नक्सलवाद का दायरा घट रहा है, पर खतरा अभी टला नहीं!

नक्सलवाद का दायरा घट रहा है, पर खतरा अभी टला नहीं! सरकार के सामने क्या है परेशानी?

नक्सली समस्या धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन वे अभी भी खतरनाक हैं. 2025 के पहले हफ्ते में ही 8 सुरक्षाकर्मी नक्सली हमले में शहीद हो गए हैं.

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले ने एक बार फिर देश को झकझोर कर रख दिया है. सोमवार (13 जनवरी) को नक्सलियों ने एक IED ब्लास्ट से सुरक्षा बलों की गाड़ी को उड़ा दिया. इस हमले में 8 जवान शहीद हो गए. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सचमुच नक्सलवाद का खतरा कम हो रहा है? या यह एक भ्रम है जो हमें सुरक्षा के झूठे एहसास में जीने पर मजबूर कर रहा है?

हालांकि पिछले कुछ सालों में नक्सलियों के खिलाफ कई सफल अभियान चलाए गए हैं और उनका प्रभाव क्षेत्र भी सिकुड़ा है, लेकिन यह हमला दिखाता है कि वे अभी भी घातक हैं और कभी भी वार कर सकते हैं. यह हमला सुरक्षाबलों और सरकार दोनों के लिए एक चेतावनी है. नक्सलवाद की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है.

बीजापुर हमला: डेढ़ साल में सबसे बड़ा नक्सली हमला
छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले होते रहते हैं लेकिन पिछले 600 दिनों में ऐसा कोई हमला नहीं हुआ था जिसमें एक साथ 8 या उससे ज्यादा जवान शहीद हुए हों. इससे पहले अप्रैल 2023 में दंतेवाड़ा में एक बम विस्फोट में 10 जवान और एक ड्राइवर शहीद हो गए थे. अप्रैल 2021 में सुकमा में एक मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हुए थे.

बीजापुर का यह हमला पिछले डेढ़ साल में हुआ सबसे बड़ा नक्सली हमला है. यह दिखाता है कि नक्सली अभी भी खतरनाक हैं और बड़े हमले करने की क्षमता रखते हैं. यह हमला सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.

नक्सलवाद का दायरा घट रहा है, पर खतरा अभी टला नहीं! सरकार के सामने क्या है परेशानी?

आखिर क्या है माओवाद?
माओवाद एक तरह का कम्युनिज्म है जिसे माओ त्से तुंग ने बनाया था. यह एक ऐसा विचार है जो हिंसा और लोगों को भड़काकर सरकार पर कब्जा करने की बात करता है. माओवादी मानते हैं कि सरकार को बदलने के लिए हिंसा जरूरी है. वे सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं. माओवादी लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काते हैं और उन्हें अपने साथ मिलाने की कोशिश करते हैं. यह एक खतरनाक विचारधारा है जो देश में अस्थिरता और हिंसा फैलाती है.

गृह मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, भारत में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक माओवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) है. यह संगठन कई छोटे-छोटे माओवादी समूहों के विलय से बना है. 2004 में दो सबसे बड़े माओवादी समूहों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वार और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया का विलय होकर यह संगठन बना था. 

भारत के कौन से राज्य नक्सलवाद से प्रभावित हैं?
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और इसके सभी सहयोगी संगठनों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है. भारत के कई राज्य नक्सलवाद से प्रभावित हैं- छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और केरल.

छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में नक्सलवाद का प्रभाव सबसे ज्यादा है. इन राज्यों में नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच अक्सर मुठभेड़ होती रहती है. सरकार नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में विकास कार्य कर रही है ताकि लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके. 

नक्सलियों ने कितने नागरिकों को मारा
गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2004 से 15 सितंबर 2024 तक नक्सलियों ने कुल 5496 नागरिकों की हत्या की है. साल 2010 में सबसे ज्यादा 720 नागरिक मारे गए थे. 2022 में सबसे कम 82 नागरिक मारे गए थे. 

पिछले कुछ सालों में नक्सलियों द्वारा मारे गए नागरिकों की संख्या में कमी आई है, लेकिन यह अभी भी चिंता का विषय है. 2004 से 2024 के बीच नक्सलियों ने हर साल औसतन 262 नागरिक मारे हैं.

