नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए ?
साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। लाखों लोग स्नान के लिए संगम पहुंचे थे। बारिश की वजह से चारों तरफ कीचड़ और फिसलन थी।
सुबह करीब 8-9 बजे का वक्त रहा होगा। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। अपनी तरफ भीड़ आती देख नागा संन्यासी तलवार और त्रिशूल लेकर लोगों को मारने दौड़ पड़े। भगदड़ मच गई। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। जान बचाने के लिए लोग बिजली के खंभों से चढ़कर तारों पर लटक गए। भगदड़ में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
यूपी सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया। संसद में नेहरू को बयान देना पड़ा। 65 साल बाद 2019 में पीएम मोदी ने उस हादसे के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।
‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के पांचवें एपिसोड में कहानी आजादी के बाद हुए पहले कुंभ और उसमें मची भगदड़ की…

ये आजाद भारत का पहला कुंभ मेला था, लिहाजा सरकार तैयारियों में किसी तरह का कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। संगम के करीब ही अस्थाई रेलवे स्टेशन बनाया गया था। बड़ी संख्या में टूरिस्ट गाइड अपॉइंट किए गए थे। बुलडोजर से उबड़-खाबड़ जमीनें समतल की गई थीं।
सड़कों पर बिछी रेलवे लाइनों के ऊपर पुल बनाए गए थे। पहली बार कुंभ में बिजली के खंभे लगाए गए। करीब एक हजार खंभे। 9 अस्पताल खोले गए, ताकि कोई बीमार पड़े या हादसे का शिकार हो तो उसे फौरन मेडिकल फैसिलिटी मुहैया कराई जा सके।
कुंभ में 40-50 लाख लोगों के शामिल होने का अनुमान था। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी कुंभ पहुंचे थे। राजेंद्र प्रसाद तो महीनेभर संगम क्षेत्र में कल्पवास किया था।

‘नेहरू ने स्नान तो दूर, खुद के ऊपर गंगा का पानी तक नहीं छिड़का’
गांधीवादी लेखक राजगोपाल पीवी अपनी किताब ‘मैं नेहरू का साया था’ में लिखते हैं- ‘उस रोज मौनी अमावस्या थी। लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे कि पंडित नेहरू प्रयाग जाएं और कुंभ में स्नान करें। उन्होंने नेहरू से कहा- ‘इस प्रथा का पालन लाखों लोग करते आए हैं। आपको भी करना चाहिए।’
नेहरू ने जवाब दिया- ‘मैंने तय कर लिया है कि नहाऊंगा नहीं। पहले मैं जनेऊ पहना करता था। फिर मैंने जनेऊ उतार दिया। यह सच है कि गंगा मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं। गंगा भारत में लाखों लोगों के जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन मैं कुंभ के दौरान इसमें स्नान नहीं करूंगा।’
राजगोपाल पीवी लिखते हैं- ‘उस रोज सुबह नेहरू नाव में बैठे। उनके परिवार के लोग भी साथ थे। सभी ने संगम में डुबकी लगाई, लेकिन नेहरू ने स्नान तो दूर, खुद के ऊपर गंगा का पानी तक नहीं छिड़का।’

