भारत में कैसे फल-फूल रहा है भीख मांगने का कारोबार, कानून क्या कहता है?

भारत में कैसे फल-फूल रहा है भीख मांगने का कारोबार, कानून क्या कहता है?

भारत में भीख मांगना सिर्फ गरीबी की वजह से नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध के रूप में भी तेजी से फल-फूल रहा है. बड़े शहरों में ट्रैफिक सिग्नल, रेलवे स्टेशन, मंदिरों पर भिखारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है

भोपाल के जिला कलेक्टर ने हाल ही में एक आदेश जारी कर जिले में सभी पब्लिक प्लेस पर भीख मांगने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये फैसला सही है? क्या सिर्फ कानून बनाकर भीख मांगने की समस्या को खत्म किया जा सकता है?

भोपाल नगर सुरक्षा अधिनियम (BNS) की धारा 163 के तहत प्रशासन ने अब ‘पूरे जिले में सभी तरह की भीख मांगने पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है.’ इससे पहले इंदौर में भी ऐसा प्रतिबंध लग जा चुका है. भीख देने और लेने दोनों पर, साथ ही भिखारियों से सामान खरीदने पर भी सख्त प्रतिबंध लगाया गया है. इन नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने जैसे सख्त कदम भी उठाए गए हैं. 

भोपाल के एक जिला अधिकारी ने बताया, इस नियम को तोड़ने पर भिखारी और उनकी मदद करने वाले दोनों पर BNS की धारा 223 के तहत कानूनी कार्रवाई होगी. इस धारा के तहत एक साल तक की कैद, 2500 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

पहले जानिए भोपाल में भीख मांगने पर प्रतिबंध क्यों?
भोपाल जिला प्रशासन ने इंदौर की तर्ज पर भीख मांगने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया है. प्रशासन ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि उन्हें अखबारों और दूसरी जगहों से पता चला था कि ट्रैफिक सिग्नल, चौराहों, मंदिरों और दूसरी पब्लिक जगहों पर भीख मांगने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ गई है. 

आदेश के अनुसार, “अकेले या अपने परिवारों के साथ भीख मांगने वाले लोग न केवल इस प्रथा को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए सरकारी निर्देशों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि सार्वजनिक आवाजाही और यातायात को भी बाधित करते हैं.” प्रशासन ने यह भी नोट किया कि इनमें से कई ‘व्यक्ति दूसरे राज्यों और शहरों से आते हैं और कुछ का आपराधिक रिकॉर्ड भी है.”

प्रशासन का कहना है कि बहुत सारे भिखारी नशे या दूसरी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हैं और कई बार संगठित गिरोह भीख मांगने की आड़ में अपराधों को अंजाम देते हैं. इसके अलावा, ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने से दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ जाता है.

भीख मांगने की परिभाषा क्या है?
बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1959 के अनुसार, भिखारी वह व्यक्ति है जो भीख मांगता है (चाहे किसी भी तरीके से), सड़क पर प्रदर्शन करता है या बेचने के लिए सामान देता है या बिना किसी साधन के बेसहारा दिखाई देता है.

इस अधिनियम के अनुसार, भिखारी वह है जिसके पास जीविका का कोई साधन न दिखे और जो सार्वजनिक जगह पर इस तरह घूमता रहे या रहता हो कि ऐसा लगे कि वह भीख मांगकर या भीख लेकर ही अपना गुजारा करता है.

भारत में भीख मांगने का कितना बड़ा कारोबार?
भीख मांगना सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में एक गंभीर समस्या है. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 4 लाख से ज्यादा नियमित भिखारी हैं. भीख मांगने को अक्सर मजबूरी या गरीबी से जोड़ा जाता है, लेकिन कई बार इसके पीछे एक और डरावनी सच्चाई छिपी होती है- संगठित गिरोह और बच्चों का शोषण. 

भीख मंगवाने वाले गिरोह अपने इलाके बांटकर काम करते हैं. ये अपने कब्जे वाले भिखारियों से रोज की कमाई वसूलते हैं. ये गिरोह बेसहारा लोगों का शोषण करके भीख मांगने को एक मुनाफे का धंधा बना देते हैं और कानून से बचकर अपना काम करते हैं. इन गिरोहों में हिंसा और डराने-धमकाने की तकनीकों का इस्तेमाल आम है, जिससे भिखारी इनके कंट्रोल में रहते हैं.

पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा भिखारी हैं (81,000 से ज्यादा), उसके बाद उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश का नंबर आता है. इन राज्यों में भिखारियों की ज्यादा संख्या गरीबी, गांवों से शहरों की ओर पलायन जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को दर्शाती है. नाइजीरिया को अक्सर दुनिया में सबसे ज्यादा भिखारियों वाले देशों में से एक माना जाता है. 

भीख मांगने का कानून क्या कहता है?
भारत में भीख मांगने के बारे में कानून थोड़ा पुराना है. पहले अंग्रेजों के समय में एक कानून था जिससे घुमंतू लोगों को अपराधी माना जाता था और कहा जाता था कि वो भीख मांगते हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान बना आदिम जनजाति अधिनियम 1871 घुमंतू जनजातियों को अपराधी मानता था और उन्हें आवारागर्दी और भीख मांगने से जोड़ता था. यह कानून भेदभावपूर्ण था और आज भी इसकी आलोचना की जाती है.

भारत में भीख मांगने पर कोई केंद्रीय कानून नहीं है, यानी पूरे देश में लागू होने वाला कोई एक कानून नहीं है. इसकी बजाय, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1959 को आधार बनाकर अपने-अपने कानून बनाए हैं. 

भारतीय संविधान की समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के तहत केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को आवारागर्दी (जिसमें भीख मांगना भी शामिल है), घुमंतू और प्रवासी जनजातियों पर कानून बनाने का अधिकार है. भीख मांगने पर कोई अखिल भारतीय कानून नहीं है. इसकी बजाय, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1959 को आधार बनाकर अपने कानून बनाए हैं.

क्या भीख मांगना अपराध है?
दिल्ली हाई कोर्ट ने भीख मांगने को अपराध नहीं माना है. साल 2018 में अदालत ने कहा था कि भीख मांगने पर रोक लगाने वाला पुराना कानून गलत है क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है. अदालत ने कहा कि सबको कानून के सामने बराबरी का हक है और जीने का भी हक है, इसलिए भीख मांगना कोई अपराध नहीं है. अदालत ने यह भी कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी चीजें मुहैया कराए. अगर लोग गरीब हैं तो यह सरकार की नाकामी है.

अदालत ने कहा कि भिक्षावृत्ति अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है. अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम में भीख मांगने की परिभाषा मनमानी है. अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी नागरिकों को जीवन की बुनियादी जरूरतें (रोटी, कपड़ा, मकान) प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है.

अदालत ने कहा कि भिखारियों को अपराधी बना देने से समस्या की असली जड़ दूर नहीं होगी, बल्कि भिखारी बस हमारी नजरों से ओझल हो जाएंगे. समस्या की असली जड़ है गरीबी. अगर सरकार चाहे तो जबरन भीख मंगवाने वाले रैकेट को रोकने के लिए कोई दूसरा कानून बना सकती है, लेकिन इसके लिए पहले उसे इस समस्या के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं का अध्ययन करना होगा. अब बिना वारंट के किसी भिखारी को गिरफ्तार करने, उसे अदालत में ले जाने, उससे पूछताछ करने और उसे 10 साल तक हिरासत में रखने जैसे प्रावधानों को खत्म कर दिया गया है.

क्या भीख मांगने पर रोक लगाया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2021 में स्पष्ट किया था कि वह भीख मांगने पर रोक नहीं लगा सकता क्योंकि यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है, न कि कोई अपराध. अदालत ने कहा कि लोगों को भीख मांगने के लिए मजबूर होना एक गंभीर मुद्दा है और इसे सिर्फ कानून बनाकर हल नहीं किया जा सकता.

