दिल्ली विधानसभा चुनाव का पूरा इतिहास ?

दिल्ली विधानसभा चुनाव का पूरा इतिहास: BJP के हाथ से होते हुए कांग्रेस और फिर आप का गढ़ कैसे बनी राजधानी, जानें
दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव का इतिहास क्या है? यहां अब तक किस-किस के नेतृत्व में सरकार बन चुकी हैं? भाजपा, कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी ने किस तरह दिल्ली की राजनीति में अपनी पैठ बनाई? इसके अलावा हर चुनाव में नतीजे क्या रहे हैं? आइये जानते हैं…

Delhi Assembly Election 2025 History of Capital Polls From BJP to Congress and AAP power Sheila Dixit Kejriwal

दिल्ली में विधानसभा चुनाव का इतिहास….
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान हो गया है। इसके लिए दिल्ली में तीन मुख्य पार्टियों- भाजपा, आप और कांग्रेस ने कमर कस ली है और मुद्दों से लेकर प्रत्याशियों तक पर मंथन जारी रखा है। 70 सीट वाली इस विधानसभा की अहमियत कितनी है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद राजधानी के कई बड़े मुद्दे यहां की स्थानीय सरकार के हिस्से में होते हैं। इसी ताकत के लिए राजनीतिक दल अपना जोर लगाने में जुटे रहते हैं। 

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव का इतिहास क्या है? यहां अब तक किस-किस के नेतृत्व में सरकार बन चुकी हैं? भाजपा, कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी ने किस तरह दिल्ली की राजनीति में अपनी पैठ बनाई? इसके अलावा हर चुनाव में नतीजे क्या रहे हैं? आइये जानते हैं…
विधानसभा कैसे मिली?
दिल्ली को विधानसभा कैसे मिली, इसकी कहानी 1952 से शुरू हुई। 1952 पार्ट-सी राज्य के रूप में दिल्ली को एक विधानसभा दी गई। 1956 में उस विधानसभा को भंग कर दिया गया। 1966 में दिल्ली को एक महानगर परिषद दी गई। 

दिल्ली राज्य विधानसभा 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम, 1951 के तहत अस्तित्व में आई। 1952 की विधानसभा में 48 सदस्य थे। मुख्य आयुक्त को उनके कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद का प्रावधान था, जिसके संबंध में राज्य विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति दी गई थी। 

राज्य पुनर्गठन आयोग (1955) की सिफारिशों के बाद दिल्ली 1 नवंबर 1956 से भाग-सी राज्य नहीं रही। दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत केंद्र शासित प्रदेश बन गया। दिल्ली में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और उत्तरदायी प्रशासन की मांग उठने लगी। इसके बाद दिल्ली प्रशासन अधिनियम, 1966 के तहत महानगर परिषद बनाई गई। यह एक सदनीय लोकतांत्रिक निकाय था जिसमें 56 निर्वाचित सदस्य और 5 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे।

इसके बाद भी विधानसभा की मांग उठती रही। 24 दिसंबर 1987 को भारत सरकार ने सरकारिया समिति (जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया) नियुक्त की। समिति ने 14 दिसंबर 1989 को अपनी रिपोर्ट पेश की और सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना रहना चाहिए, लेकिन आम आदमी से जुड़े मामलों से निपटने के लिए अच्छी शक्तियों के साथ एक विधानसभा दी जानी चाहिए। बालाकृष्णन समिति की सिफारिश के अनुसार, संसद ने संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 पारित किया, जिसने संविधान में नए अनुच्छेद 239AA और 239AB डाले, जो अन्य बातों के साथ-साथ दिल्ली के लिए एक विधानसभा की व्यवस्था करते हैं। लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मुद्दों पर विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं था। 1992 में परिसीमन के बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बाद दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा और मुख्यमंत्री मिला। 


 

2. 1952 के चुनावों में क्या हुआ?
27 मार्च 1952 को पहली बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में 5,21,766 मतदाता थे, जिनमें से 58.52% ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कांग्रेस को 48 में से 39 सीटों पर जीत मिली। जनसंघ को पांच, सोशलिस्ट पार्टी को दो और एक-एक सीट पर हिंदू महासभा और निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली। हालांकि, 1956 में विधानसभा को भंग कर दिया गया और 1992 में परिसीमन के बाद 1993 में दिल्ली विधानसभा फिर कराए गए। 
3. दिल्ली में अब तक सात बार चुनाव
दिल्ली में अब तक सात बार चुनाव हुए हैं। सबसे ज्यादा कांग्रेस ने चार बार, आप ने दो बार (एक बार कांग्रेस के साथ मिलकर) और भाजपा ने एक बार सरकार बनाई है। शीला दीक्षित तीन बार और अरविंद केजरीवाल तीन बार मुख्यमंत्री बने। 1993 के पहले चुनाव के बाद भाजपा कभी वापसी नहीं कर सकी। हालांकि हर चुनाव में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा सबसे बड़ा मुद्दा रहता है, लेकिन इस बार हालात और मुद्दे बदल गए हैं। इस बार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप शराब घोटाले से लेकर सीएम आवास पर घिरी है। वहीं भाजपा पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी कराने के आरोप लगे हैं।