फोटो जर्नलिस्ट की आंखों-देखी….
सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी 1954 के कुंभ में मौजूद थे। 1989 में मुखर्जी की आंखों-देखी रिपोर्ट ‘छायाकृति’ नाम की हिंदी मैगजीन में छपी। मुखर्जी लिखते हैं- ‘प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद एक ही दिन स्नान के लिए संगम पहुंच गए। ज्यादातर पुलिस और अफसर उनकी व्यवस्था में व्यस्त हो गए।
मैं संगम चौकी के पास एक टावर पर खड़ा हुआ था। करीब 10.20 बजे की बात है। स्नान करने वाले घाट पर बैरिकेड लगाकर हजारों लोगों को रोका गया था। आम लोगों के साथ-साथ हजारों नागा साधु, घोड़ा गाड़ी, हाथी, ऊंट सब घंटों इंतजार करते रहे। दोनों तरफ जनसैलाब जम गया था।
इसी बीच नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी की तरफ से आई और किला घाट की तरफ निकल गई। जब नेहरू और बाकी वीवीआईपी लोगों की गाड़ी गुजर गई, तो बिना किसी योजना के भीड़ को छोड़ दिया गया।
भीड़ बैरिकेड तोड़कर घाट की तरफ जाने लगी। उसी रोड पर दूसरे छोर से साधुओं का जुलूस निकल रहा था। भीड़ और साधु-संत आमने सामने आ गए। जुलूस बिखर गया। बैरिकेड की ढलान से लोग ऐसे गिरने लगे, जैसे तूफान में खड़ी फसलें गिरती हैं।
जो गिरा वो गिरा ही रह गया, कोई उठ नहीं सका। चारों तरफ से मुझे बचाओ, मुझे बचाओ की चीख गूंज रही थी। कई लोग तो गहरे कुएं में गिर गए।’
मुखर्जी लिखते हैं- ‘मैंने देखा कि कोई तीन साल के बच्चे को कुचलते हुए जा रहा था। कोई बिजली के तारों पर झूलकर खुद को बचा रहा था। उसकी तस्वीर खींचने के चक्कर में मैं भगदड़ में गिरे हुए लोगों के ऊपर गिर गया।
मेरे अखबार के साथी डरे हुए थे कि मैं भी हादसे का शिकार तो नहीं हो गया। दोपहर करीब 1 बजे मैं दफ्तर पहुंचा, तो अखबार के मालिक ने मुझे गोद में उठा लिया। वे जोश में चीख पड़े- ‘नीपू हैज कम बैक अलाइव.. नीपू जिंदा लौट आया है।’ तब मैंने उनसे कहा कि हादसे के फोटोग्राफ्स भी लेकर आया हूं।
सरकार ने कहा कि हादसे में कुछ भिखारी ही मरे हैं। सैकड़ों लोगों के मरने की खबर गलत है। मैंने अधिकारियों को हादसे की तस्वीरें दिखाईं, जिसमें महंगे गहने पहनी महिलाएं भी थीं। जो इस बात का तस्दीक कर रही थीं कि अच्छे बैकग्राउंड वाले भी लोग कुचलकर मरे हैं।’

अखबार में एक तरफ हादसा और दूसरी तरफ राजभवन में पार्टी की तस्वीर छपी
प्रयाग के सीनियर जर्नलिस्ट स्नेह मधुर बताते हैं- ‘अस्सी के दशक में दादा मुखर्जी ने मुझे 1954 कुंभ में मची भगदड़ का किस्सा सुनाया था। भगदड़ में सैकड़ों लोग मारे गए थे। आजादी के बाद पहला कुंभ था, इसलिए सरकार के लिए यह साख का भी सवाल था।
4 फरवरी 1954 को अमृत बाजार पत्रिका नाम के अखबार में हादसे की खबर छपी। एक तरफ भगदड़ में लोगों के मारे जाने की खबर और दूसरी तरफ राजभवन में राष्ट्रपति के स्वागत में रखी गई पार्टी की तस्वीर अखबार में छपी। यूपी सरकार ने कहा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। अखबार में गलत खबर छपी है। इसका खंडन छापना चाहिए।’

फोटो जर्नलिस्ट ने चुपके से तस्वीर खींच ली, यूपी के सीएम ने पत्रकार को गाली दी
स्नेह मधुर बताते हैं- ‘एनएन मुखर्जी ने हादसे की खबर तो छाप दी थी, लेकिन सरकार का दबाव था कि कुछ हुआ ही नहीं। एक पत्रकार के नाते उन्हें इसका सबूत पेश करना था। अगले दिन वे फिर से मेले में पहुंच गए। मुखर्जी ने देखा कि प्रशासन शवों का ढेर बनाकर उसमें आग लगा रहा था। किसी भी फोटोग्राफर या पत्रकार को वहां जाने की इजाजत नहीं थी। चारों तरफ बड़ी संख्या में पुलिस मुस्तैद थी।
बारिश हो रही थी। एनएन मुखर्जी एक गांव वाले की वेशभूषा में छाता लिए वहां पहुंचे। उनके हाथ में खादी का झोला था, जिसके भीतर उन्होंने छोटा सा कैमरा छिपाया हुआ था। झोले में एक छेद कर रखा था ताकि कैमरे का लेंस नहीं ढंके।
फोटोग्राफर एनएन मुखर्जी ने पुलिस वालों से रोते हुए कहा कि मुझे आखिरी बार अपनी दादी को देखना है। वे सिपाहियों के पैर पर गिर पड़े। उनसे मिन्नतें करने लगे कि आखिरी बार मुझे दादी को देख लेने दो।
एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें इस शर्त पर जाने की छूट दी कि वे जल्द लौट आएंगे। वे तेजी से शवों की तरफ दौड़े। अपनी दादी को ढूंढने का नाटक करने लगे। इसी दौरान उन्होंने गिरते-संभलते जलती हुई लाशों की फोटो खींच ली।
अगले दिन अखबार में जलती हुई लाशों की फोटो छपी। खबर पढ़कर यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत गुस्से से लाल हो गए। उन्होंने पत्रकार को गाली देते हुए कहा था- ‘कहां है वह ह…. फोटोग्राफर।’ 1989 में छपी ‘छायाकृति’ मैगजीन में भी इस किस्से का जिक्र है।

