जो अंदर गया, जिंदा लौटना मुश्किल, ग्वांतानामो-बे जेल इतनी खतरनाक क्यों?
जो अंदर गया, जिंदा लौटना मुश्किल, ग्वांतानामो-बे जेल इतनी खतरनाक क्यों? जहां अवैध प्रवासियों को भेजेंगे ट्रंप
Guantanamo Bay Prison History: नए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अवैध अप्रवासियों को ग्वांतानामो-बे जेल भेजेंगे. अवैध प्रवासियों के लिए वहां पर 30 हजार बेड तैयार करने के लिए आदेश दिए गए हैं. ग्वांतानामो-बे जेल को दुनिया की सबसे खतरनाक जेल कहा जाता है. आइए जान लेते हैं कि कितनी खतरनाक और विवादित है ग्वांतानामो-बे जेल?

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले कानून पर बुधवार (29 जनवरी 2025) को हस्ताक्षर कर दिए हैं. रिले एक्ट नामक यह कानून संघीय सरकार के अधिकारियों को ऐसे अवैध प्रवासियों को हिरासत में लेकर निर्वासित करने का अधिकार देता है, जो किसी तरह की आपराधिक गतिविधि में शामिल हैं. इस बीच, ट्रम्प ने दावा किया है कि उनकी सरकार अपराधिक गतिविधियों में लिप्त अवैध अप्रवासियों को ग्वांतानामो-बे जेल में भेजने की योजना बना रही है.
अवैध प्रवासियों के लिए वहां पर 30 हजार बेड तैयार करने के लिए आदेश दिए गए हैं. आइए जान लेते हैं कि कितनी खतरनाक और विवादित है ग्वांतानामो-बे जेल?
9/11 हमले के बाद जेल में तब्दील किया गया नौसेना का अड्डावास्तव में ग्वांतानामो खाड़ी के तट पर स्थित होने के कारण इस जेल का नाम ग्वांतानामो बे पड़ा. साल 1903 में अमेरिका ने इस ग्वांतानामो बे को क्यूबा से लीज पर लिया था. तब यह स्थान अमेरिका की नौसेना का बेस होता था. अमेरिका के वर्ल्ड ट्रे़ड टावर पर साल 2001 में नौ सितंबर को हुए आतंकवादी हमले के बाद साल 2002 में इसे जेल में बदल दिया गया. इस आतंकवादी हमले में शामिल दोषियों को इसी जेल में रखा गया था. इसके अलावा अमेरिका द्वारा पकड़े गए दुनिया भर के खतरनाक आतंकवादी संगठनों के सदस्यों को इसी जेल में रखा जाता है.
हालांकि, साल 1959 में फिदेल कास्त्रो अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो दोनों देशों के बीच संबंध खराब होते चले गए. अमेरिकी एजेंसियों पर आरोप है कि उन्होंने कई बार फिदेल कास्त्रो की हत्या की कोशिश की. इसके बाद से क्यूबा ग्वांतानामो बे पर अमेरिका के कब्जे को अवैध बताता रहा है.
बाहरी दुनिया से कट जाता है संपर्कग्वांतानामो-बे जेल को दुनिया की सबसे खतरनाक जेल कहा जाता है. इसका नाम सुनकर बड़े से बड़े और पूरी दुनिया के सबसे खतरनाक अपराधियों और आतंकियों तक के तिरपन कांप जाते हैं. दरअसल, इस देल में जाने के बाद कैदियों का बाहरी दुनिया से पूरी तरह से संपर्क कट जाता है. इसके अलावा यहां से आए दिन अमानवीयता और यातनाओं की खबरें भी आती रही हैं. ग्वांतानामो-बे जेल के बारे में यह भी कहा जाता है कि एक बार जो भी गया, उसके जिंदा लौटने की संभावना कम ही रहती है.

ग्वांतनामो बे दुनिया की सबसे महंगी जेल भी है.
ऐसी है ग्वांतनामो बे जेलग्वांतनामो बे जेल तीन हिस्सों में बांटी गई है. इनमें से दो गुप्त मुख्यालय हैं. इस जेल के भीतर तीन क्लीनिक भी बनाए गए हैं. इसके भीतर ही कोर्ट, पेरोल बोर्ड और सुनवाई कक्ष की भी व्यवस्था की गई है. जेल होने के बावजूद यहां पर कई हाईटेक सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं. कैदियों के लिए जिम और प्ले स्टेशन के साथ ही साथ सिनेमा हॉल की सुविधा भी है. इसके बावजूद यहां पर एक-एक कैदी पर 45-45 से ज्यादा सैनिकों की तैनाती होती है.
इसलिए किसी भी कैदी का यहां से निकल पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव होता है. इसके अलावा कैदियों को रखने के लिए जो कमरे हैं, उन्हें छोटी-छोटी गुफा और पिंजरेनुमा बनाया गया है. यही सबसे तकलीफदेह होते हैं.
ग्वांतनामो बे जेल को लेकर अमेरिका पर तमाम तरह के आरोप लगते रहे हैं. यहां कैदियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप भी अमेरिका पर समय-समय पर लगा है. साल 2018 में बीबीसी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें ग्वांतनामो बे जेल से साल 2002 में छूटे अफगानिस्तान के तीन लोगों के हवाले से जेल के अंदर के माहौल की जानकारी दी थी. इसमें बीबीसी को छूटे लोगों बताया था कि उनको मारा-पीटा तो नहीं गया था, लेकिन छोटे-छोटे पिंजरेनुमा कमरों में रखी गया था, जिनमें भीषण गर्मी थी.
ओबामा और बाइडन कर चुके हैं बंद करने की कोशिशग्वांतनामो बे जेल दुनिया में सबसे खतरनाक तो है ही, यह दुनिया की सबसे महंगी जेल भी है. बताया जाता है कि ग्वांतनामो बे जेल में एक कैदी को रखने पर अमेरिका को हर साल लगभग 100 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इसीलिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा साल 2008-09 में इस जेल को बंद करना चाहते थे. हालांकि, वह इसमें सफल नहीं हुए और बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद साल 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने इस जेल को चालू रखने का आदेश जारी कर दिया था. उनके बाद राष्ट्रपति बने जो बाइडन भी इस जेल को बंद करना चाहते थे, क्योंकि इसका खर्च उठा पाना अमेरिका के लिए मुश्किल हो रहा था.