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार को एक याचिका पर नोटिस जारी किया था. अदालत ने कहा था कि लोग पढ़ाई-लिखाई और नौकरी न होने की वजह से भीख मांगते हैं. यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है जिसका हल सिर्फ कानून बनाकर नहीं निकाला जा सकता है. इसलिए, अदालत ने यह भी कहा कि वह सड़कों, सार्वजनिक जगहों और ट्रैफिक सिग्नल से भिखारियों को हटाने का आदेश नहीं दे सकता.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “आपकी पहली मांग है कि लोगों को सड़कों पर रहने से रोका जाए. लेकिन लोग सड़कों पर भीख क्यों मांगते हैं? यह गरीबी की वजह से है. सुप्रीम कोर्ट होने के नाते, हम कोई ऐसा फैसला नहीं लेंगे जो सिर्फ अमीर लोगों के हित में हो. उनके पास कोई और चारा नहीं है. कोई भी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगना चाहता.”

अदालत वकील कुश कालरा की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मांग की गई थी कि कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए ट्रैफिक सिग्नल, बाजारों और सार्वजनिक जगहों पर भीख मांगने वालों, बेघरों और आवारा लोगों को वहां से हटाया जाए और उनका पुनर्वास किया जाए. 

क्या भिखारियों के लिए सरकार की कोई योजना है?
SMILE नाम की एक योजना है जो 2022 में शुरू हुई थी. इसका मकसद भिखारियों को मदद करना है ताकि वो भीख मांगने की बजाय अपना जीवन खुद चला सकें. इस योजना में भिखारियों को इलाज, पढ़ाई और काम सीखने का मौका दिया जाता है. सरकार चाहती है कि 2026 तक भारत में कोई भीख न मांगे. 2024 तक, इस योजना से 970 लोगों को मदद मिली है, जिनमें 352 बच्चे भी हैं.

इस योजना में दो छोटी योजनाएं शामिल हैं- ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए व्यापक पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना’ और ‘भीख मांगने के कार्य में लगे व्यक्तियों के व्यापक पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना’.

भारत में कैसे फल-फूल रहा है भीख मांगने का कारोबार, कानून क्या कहता है?

यह योजना ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भिखारियों, दोनों के लिए कई तरह की मदद लेकर आई है. इसमें उन्हें फिर से समाज में बसाने पर ज़ोर दिया गया है.  इसके साथ ही, उन्हें इलाज, सलाह, शिक्षा, हुनर सिखाने और रोजगार से जोड़ने जैसी सुविधाएं भी दी जाएंगी. यह सब राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों/स्थानीय निकायों, स्वयंसेवी संगठनों, सामुदायिक संगठनों और दूसरे संस्थानों की मदद से किया जाएगा.

भीख मांगना: समस्या का समाधान क्या है?
भारत में भीख मांगना एक आम दृश्य है, लेकिन इसके पीछे के कारणों को समझना जरूरी है. भीख मांगना कोई ‘पेशा’ नहीं है, बल्कि यह गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता जैसी गहरी समस्याओं का लक्षण है.

गरीबी, बेरोजगारी और कम रोजगार भीख मांगने के मुख्य कारण हैं. जब लोगों के पास आधारभूत जरूरतें पूरी करने का कोई और साधन नहीं होता, तो वे मजबूरन भीख मांगते हैं. गांवों से शहरों की ओर पलायन करने वाले हाशिए पर रहने वाले लोग अक्सर बेघर हो जाते हैं और भीख मांगने को मजबूर होते हैं.

इसके अलावा, भारत में जाति व्यवस्था ने ऐतिहासिक रूप से कुछ समुदायों को हाशिए पर रखा है, जिससे उन्हें सीमित अवसर मिलते हैं. कुछ संस्कृतियों में, भीख मांगना एक वंशानुगत पेशा माना जाता है. स्वास्थ्य सेवा और पुनर्वास सेवाओं की कमी के कारण अक्सर विकलांग लोग भीख मांगने को मजबूर होते हैं. कई मानसिक रूप से बीमार लोगों को उनके परिवार त्याग देते हैं और उन्हें जीवित रहने के लिए भीख मांगनी पड़ती है.

भीख मांगने की समस्या का समाधान सिर्फ कानून बनाकर या भिखारियों को सजा देकर नहीं किया जा सकता. इसके लिए जरूरी है कि गरीबी और बेरोजगारी जैसी मूल समस्याओं पर ध्यान दिया जाए. शिक्षा और कौशल विकास के जरिए लोगों को आत्मनिर्भर बनाया जाए. विकलांग और मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं. सामाजिक भेदभाव को खत्म किया जाए और सभी को समान अवसर दिए जाएं.

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