भगदड़ पर फिल्म बनाने वाले थे बिमल रॉय, शूटिंग भी शुरू हो गई थी, लेकिन…
‘प्रयागराज और कुंभ’ किताब में कुमार निर्मलेंदु लिखते हैं- ’बांग्ला के मशहूर उपन्यासकार समरेश बसु ने इस हादसे के ऊपर ‘अमृत कुंभ की खोज में’ नाम से एक उपन्यास लिखा था। 1955 में यह उपन्यास कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले बांग्ला अखबार ‘आनन्द बाजार’ में धारावाहिक रूप में पब्लिश हुआ।
इस उपन्यास की शुरुआत लोगों से खचाखच भरी एक ट्रेन से होती है, जो प्रयाग स्टेशन से निकलकर इलाहाबाद की ओर रवाना हो रही है। बस कुछ मिनटों का सफर बाकी है। लोग जोश में आकर भजन गाना शुरू कर देते हैं।
ट्रेन की छत पर बैठे लोग नारे लगाने लगते हैं। ट्रेन रेंगते-रेंगते इलाहाबाद में दाखिल होती है और मुसाफिरों की भीड़ इस तरह बाहर निकलने के लिए बढ़ती है, जैसे किसी ब्लैक होल से निकल रही हो।
बलराम, जो अपना रोग छुड़ाने, सौ साल की उम्र मांगने, स्नान के लिए जा रहा था, लोगों के पैरों तले कुचलकर मारा जाता है।’
किताब के मुताबिक मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय इस उपन्यास पर एक हिन्दी फिल्म बनाना चाहते थे। गीतकार गुलजार उनके सहायक थे। गुलजार इस फिल्म की पटकथा भी लिख रहे थे। फिल्म पर टुकड़ों-टुकड़ों में काम चलता रहा। दूसरे मेलों में जाकर कुछ आउटडोर शूटिंग भी कर ली गई।

