्ड की जांच की गई, जिसके परिणामस्वरूप अंततः दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग आधे मतदान केंद्रों में पुनर्मतदान की घोषणा की गई। उसने कहा, ‘‘इस युग में, जहां प्रौद्योगिकी चुनावी प्रक्रिया का अभिन्न अंग है, सरकार का यह कदम एक प्रतिगामी कदम है। इसलिए, माकपा पोलित ब्यूरो चुनाव संचालन नियमों में प्रस्तावित संशोधनों को तत्काल वापस लेने की मांग करता है।’’
 

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस मसले पर कहा, “इसका मतलब कुछ तो बड़ी गड़बड़ है।” वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद जवाहर सरकार ने पूछा कि आखिर मोदी सरकार क्या छिपा रही है? उन्होंने कहा कि आखिर सरकार ने जनता को चुनावी रिकॉर्ड और डाटा से जुड़े सवाल पूछने से रोकने के लिए चुनाव नियमों में बदलाव क्यों किया? मोदी सरकार इतनी डरी हुई है कि जैसे ही हाईकोर्ट ने इस मामले में दखल दिया, उसने अधिकार ही छीन लिए।

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