4. 1993 में पहले चुनाव में क्या हुआ?1993 में नई गठित विधानसभा के लिए चुनाव हुआ जिसमें भाजपा ने बाजी मारी। 1991 के दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी अधिनियम के तहत विधानसभा बनी थी और पहला चुनाव हुआ। भाजपा के मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। वह मोतीनगर से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। इस चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीती थीं और उसे 42.80 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को 34.50 फीसदी और जनता दल को 12.60 फीसदी वोट मिले थे। खुराना 26 फरवरी 1996 तक ही मुख्यमंत्री रह सके। उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा सीएम बने। लेकिन चुनाव से पहले उनकी भी विदाई हो गई।  

5. 1998 चुनाव में भाजपा की हार
12 अक्तूबर 1998 को सुषमा स्वराज को सीएम बनाया गया। लेकिन प्याज के दामों ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। 1998 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत हासिल की। कांग्रेस को 52, भाजपा को 15, जनता दल को एक और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं। 
6. 2003 और 2008 में भी कांग्रेस 
इसके बाद 2003 और 2008 में भी शीला दीक्षित ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 2003 में कांग्रेस को 47 और भाजपा को 20 सीटें मिलीं। 2008 में भी भाजपा सत्ता से दूर रही। इस चुनाव में कांग्रेस को 43, भाजपा को 23 और बसपा को दो सीटें मिलीं। कांग्रेस ने इन दोनों चुनावों में अपने विकास कार्यों, मेट्रो प्रोजेक्ट और औद्योगिक क्षेत्र में मजदूर वर्ग को बढ़ावा देने के चलते जबरदस्त जीत हासिल हुई। 
 
Delhi Assembly Election 2025 History of Capital Polls From BJP to Congress and AAP power Sheila Dixit Kejriwal
दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित – फोटो : एएनआई
7. 2013 में कांग्रेस के हाथ से छिनी सत्ता, आप को मिला मौका
लेकिन 2008 की जीत के बाद कांग्रेस की दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही विवादों में घिर गईं। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों पर घिरने के बाद शीला दीक्षित की लोकप्रियता में खासी गिरावट देखी गई। इसमें एक बड़ी भूमिका अन्ना हजारे के जनलोकपाल कानून के लिए किए गए आंदोलन की भी रही। अरविंद केजरीवाल समेत उनकी आम आदमी पार्टी का उदय भी इसी आंदोलन के बाद हुआ था। नतीजतन नई नवेली आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से कई सीटें छीन लीं। 

नई नवेली आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन बहुमत से काफी दूर रही। 31 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। आप को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें ही मिलीं। आप ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन ये सरकार सिर्फ 49 दिन तक ही चल सकी। 

8. 2015 में केजरीवाल ने रचा इतिहास
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आप ने प्रचंड बहुमत हासिल कर नया इतिहास रचा। उसने 70 में से 67 सीटें जीतकर भाजपा-कांग्रेस का सूपड़ा पूरी तरह साफ कर दिया। 2013 में आप को 30 फीसदी वोट मिले थे जो 2015 में बढ़कर 54 फीसदी हो गया। अरविंद केजरीवाल दोबारा सीएम बने। 
9. 2020 में भी आप ने ही गाड़ा जीत का झंडा
2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की। पार्टी के वोट शेयर में 0.73 फीसदी की मामूली गिरावट दर्ज की गई। वहीं, भाजपा के वोट प्रतिशत 6.21 फीसदी का उछाल आया। हालांकि, इसके बावजूद भाजपा को सिर्फ 8 सीटें ही मिलीं। दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट प्रतिशत 4.26 फीसदी तक ही रहा। पार्टी ने 2013 और 2015 के बाद एक बार फिर वोट प्रतिशत में गिरावट दर्ज की। 2020 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 5.44 फीसदी और गिर गया। पार्टी को 2015 की तरह ही 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कोई सीट नहीं मिली।

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