1962 की सर्दियों में फिल्म रिलीज करने की तैयारी थी, लेकिन इसी बीच बिमल रॉय बीमार पड़ गए। एक दिन उन्होंने गुलजार और सीनियर कैमरामैन कमल बोस से कहा- ‘मैं इलाहाबाद नहीं जा सकूंगा। तुम लोग जाओ। मेले के शॉट्स ले आओ।’
इलाहाबाद जाने के पहले ही गुलजार को पता चला कि बिमल रॉय को कैंसर हो गया है। खैर, वे लोग दुखी मन से इलाहाबाद जाकर शूटिंग करने लगे। बिमल रॉय की बीमारी की बात जानने के बाद उनके सहयोगियों का मनोबल डाउन हो गया था, उनके मन में डर बैठ गया था कि कहीं फिल्म ठंडे बस्ते में न चली जाए।
शूटिंग करके सभी लोग बंबई लौट आये। रॉय की सेहत पहले से भी खराब हो गई थी। एक दिन उन्होंने गुलजार को बुलाकर पूछा- ‘तुम अमृत कुंभ की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हो कि नहीं ? और गुलजार को खामोश देखकर उन पर बिगड़ गए। बोले- ‘तुमसे कहा था कि उपन्यास में बलराम की मौत बहुत जल्दी दिखाई गई है। वो मंजर वहां से हटाकर मेले में ले जाओ।’
गुलजार खामोश रहे। वे फिर कहने लगे- कल से रोज शाम को स्क्रिप्ट पर चर्चा होगी। हर दिन स्क्रिप्ट पर चर्चा चलती रही, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 8 जनवरी 1965 को बिमल रॉय का निधन हो गया। आखिरकार फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई।
सदन में नेहरू ने माना था कि वह हादसे के वक्त कुंभ में मौजूद थे
कुछ लोगों का दावा है कि हादसे के दिन पंडित नेहरू कुंभ में मौजूद नहीं थे। बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में हादसे के वक्त मौजूद रहे नरेश मिश्र ने बताया था- ’नेहरू हादसे से ठीक एक दिन पहले प्रयाग आए थे, उन्होंने संगम क्षेत्र में तैयारियों का जायजा लिया और दिल्ली लौट गए, लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद संगम क्षेत्र में ही थे और सुबह के वक्त किले के बुर्ज पर बैठकर दशनामी संन्यासियों का जुलूस देख रहे थे।’
हालांकि, कई लेखक, पत्रकार और खुद नेहरू ने भी संसद में माना था कि वे हादसे के वक्त कुंभ में मौजूद थे। 15 फरवरी 1954 को जवाहर लाल नेहरू ने संसद कहा- ‘मैं किले की बालकनी में था। वहां से खड़े होकर कुंभ देख रहा था। यह अनुमान लगाया गया था कि कुंभ में 40 लाख लोग पहुंचे थे। बहुत दुख की बात है कि जिस समारोह में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे थे, वहां ऐसी घटना हो गई और कई लोगों की जान चली गई।’
‘पिलग्रिमेज एंड पावर : द कुंभ मेला इन इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954’ में कामा मैकलिन ने भी हादसे के वक्त नेहरू के कुंभ में मौजूद रहने की बात लिखी है। कामा मैकलिन ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन एंड वर्ल्ड हिस्ट्री की प्रोफेसर रह चुकी हैं।

हादसे की जांच कमेटी में डॉ. अंबेडकर को शामिल करने की मांग उठी थी
कामा मैकलिन लिखती हैं- ‘हादसे के बाद यूपी सरकार ने एक जांच कमेटी बनाई। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस कमलाकांत वर्मा, यूपी सरकार के पूर्व सलाहकार डॉ. पन्नालाल और सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर एसी मित्रा शामिल थे।
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हादसे के लिए सरकार को जिम्मेदार तो ठहराया, लेकिन सारा दोष मीडिया पर मढ़ दिया। कमेटी ने कहा था कि कुंभ में मुख्य स्नान के दिन वीआईपी और वीवीआईपी को नहीं जाना चाहिए।
छेदनी देवी नाम की एक महिला का पूरा परिवार हादसे में खत्म हो गया था। उसने सरकार से मुआवजे की मांग की। कमेटी ने उसकी मांग खारिज कर दी। वर्मा ने कहा- ‘तीर्थ यात्री मेले में करो या मरो की भावना से शामिल हुए थे।’
कमेटी की जांच से कई लोग खुश नहीं थे। इलाहाबाद के कुछ लोगों ने हादसे की जांच के लिए खुद ही एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बना दी। इस कमेटी ने सरकार से आग्रह किया कि जांच में डॉ. अंबेडकर और फ्रीडम फाइटर एचएन कुंजरू जैसे लोगों को शामिल किया जाए, लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई।’
जब पीएम मोदी ने कहा- ‘ऐसा पाप देश के पहले प्रधानमंत्री के काल में हुआ’
1 मई 2019, जगह यूपी का कौशांबी जिला। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कहा- ‘पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तो कुंभ के मेले में आए थे। तब अव्यवस्था के चलते कुंभ में भगदड़ मच गई। सैकड़ों लोग कुचलकर मारे गए, लेकिन सरकार की इज्जत बचाने के लिए, खबर दबा दी गई। भाइयो-बहनो… यह सिर्फ भगदड़ नहीं थी। ऐसा पाप देश के पहले प्रधानमंत्री के काल में हुआ है।’
