कला बीथिका को बचाओ ग्वालियर वालो !
कला बीथिका को बचाओ ग्वालियर वालो
ग्वालियर की जितनी पुरानी पहचानें हैं उन्हें एक-एककर ज़िब्ह किया जा रहा है। विक्टोरिया मार्किट अब एक भूगर्भ संग्रहालय बन चुका है । शासकीय प्रेस जिसे कभी आलीजाह प्रेस कहते थे ,वहां भी कुछ और किया जा रहा है । रीगल टाकीज टाउन हाल बन चुका है ,मोती महल को वीरान किया जा चुका है और अब नंबर ग्वालियर की उस कला बीथिका का है जो इस शहर की एक पहचान है और जिसकी आधार शिला देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी 1 मार्च 1955 को।
मध्यप्रदेश का संस्कृति विभाग एक लम्बे अरसे से ग्वालियर की इस पहचान को मिटाने पर आमादा है । पहले इस कला बीथिका के साथ तानसेन का नाम बाबस्ता किया गया और अब इस कला बीथिका में दुर्लभ वाद्ययंत्रों का संग्रहालय बनाने की घोषणा की जा चुकी है। पड़ाव स्थित ग्वालियर की कला बीथिका एक मात्र ऐसा स्थान है जो कम शुल्क पर नगर के साहित्यकारों,चित्रकारों,रंगकर्मियों के लिए उपलब्ध करायी जाती रही है । जब कला बीथिका बनी थी तब उसके आसपास कौन जगह थी,बाद में उसे चारों और से भूपतियों ने घेर लिया,कला बीथिका का एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमण का शिकार हो गया ,लेकिन जैसे -तैसे कला बीथिका बची रही।
इस कला बीथिका के पास कलाकृतिओं का अपार भंडार था,मूर्ती और चित्रकला के नायब नमूने थे लेकिन देखरेख के अभाव में येलगभग नष्ट हो गए। प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इस कला बीथिका की ऐसी उपेक्षा की आज यहां पूर्णकालिक कोई अधिकारी तक नहीं है । बाबू और भृत्य कला बीथिका का संचालन कर रहे है। अन्यथा एक जमाने में इसी कला बीथिका का संचालन प्रदेश के नामचीन्ह कलाकारों के हाथ में था। कलाकर के रूप में अंतिम सेवक चंदकांत जाधव हुए उन्हें भी सेवा निवृत्त हुए अरसा हो चुका है। पिछले 69 साल में इस कला बीथिका के विस्तार की कोई योजना नहीं बनाई गयी। न कांग्रेस के शासन में और न भाजपा के शासन में। भाजपा के शासन में तो कला बीथिका को जैसे ग्रहण ही लग गया। कला बीथिका को संग्रहालय में बदलने की नापाक कोशिश का विरोध न यहां के किसी जन प्रतिनिधि ने किया और न इस शहर को अपनी जागीर मानने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने।
सिंधिया और प्रदेश की मोहन सरकार को शायद पता नहीं है कि किसी शहर की पहचान मिटाकर उसे समृद्ध नहीं किया जा सकत। सरकार को शायद पता नहीं है कि ग्वालियर को दुर्लभ वाद्ययंत्रों का संगहालय उस्ताद अमजद अली खान साहब दशकों पहले दे चुके है। संस्कृति विभाग को यदि एक और नया संगहालय बनाना है तो उसके लिए नया भवन और नया स्थान चुना जाये न की कला बीथिका की बलि ली जाये । बेहतर हो कि सिंधिया जी जय विलास महल के बंद पड़े हिस्से इस दुर्लभ वाद्ययन्त्र संग्राहलय के लिए स्थान दे दे। सिंधिया के पास आज भी तमाम ऐसी इमारतें पड़ी हैं जिनका कोई उपयोग नहीं है ,वहां ये नया संगहालय खोला जा सकता है । वैसे भी उप नगर मुरार और ग्वालियर के पास कोई संग्रहालय नहीं है ,क्यों नहीं वहां दुर्लभ वाद्ययंत्रों का संग्रहालय खोला जाता ?
ग्वालियर के कलाधर्मियों ने इस कला बीथिका को संग्रहालय में बदलने के संस्कृति विभाग के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने अपनी भावनाओं से जिला कलेक्टर से लेकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ,और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव तक को अवगत करा दिया है ,लेकिन अभी तक सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला है। मेरा नगर के सभी प्रबुद्ध नागरिकों और राजनीतक दलों से अनुरोध है कि वे सब शहर की पहचान माने जाने वाली कला बीथिका के अस्तित्व की लड़ाई में एक होकर सामने आएं। आंदोलन करें ,अनशन करें ,धरना दें। , अन्यथा ये शहर धीरे-धीरे अपनी पहचान खो देगा । वैसे भी ये शहर आधुनकिता की दौड़ में प्रदेश के दूसरे शहरों से बहुत पीछे जा चुका है। यहां एक रूप वे तक बनवाने के लिए यहां के भाग्यविधाता राजी नहीं हैं वे कला और संस्कृति के संरक्षण की फ़िक्र क्यों करेंगे। उनके लिए तो अपने राज चिन्हों की रक्षा करना जरूरी है।