नक्सलवाद का दायरा घट रहा है, पर खतरा अभी टला नहीं! सरकार के सामने क्या है परेशानी?

नक्सली आम लोगों को क्यों मारते हैं?
नक्सली असल में अपने विरोधियों को खत्म करना चाहते हैं. जो लोग नक्सलियों की विचारधारा का समर्थन नहीं करते, उन्हें वे ‘पुलिस मुखबिर’ बताकर मार देते हैं. नक्सली ग्रामीण इलाकों में डर फैलाकर और लोगों को मारकर अपना शासन चलाना चाहते हैं. नक्सली उन लोगों को भी मारते हैं जो हैसियत में उनसे ऊपर होते हैं. जैसे जमींदार और अमीर लोग. 

जब नक्सली किसी को मारते हैं तो उसके परिवार वाले बदला लेने की कोशिश कर सकते हैं. इससे हिंसा का चक्र शुरू हो जाता है, फिर और भी लोग मारे जाते हैं. कई बार नक्सली सिर्फ अपनी ताकत दिखाने के लिए भी लोगों को मार देते हैं.

नक्सली स्कूलों और दूसरी जरूरी जगह पर हमला क्यों करते हैं?
नक्सली नहीं चाहते कि लोग पढ़ें-लिखें और तरक्की करें. वे चाहते हैं कि लोग उनके कब्जे वाले इलाकों में ही रहें और बाहरी दुनिया से कटे रहें. नक्सली जानते हैं कि शिक्षा से लोग जागरूक होते हैं और अपने हक के लिए आवाज उठाते हैं. शिक्षा से बच्चों को नौकरी और रोजगार के नए मौके मिलते हैं, फिर वह लोग नक्सलियों के चंगुल से आजाद हो सकते हैं.

इसके अलावा, नक्सली सड़कें तोड़ देते हैं ताकि बाहरी लोग उनके इलाकों में न आ सकें और सरकार वहां विकास कार्य न कर सके. नक्सली मोबाइल टावर भी तोड़ देते हैं ताकि लोग बाहरी दुनिया से संपर्क न कर सकें और न ही पुलिस को उनकी जानकारी दे सकें.

क्या नक्सली हमलों में कमी आई?
पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ में नक्सली हमलों में काफी कमी आई है. 2010 से 15 सितंबर 2024 के बीच नक्सलियों ने भारत के इकॉनोमिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर कुल 1853 हमले किए. इसका मतलब है कि वे ऐसी चीजों को नष्ट करते हैं जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी होती हैं. आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट करके नक्सली सरकार को कमजोर करना चाहते हैं और यह दिखाना चाहते हैं कि सरकार लोगों की रक्षा नहीं कर सकती.

साल 2010 में सबसे ज्यादा 365 ऐसे हमले हुए थे. 2024 (15 सितंबर तक) में सबसे कम 21 हमले हुए हैं. पिछले कुछ सालों में नक्सलियों द्वारा किए गए हमलों की संख्या में काफी कमी आई है, जो एक अच्छी बात है. 2010 से 2024 के बीच नक्सलियों ने हर साल औसतन 143 हमले किए.

नक्सलवाद का दायरा घट रहा है, पर खतरा अभी टला नहीं! सरकार के सामने क्या है परेशानी?

ऐसे हमले जिनमें ज्यादा जवान शहीद होते थे, वे भी कम हो गए. अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा में 76 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. यह अभी तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला है. मार्च 2007 में एक पुलिस स्टेशन पर हमले में 50 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. हाल ही में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ अपने अभियान तेज कर दिए हैं. इससे कई नक्सली मारे गए हैं और उनका प्रभाव क्षेत्र भी कम हुआ है.

नक्सलियों लड़कियों की क्यों करते हैं भर्ती?
नक्सली छोटे बच्चों खासकर लड़कियों को अपने संगठन में भर्ती करते हैं और उन्हें हिंसा के लिए इस्तेमाल करते हैं. नक्सली अपने संगठन में बच्चों को भी शामिल करते हैं. वे छोटे बच्चों को अपनी विचारधारा की तरफ आकर्षित करते हैं और उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग देते हैं.

छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में नक्सलियों ने ‘बाल दस्ता’ बनाए हैं जिनमें छोटे बच्चे शामिल होते हैं. लड़कियों को ज्यादा भर्ती किया जाता है. ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को नक्सलियों के साथ नहीं भेजना चाहते. लेकिन नक्सली उन्हें धमकाते हैं और डराते हैं. इस डर से कई गरीब आदिवासी माता-पिता अपनी बेटियों को नक्सलियों के साथ भेज देते हैं.

नक्सली महिलाओं को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में सबसे आगे करते हैं. वे जानते हैं कि सुरक्षा बल महिलाओं पर गोली चलाने से हिचकिचाएंगे. हालांकि नक्सली पुरुष प्रधानता का विरोध करते हैं लेकिन उनके नेतृत्व में महिलाओं की संख्या बहुत कम है.

भारत सरकार की नक्सलवाद विरोधी नीति क्या है?
भारत सरकार ने नक्सलवाद से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना बनाई है. इसके तहत, सरकार नक्सलवाद खत्म करने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है. नक्सल प्रभावित राज्यों में काफी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं. इसके अलावा, राज्य सरकारें भी अपने सुरक्षा बलों को इन इलाकों में तैनात करती हैं.

सरकार की रणनीति नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा की कमी को पूरा करना है. इसके लिए, सुरक्षा बलों की तैनाती के साथ-साथ राज्य पुलिस को भी मजबूत बनाया जा रहा है. उनसे बेहतर तरीके से लड़ने के लिए राज्य पुलिस को हथियार, प्रशिक्षण और अन्य संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं. 

नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क, बिजली, स्कूल, अस्पताल और रोजगार जैसी जरूरी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं, ताकि लोगों का जीवन स्तर बेहतर हो सके और वे नक्सलवाद से दूर रहें. नक्सलवाद के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि लोग नक्सलियों के बहकावे में न आएं. 

नक्सलवाद से निपटने में सरकार के सामने क्या चुनौतियां हैं?
नक्सलवाद देश के लिए एक बड़ी चुनौती है. सरकार को इससे निपटने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. शुरू में नक्सलवाद को एक गंभीर समस्या नहीं माना जाता था. इस वजह से नक्सली कई इलाकों में फैल गए और अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. नक्सली अक्सर ऐसे इलाकों में छिपे रहते हैं जहां पहुंचना मुश्किल होता है. इससे सुरक्षा बलों के लिए उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है.

नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारी स्कूल, अस्पताल और अन्य सुविधाएं कम होती हैं. इससे लोगों का सरकार से भरोसा उठ जाता है और वे नक्सलियों की तरफ आकर्षित होते हैं. नक्सली अपने कब्जे वाले इलाकों में अपना खुद का शासन चलाते हैं और लोगों से टैक्स भी वसूलते हैं. इससे सरकार का प्रभाव कम हो जाता है.

नक्सलवाद का दायरा घट रहा है, पर खतरा अभी टला नहीं! सरकार के सामने क्या है परेशानी?

एक आम नागरिक नक्सलवाद के खिलाफ क्या कर सकता है?
एक आम नागरिक भी इस चुनौती से लड़ने में अपना योगदान दे सकता है. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सली बेगुनाह लोगों पर अत्याचार करते हैं. आप सोशल मीडिया या किसी भी मंच पर इस हिंसा की निंदा कर सकते हैं. नक्सलवाद एक खतरनाक विचारधारा है जो देश के विकास में बाधा डालती है. आप लोगों को इस विचारधारा के खिलाफ जागरूक कर सकते हैं.

नक्सली सरकार के खिलाफ झूठा प्रचार करते हैं. आप इस प्रचार को पहचान सकते हैं और लोगों को इसके बारे में बता सकते हैं. भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हमें लोकतंत्र का सम्मान करना चाहिए और नक्सलियों जैसी तानाशाही विचारधारा का विरोध करना चाहिए.

असल में, नक्सलवाद सिर्फ एक समस्या नहीं है बल्कि एक ऐसी चुनौती है जिससे निपटने के लिए लंबे समय तक प्रयास करने होंगे. सरकार के प्रयासों से नक्सलवाद का प्रभाव कुछ हद तक कम हुआ है, लेकिन यह चुनौती अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.

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