दुनिया में हो रही घटनाएं हमें कुछ जरूरी सबक सिखाती हैं

दुनिया में हो रही घटनाएं हमें कुछ जरूरी सबक सिखाती हैं

ईरान और इजराइल ने एक-दूसरे पर सीधे हमले किए, डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरी बार चुनाव जीता, नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आए, दक्षिण कोरिया लगभग मार्शल लॉ के अधीन आ गया, नासा के एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष में फंस गए, फ्रांस ने 12 महीनों में चार सरकारें देखीं, सीरिया में असद परिवार का 50 साल का राज खत्म हो गया, शेख हसीना ने बांग्लादेश से पलायन कर दिया और शी जिनपिंग को अपनी शक्ति की सीमाओं का सामना करना पड़ा।

बीते बरस इतने सारे नाटकीय क्षण एकसाथ घटे कि उनमें से किसी एक को सबसे विशिष्ट नहीं कहा जा सकता था। वर्ष की शुरुआत जापान में भूकम्प से हुई थी और यह वैश्विक राजनीति में भूकम्पीय-बदलावों के साथ जारी रहा। आप कह सकते हैं कि यह वह साल था, जब अराजकता को ही ‘न्यू-नॉर्मल’ मान लिया गया था।

युद्ध और सशस्त्र-संघर्ष इस अराजकता के सबसे बड़े कारण थे। पश्चिम-एशिया संघर्ष का विस्तार हुआ, जिसमें इजराइल ने गाजा से लेबनान, ईरान और अब यमन तक युद्ध को आगे बढ़ा दिया है। उसने हमास और हिजबुल्ला के शीर्ष नेतृत्व को खत्म कर दिया और अब हूतियों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है।

सीरिया में, बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल करने के बाद एक नया शासन स्थापित हुआ है। लाल सागर में लड़ाई के फैलने से वैश्विक शिपिंग बाधित हुई। अमेरिकी इजराइल को घातक हथियार देते रहे और गाजा में खाद्य-सहायता भी गिराते रहे। नेतन्याहू पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए।

सबक यह है कि राजनीति में मुंह देखकर तिलक किया जाता है, यह इस पर निर्भर है कि आप किसके मित्र हैं। लेकिन सभी दोस्त हमेशा साथ नहीं रहते। यूक्रेन से पूछिए। उसका समर्थन-आधार ध्रुवीय बर्फ से भी तेजी से पिघल रहा है। और उसका दुश्मन रूस- जिसने उसके पांचवें हिस्से पर कब्जा कर लिया है- शायद अंत में विजयी बनकर उभरे। यह युद्ध फरवरी 2022 से चल रहा है। लेकिन फ्रंटलाइन जस की तस बनी हुई है।

जल्द ही कीव को दी जाने वाली अमेरिकी सहायता भी बंद हो जाएगी। ट्रम्प युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं। यूरोप जेलेंस्की पर शांति-प्रयासों के लिए दबाव बना रहा है। यूरोप की दो सबसे बड़ी शक्तियां- जर्मनी और फ्रांस- आर्थिक मंदी और राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रही हैं। यूक्रेन की मदद करने का उनका अब इरादा नहीं। साथ ही, रूस की अर्थव्यवस्था ने जेलेंस्की के कुछ पश्चिमी मित्रों की अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर प्रदर्शन किया है। पुतिन न अलग-थलग पड़े, न ही पराजित हुए।

सबक यह है कि आधुनिक युद्धों में अगर आप पूरी तरह से सहयोगियों पर निर्भर हैं तो आप हमेशा उनकी बदलती प्राथमिकताओं के आसरे रहेंगे। ताइवान को इस पर ध्यान देना चाहिए। बीते साल दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ने वोट डाले। 70 से ज्यादा देशों में चुनाव हुए और ज्यादातर मामलों में मौजूदा सरकारें हार गईं।

ऐसे में, भारत में मोदी का तीसरा कार्यकाल चमत्कार जैसा है। पिछले कुछ साल पूरी दुनिया के लिए मुश्किल भरे रहे। पहले महामारी और फिर जीवन-यापन के संकट ने असर दिखाया। इसलिए जब लोग वोट डालने गए, तो उन्होंने हुकूमतों के प्रति नाराजी जताई।

राजनीतिक-विश्लेषकों ने ताज्जुब किया। लोकतंत्र को झटका लगने की बातें कही गईं। लेकिन सबक स्पष्ट था- अगर सरकार की नीतियां आम लोगों के जीवन में सुधार नहीं ला पाती हैं और रोजी-रोटी मुहैया नहीं करा पाती हैं तो जनता बाहर का रास्ता दिखा देगी।

अमेरिका में ट्रम्प पहले ही फुल फॉर्म में आ चुके हैं। वे कनाडा, ग्रीनलैंड और पनामा-नहर पर प्रभुत्व कायम करना चाहते हैं। वे पड़ोसियों, सहयोगियों और दुश्मनों पर टैरिफ लगाना चाहते हैं। वे ब्रिक्स देशों को दंडित करना चाहते हैं। वे क्रिप्टोकरेंसी का समर्थन करते हैं। वे सिलिकॉन वैली के प्रिय हैं लेकिन नाटो को नहीं सुहाते। इलोन मस्क के समर्थन से ट्रम्प अमेरिका और दुनिया को एक राजनीतिक रोलर-कोस्टर पर ले जाने के लिए तैयार हैं।

सबक यह है कि कभी किसी राजनेता को रद्द न करें। उनके पास वापसी करने का एक अवसर हमेशा रहता है। यह उचित ही था कि 2024 का अंत संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहली बार ‘विश्व ध्यान दिवस’ मनाने के साथ हुआ। यह भारत की ओर से दुनिया को दिया गया उपहार है।

ध्यान आंतरिक शांति और खुशहाली का शक्तिशाली साधन हो सकता है। जिस गति से हमारा जीवन अपनी धुरी से डिग रहा है, उसमें ध्यान जीवित रहने का एक कौशल भी है। अब जब आप 2025 में प्रवेश कर चुके हैं तो अपनी बुद्धि को एकाग्र करें और गहरी सांस लें। आप एक अराजक-वर्ष से सर्वाइव करने में सफल रहे हैं, आप इस साल भी कामयाब होंगे।

नया साल मुबारक! (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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